क्या आपके मिजाज में अचानक बदलाव आ जाता है? क्या आप अचानक खुश और दूसरे ही पल दुखी हो जाते हैं? तो फिर आप बाइपोलर डिसऑर्डर के शिकार हो सकते हैं।
गिरकर हौसला मत खोना, ठोकरें ही चलना सिखाती हैं।’ आज की पीढ़ी को शायद इसी सीख की सबसे ज्यादा जरूरत है, क्योंकि धैर्य की कमी के कारण अत्यधिक खुशी या गम उन्हें तनाव की ऐसी जिंदगी में ले जाता है, जहां से उबर पाना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन अब सावधान हो जाएं, क्योंकि व्यक्ति के मिजाज और व्यवहार में बदलाव महज तनाव नहीं है। यह ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ के लक्षण हो सकते हैं।
व्यवहार में बड़ा परिवर्तन, जैसे कई बातों को लेकर बहुत तनाव में रहना या फिर अचानक आत्मविश्वास का बहुत बढ़ जाना, मानो व्यक्ति का अपने मिजाज और व्यवहार पर कोई नियंत्रण ही न रह गया हो। यह बाइपोलर डिसऑर्डर नाम का मनोरोग हो सकता है। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार में तेजी से परिवर्तन आता है। कार्यस्थल, समाज या परिवार में किसी व्यक्ति के व्यवहार में तेजी से आए बदलाव को जानना और समझना बहुत ही आवश्यक है।
अनुमान है कि देश में लगभग एक फीसदी लोग इस बीमारी के शिकार है। महिला और पुरुष ही नहीं, बल्कि बच्चे भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं है। आमतौर पर 20 वर्ष की आयु में इस बीमारी की शुरुआत होती है, लेकिन अब 14 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों में भी इसके लक्षण देखे जा सकते हैं। इस बीमारी से बचने के लिए व्यक्ति का नजरिया और आत्मविश्वास बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। आप किस तरह खुद को संभालते और ढालते हैं, यही इस बीमारी को आपसे दूर रखने में मदद करता है।
व्यवहार में परिवर्तन को काफी समय तक न समझ पाने के कारण अक्सर इस बीमारी की पहचान नहीं हो पाती और व्यक्ति इससे वर्षों तक पीड़ित रहता है। नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों में भी यह बीमारी पाई जाती है। इसके अलावा मौसम में बदलाव भी इस बीमारी में बड़ा अहम रोल अदा करता है। सर्दी और पतझड़ के मौसम में इस बीमारी से पीड़ित लोगों में तनाव के लक्षण देखे जा सकते हैं।
तनाव के लक्षणों में दुखी रहना, ऊर्जा में कमी, इच्छा में कमी, आत्मविश्वास में कमी, मरने की इच्छा करना और नाउम्मीद होना शामिल है। गर्मी और वसंत के महीने में उन्माद के संकेत पाए जाते हैं। उन्माद के लक्षणों में बहुत अधिक खुशी, नींद की जरूरत घटना, बहुत अधिक बोलना, जोखिम लेना, अति आत्मविश्वास होना, बहुत अधिक खर्च करना आदि शामिल है।
डॉक्टरों का कहना है कि इस मर्ज से निपटने के लिए तनाव के प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके अलावा मरीज को अपनी नींद का समय तय रखना चाहिए और नशीले पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। इस बीमारी में आत्मविश्वास बनाए रखना और खुद पर नियंत्रण भी जरूरी होता है। साथ ही उन्हें दवा, मनोवैज्ञानिक इलाज और परिवार की काउंसलिंग आदि महत्वपूर्ण बातों का भी ख्याल रखना चाहए। इस बीमारी में दवाओं का सेवन लंबे समय तक करना पड़ता है।
ये बीमारी अधिकतर अनुवांशिक होती है। कई बार मस्तिष्क में रसायनों का असंतुलन या कुछ ऐसी घटनाएं और अपर्याप्त सामाजिक सहायता भी इस बीमारी का कारण बन सकती है। अब जब भी आप अपने मिजाज में उतार-चढ़ाव महसूस करें, बिना लापरवाही बरते इसकी जांच कराएं या फिर फैसला न कर पाने की स्थिति में डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। थोड़ी सी भी लापरवाही आगे चलकर बड़ी समस्या का सबब बन सकती है(हिंदुस्तान,दिल्ली,18.1.11)।
कई लोगों को तो इस बीमारी से ग्रसित होने के बारे में पता भी नहीं चल पाता होगा.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया जानकारी दि सर आपने ।
जवाब देंहटाएंबहोत अच्छे ।
नया ब्लॉग
http://hindidunia.wordpress.com/
ek jankari bhara laabhprad aalekh.
जवाब देंहटाएंऐसे मनोवैज्ञानिक विषयों पर जानकारी और जागरूकता ज़रूरी है.....आभार
जवाब देंहटाएंWelcome to www.funandlearns.com
जवाब देंहटाएंYou are welcome to Fun and Learns Blog Aggregator. It is the fastest and latest way to Ping your blog, site or RSS Feed and gain traffic and exposure in real-time. It is a network of world's best blogs and bloggers. We request you please register here and submit your precious blog in this Blog Aggregator.
Add your blog now!
Thank you
Fun and Learns Team
www.funandlearns.com
acchi jankari di hai aapne...
जवाब देंहटाएंआज कल की व्यस्त दिनचर्या वाले जीवन में इस बीमारी के कम होने की संभावना कम ही दिखती है.
जवाब देंहटाएंऐसा लगता है की सभी इस बिमारी से कुछ न कुछ अंश तक जुड़े हुए हैं ..अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंupyogi jaankari dene ke liye shukriya
जवाब देंहटाएं