अस्पताल में भर्ती मरीज़ से उसकी ख्वाहिश पूछी जाए तो वो जल्दी से ठीक होकर घर जाने की बात ही कहेगा। किसी भी मरीज़ और उसके परिजनों के लिए हॉस्पिटल से छुट्टी मिलना खुशी की बात होती है, लेकिन कैंसर जैसी बीमारी का उपचार पूरा होने पर हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने के बाद भी मरीज़ को पूरी राहत नहीं मिल पाती।
कैंसर का उपचार पूरा होने के बाद मरीज़ का सामना इन तीनों में से किसी एक स्थिति से होता है :
कम्पलीट रेमिशन
कैंसर का कोई भी लक्षण दिखाई न देना। इसका मतलब है कि मरीज़ कैंसरमुक्त (कम्पलीट रेमिशन) हो चुका है। पाँच साल तक कैंसर का कोई भी लक्षण सामने न आने पर व्यक्ति को बिलकुल ठीक मान लिया जाता है।
पारशियल रेमिशन
इलाज से कैंसर कम तो हो गया, लेकिन पूरी तरह ग़ायब नहीं हुआ। इस स्थिति को पार्शियल रेमिशन कहा जाता है जिसमें कैंसर पूरी तरह ख़त्म नहीं होताह ै। कुछ मरीज़ खासकर स्तन व प्रोस्टेट कैंसर के मरीज़ इस स्थिति के बाद भी कई सालों तक जी सकते हैं। लंबा जीवन जीने के बाद इनकी मृत्यु अक्सर कैंसर के अलावा किसी और कारम से होती है।
जब बेअसर हो इलाज़
कई मरीज़ों के कैंसर पर इलाज़ का कोई असर ही नहीं होता है।
इलाज पूरा होने के बाद चिकित्सक से अपनी स्थिति के बारे में पूरी जानकारी लें। अपने चिकित्सक से ये सवाल पूछ सकते हैं-
-आप में कैंसर के वापस आने या फैलने की कितनी आशंका है। क्या इसके अलावा किसी और प्रकार के कैंसर की आशंका भी है?
-आपको फॉलोअप के लिए कितनी बार आना होगा या कौन-कौन सी जाँचें करानी होंगी?
-स्वास्थ्य से जुड़ी किसी परेशानी के लिए किससे संपर्क करना होगा?
- किन लक्षणों के प्रति सतर्क रहना होगा?
-उपचार के कारण लंबे समय में किस प्रकार के दुष्प्रभाव हो सकते हैं? यदि हाँ तो ये कब प्रकट होंगे?
जब लौट जाए कैंसर
कैंसर के दोबारा फैलने की ख़बर से मरीज़ को गहरा सदमा लग सकता है। यह जानना पहली बार कैंसर का पता लगने से भी ज़्यादा मुश्किल हो सकता है। हो सकता है कि मरीज़ यह जानकर टूट जाए और उसमें फिर से इलाज लेने की हिम्मत भी न हो। इसके विपरीत कुछ मरीज़ों का मानना होता है कि वे दूसरी बार ज़्यादा सशक्त महसूस करते हैं।
ठीक होने के बाद
उपचार के पूरी तरफ सफल होने के बाद भी मरीज़ पहले से काफी अलग महसूस करते हैं। वे शारीरिक, भावनात्मक या दोनों ही रूप से फर्क महसूस करते हैं। कैंसर और उसके उपचार के कारण शरीर में कई परिवर्तन होते हैं, मरीज़ पहले के मुकाबले कमज़ोर महसूस करता है। कैंसर के इलाज के दुष्प्रभाव भी होते हैं, जिन्हें समझने और एडजस्ट होने में समय लग सकता है। भावनात्मक रूप से मरीज़ घबराहट महसूस करता है, उसे इस बात का डर सताता रहता है कि कहीं कैंसर दोबारा न लौट जाए। बीमारी के कारण मरीज़ का कामकाज भी प्रभावित होता है और बीमारी में हुए खर्च के कारण आर्थिक स्थिति भी चिंता का विषय हो सकता है। ऐसे में मरीज़ को दूसरों की मदद लेना चाहिए। स्थिति बहुत चिंताजनक हो तो काउंसलर की मदद भी ली जा सकती है।
इलाज़ के लिए यदि इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएं दी गई हों तो संक्रमण से बचने के लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत होती है। ऐसे में मरीज़ की संक्रमम से लड़ने की क्षमता कमज़ोर होती है।
इन बातों का ध्यान रखें
-दिन में ३ बार माउथवॉश का इस्तेमाल करें।
-खाने से पहले हाथों को अच्छी तरह से धोएँ मरीज़ का खाना बनाने में भी सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए। खाना स्वच्छता से पकाना चाहिए और बर्तन भी साफ होने चाहिए।
- टॉयलेट का इस्तेमाल करने के बाद और अन्य लोगों व पालतु जानवरों से संपर्क के बाद जल्दी से हाथ धोएँ।
-मरीज़ को मिलने से पहले परिजनों को हाथ ज़रूर धोना चाहिए। मरीज़ के कमरे की सफाई प्रतिदिन होनी चाहिए। प्रतिदिन नहाएं।
-मरीज़ को ताज़ा बना हुआ भोजना खिलाना चाहिए। खाना अच्छी तरह पका हुआ होना चाहिए।
-फलों को अच्छी तरह धोकर और छिलका निकालकर ही मरीज़ को दें।
-मलाई या अधकचरी चीजें खाने से बचें। कच्ची सलाद भी नहीं खाना चाहिए(डॉ. अनिल सिंघवी,सेहत,नई दुनिया,मार्च द्वितीयांक 2012)।
दिल चाहता है आपके ब्लॉग पर कभी ना झाँकूँ....
जवाब देंहटाएंमगर दिमाग भी दिया है भगवान ने सो आकर पढ़ती हूँ हर पोस्ट....
शुक्रिया जानकारी के लिए.
सादर.
पीठ की गाँठ को बायोप्सी के लिए भेजा है ।
जवाब देंहटाएंसचमुच डर लगता है भाई ।।
ईश्वर पर भरोसा रखें। शुभकामनाएं मान्यवर।
हटाएंachchha result hi aayega, har gaanth cancer ke kaaran nahi hoti...
हटाएंडरने की कोई वजह नहीं है .गांठ बिनाइन यानी असंक्राम्य (रोग हीन )भी हो सकती है .लिम्पोमा भी यानी फैटट्यूमर भी जो बिनाइन होता है .बहर -सूरत जानकारी से लैस होना ज़रूरी है .रोग की शिनाख्त के लिए ऊतक परीक्षण के लिए आप आगे आये यह एक सकारात्मक पहल है .डरने की कोई वजह नहीं है अँधेरे में क्यों पकड़ा जाए आदमी .'काचे काटो' रविकर भाई .मस्त रहो ."जब जब जो जो होना है ,तब तब सो सो होता है" ."तुलसी भरोसे राम के, रहयो खाट पे सोय ,अनहोनी होनी नहीं ,होनी होय सो होय .जो होता है ,अच्छा होता है ,हमारे हित में होता है ,ऐसा मेरा मानना बूझना है .चुकता होता है ऋण .
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
काश की यह जानकारी चार साल पहले मिली होती।
जवाब देंहटाएंडॉक्टर ने ठीक कह कर दिल्ली से वापस भेज दिया था, (पिताजी को) और उसके बाद जो बिस्तर पकड़े तो उठ नहीं पाए।
बहुत ही अच्छी और उपयोगी जानकारी है......
जवाब देंहटाएंachchi jankari.
जवाब देंहटाएंsach me achhi jankari aabhar ....
जवाब देंहटाएंअपने छोटे से कलेवर में बड़ी जानकारी समेटे है यह आलेख .
जवाब देंहटाएंबहुत सी जानकारियों को समेटे हुए विस्तृत आलेख ...आभार ।
जवाब देंहटाएंAapka aabhar...itni upyogi jaankari ke liye..aapko follow kiye
जवाब देंहटाएंbina blog ka aanand nahi liya jaa sakta