बुधवार, 9 मई 2012

मधुमेह और इंसुलिन

इंसुलिन शरीर में बनने वाला एक हारमोन है, जो पेंक्रियाज़ ग्रंथि से बनता है। हमारा भोजन कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीनयुक्त होता है। कार्बोहाइड्रेट आँतों में जाकर ग्लूकोज में परिवर्तित होता है, यह ग्लूकोज इंसुलिन की उपस्थिति में कोशिकाओं में प्रवेश कर ऊर्जा प्रदान करता है। डायबिटीज़ के रोगियों में इस इंसुलिन हारमोन की कमी के कारण ग्लूकोज कोशिकाओं में न जाकर रक्त में ही रह जाता है। रक्त में ग्लूकोज की बढ़ी हुई इस मात्रा को ही डायबिटीज़ या मधुमेह कहते हैं। 

यह एक रासायनिक विकार है (मेटाबोलिक डिसऑर्डर), जिसका निदान प्रामाणिक वैज्ञानिक पद्धति से ही किया जा सकता है न कि अप्रामाणिक या मिथ्या मान्यता से। मधुमेह रोगियों को जो दवाई (ओरल हाइपो ग्लाइसिमिक एजेंट) दी जाती है वह इंसुलिन नहीं है, वे इंसुलिन को (रासायनिक क्रियाओं द्वारा) खींचकर रक्त में लाती है और ग्लूकोज़ को ऊर्जा में परिवर्तित करती है, जिससे रक्त में शकर की मात्रा नियंत्रित रहती है। यह दवाइयाँ तब तक ही कार्य करती हैं, जब तक शरीर में इंसुलिन बनता रहता है। लंबे समय की डायबिटीज़ में दवाइयों का असर कम होने लगता है या फिर इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। ऐसे रोगियों को शकर की मात्रा नियंत्रित करने के लिए बाहर से इंसुलिन देना पड़ता है। इंसुलिन एक प्रोटीन है, यह गोली या सिरप के रूप में नहीं बनता, उसे इंजेक्शन द्वारा ही दिया जाता है। 

लोगों को ऐसी भ्रांति होती है कि इंसुलिन लेने से उसकी आदत पड़ जाती है या फिर एक बार शुरू करने पर हमेशा लेना पड़ेगा। इंसुलिन लेने की नौबत तब आती है जब शरीर इसे नहीं बना पाता है। इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाएँ प्रायः समाप्त हो चुकी हैं या बहुत कम बना रही होती हैं, जो शरीर की ज़रूरत से बहुत कम होता है। बाहर से इंसुलिन पहुँचा कर यदि शकर की मात्रा नियंत्रित की जा सके और मधुमेह के दुष्प्रभाव से शरीर के अंगों को बचाया जा सके तो इंसुलिन बाहर से लेने में डर कैसा? इंसुलिन शरीर की ज़रूरत है, इसके बिना जीवन संभव नहीं है। मधुमेह भी उच्च रक्तचाप, कैंसर, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल एवं हृदय रोग की तरह वंशानुगत बीमारी है, ५० से ६० प्रतिशत तक वांशिक कारण व ४० से ५० प्रतिशत तक दिनचर्या, खान-पान एवं कुछ पेंक्रियाज़ की बीमारी के कारण होती है। 

मधुमेह रोगियों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए

- आहार : नियमित समय पर संतुलित आहार घी/ तेल से कम और फाइबर युक्त चीज़ें अधिक लें। ये रोगी सब कुछ खा सकते हैं केवल उन्हें अपने भोजन में कैलोरीज़ की मात्रा का ध्यान रखना चाहिए, जितनी उनकी दिनचर्या के हिसाब से शरीर की आवश्यकता है।

व्यायाम : ३०-४५ मिनट तक नियमित त़ेज पैदल घूमना या व्यायाम करना, इससे हमारे शरीर की कोशिकाएँ इंसुलिन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

दवाइयाँ : मधुमेह की दवाइयों का सेवन करने से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। इन दवाओं का काम केवल इंसुलिन को रक्त में लाने का होता है। 

कई रोगियों की यह धारणा रहती है कि कुछ मीठा या ज़्यादा खा लेंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ता, दवाई की मात्रा बढ़ा लेंगे किंतु यह सोच बिलकुल गलत है, क्योंकि कुछ गोलियाँ केवल इंसुलिन के स्राव को बढ़ाती हैं, हो सकता है यह बढ़ा हुआ इंसुलिन रक्त में शकर की मात्रा को इतना कम कर दे कि मरीज़ हाइपोग्लाइसीमिया की स्थिति में पहुँच जाए। यह एक आपातकालीन स्थिति होती है, जिसमें समय रहते शकर की मात्रा नियंत्रित न की जाए तो वह बेहोश हो सकता है या कोमा में भी जा सकता है।ऐसे में शरीर के कई अंगों को नुकसान होता है। चिकित्सक मरीज़ के रक्त में शकर की मात्रा के अनुसार दवाई की खुराक तय करता है, इसे अपने मन से बढ़ाना या घटाना घातक हो सकता है। मरीज़ को डॉक्टर द्वारा बताए गए समय एवं मात्रा का ध्यान रखना चाहिए।

आधुनिक ग्लूकोमीटर (रक्त में शकर की जाँच करने वाली मशीन) बाज़ार में उपलब्ध है। इससे घर पर ही शकर की जाँच की जा सकती है। कुछ लोगों का भ्रम है कि ग्लूकोमीटर शकर की मात्रा ज़्यादा बताता है, किंतु ऐसा नही है। उँगली से लिया हुआ एक बूँद खून पेरीफेरी केपीलरी का होता है और लेबोरेटरी की जाँच के लिए खून को वेन से लिया जाता है, इसलिए कुछ अंतर आना स्वाभाविक है। विश्व के सभी डायबिटीज़ संगठन ग्लूकोमीटर से ली गई शकर की जाँच को प्रामाणिक मानते हैं।

मधुमेह रोगियों में अक्सर ब्लड प्रेशर एवं अधिक कोलेस्ट्रॉल की समस्या भी पाई जाती है, जिससे किडनी एवं हृदय रोग की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए शकर के नियंत्रण के साथ-साथ ब्लड प्रेशर व कोलेस्ट्रॉल को भी नार्मल रखने के लिए प्रयास करना चाहिए(डॉ. अजीत के. जैन,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल चतुर्थांक 2012)।

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