शनिवार, 7 जनवरी 2012

चेहरे की त्वचा का सीधा संबंध आपकी उम्र से है

उम्र बढ़ती जाती है और त्वचा की कांति भी ढलती जाती है। चेहरे पर ऐसी झुर्रियाँ उभर आती हैं जो पहले दिखाई नहीं देती थीं। मुस्कुराने, खाना खाने, हँसने और आँखों के मिचमिचाने के निशान चेहरे पर बड़ी उम्र के बाद ही दिखाई देने लगते हैं। पहले जिन ऊतकों के कारण त्वचा तरोताजा और भरीपूरी नजर आती थी, वे समय पाकर टूटने लगती हैं। इसलिए चेहरे पर झुर्रियाँ और बारीक-बारीक रेखाएँ उभर आती हैं। बुढ़ापा आनुवांशिक तौर पर नियंत्रित जैविक घड़ी के हिसाब से ही आता है। पर्यावरण और वातावरण के प्रदूषण का भी हमारी शारीरिक क्रियाशीलता पर असर डालता है। इसका कुप्रभाव भी हमारे चेहरे पर दिखाई देने लगता है। 

बुढ़ापा पूरे शरीर पर एकसाथ पैर पसारता है। चेहरे पर इसका असर अधिक तीव्रता के साथ दिखाई देता है। अल्ट्रावायलेट लाइट, मेटॉबोलिक प्रोसेस के कारण सेल टिश्यूज का क्षरण होना और खत्म होना आदि भी ऐसे कई कारण हैं जिनसे शारीरिक बुढ़ापा आ जाता है। बुढ़ापे को आने से नहीं रोका जा सकता है, लेकिन कई उपाए हैं जिनसे इसे दूर तो निश्चित ही ढकेला जा सकता है। एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर आहार न सिर्फ बुढ़ापे को टाल सकता है बल्कि कई तरह की स्थाई क्षति को भी रिपेयर कर सकता है। 

उम्र का असर 
जब आप उम्र के दूसरे दशक में होते हैं तब शरीर में ढेर सारे परिवर्तन होते हैं। मसलन हारमोन्स का उतार-चढ़ाव शरीर को अंदर और बाहर से हिलाकर रख देता है। भारतीयों की त्वचा पर धूप का कोई खास असर नहीं होता लेकिन तैलीय त्वचा पर एक्ने उगने लगते हैं। युवावस्था में प्रतिरक्षा प्रणाली बिलकुल ठीक रहती है, इसलिए क्षतिग्रस्त कोलेजन रिपेयर होते रहते हैं। यदि त्वचा बहुत अधिक देर तक धूप में रहती है तो कोलेजन के कारण त्वचा सतह में परिवर्तन आ जाता है। 

उम्र के तीसरे दशक में त्वचा पर स्थाई प्रभाव पड़ने लगता है। इसी दशक में आनुवांशिक लक्षणों, त्वचा का प्रकार तथा धूप के प्रभाव के कारण कोलेजन का भी तेजी से क्षरण होता है। इसलिए चेहरे के मूलाकार में परिवर्तन होने लगता है। देखने से ऐसा लगता है कि पहले यह गुब्बारे की तरह फूला था अब लगता है जैसे हवा निकल गई है। इसी के कारण गरदन की त्वचा भी लटकने लगती है। आँखों और होठों की किनोरों पर झुर्रियों की बारीक रेखा दिखाई देने लगती है। त्वचा का लचीलापन भी कम होने लगता है, नमी भी कम होने लगती है। अल्ट्रावायलेट रेडिएशन से सुरक्षा में लगी सेंध से त्वचा पर झाइयाँ पड़ने लगती हैं। 

उम्र के चालीसवें दशक में हार्मोन्स का स्तर तेज़ी से घट-बढ रहा होता है। इससे मांसपेशियों का लचीलापन,बोन्स रेस्पोरेशन,कोलेजेन डी-जेनरेशन,इलास्टीन डी-जेनरेशन होता है तथा कुल चर्बी में कमी होने लगती है। त्वचा में मौजूद सेबासियस ग्लेंड्स उत्पादन कम कर देती है जिससे त्वचा सूखी और पतली होने लगती है। इससे झुर्रियां पड़ने लगती हैं। इस उम्र में धूप से त्वचा के खराब होने का सीधा असर दिखाई देने लगता है। त्वचा अपना मूल रंग और चमक खो बैठती है। अधिकांश महिलाओं में रजोनिवृत्ति के कारण एस्ट्रोजेन हार्मोन बनना बंद हो जाता है। इससे ऊतकों पर उम्र का असर तेज़ी से होने लगता है। 

उम्र के पांचवें दशक में कोलेजेन ब्रेकडाउन अधिक तेज़ी से दिखाई देता है। आंखों और मुंह के किनारों पर ऱझुर्रियां साफ दिखाई देने लगती हैं। त्वचा ढीली होकर लटकने लगती है। बाहरी वातावरण की मार का सामना त्वचा नहीं कर पाती और बदरंग हो जाती है। 

महिलाओं की त्वचा जल्दी खराब होती है 
 महिलाओं और पुरुषों की त्वचा की बनावट में काफी फर्क होता है। इसी फर्क के चलते त्वचा की रक्षा के लिए बने कई उत्पाद एक दूसरे के काम नहीं आ पाते। इस फर्क में आनुवांशिकता, आंतरिक बनावट आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आमतौर पर देखा गया है कि पुरुषों की त्वचा महिलाओं की तुलना में धूप या बाहरी वातावरण के अधिक संपर्क में आती है। रोजाना शेविंग करने से लिपिड बैरियर्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इस तरह उनके चेहरे की त्वचा से प्राकृतिक चिकनाई और सुरक्षा निकल जाती है। पुरुषों की त्वचा में तैलीय ग्रंथियां छोटी होती हैं। चूंकि त्वचा की देखभाल के लिए लगाए जा रहे सौंदर्य प्रसाधनों का अवशोषण इन्हीं ग्रंथियों के माध्यम से होता है इसलिए,बहुत मोटे अणुओं से बने उत्पाद त्वचा के अंदर तक नहीं पहुंच पाते। तैल ग्रंथियां छोटी होने का अर्थ यह नहीं है कि त्वचा तैलीय नहीं होगी। टेस्टोस्टेरोन हार्मोन्स के प्रभाव के कारण पुरुषों की त्वचा अधिक तैलीय होती है। अधिक तैलीय होने के कारण पुरूषों को एक्ने या मुहांसे आदि की समस्या अधिक प्रबल होती है। पुरूषों की त्वचा महिलाओं की अपेक्षा अधिक मोटी होती है(डॉ. अप्रतिम गोयल,सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर चतुर्थांक 2011)। 


झुर्रियों पर डाक्टर अनवर जमाल जी का आलेख भी देखिए।

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है।
    त्वचा पर माहौल के अलावा खान पान का असर भी पड़ता है।
    हमारी ही तरह हमारी त्वचा भी पोषण मांगती है।
    यह सीधे ही ग्रहण करती है।
    अंडा इसके लिए एक उपयुक्त आहार है।
    इसे आप दो लिंक्स पर देखें-

    1- स्किन को भी चाहिए स्पेशल फूड Special Food
    http://aryabhojan.blogspot.com/2011/06/special-food.html

    2- क्या दफ्तर में आप उनींदे रहतें हैं ? यदि हाँ तो चौकन्ना रहने के लिए खाइए अंडे.
    http://sb.samwaad.com/2012/01/blog-post.html

    जवाब देंहटाएं
  2. अंडे के साथ ही मछली का तेल भी बहुत लाभकारी पाया गया है।
    11 लाभ हमारे ब्लाग पर .

    जवाब देंहटाएं
  3. रासायनिक परिवर्तन तो उम्र के साथ होना ही है. किन्तु डा साब पर इसका असर नहीं होना चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  4. achhi hai rachna ,
    एक नए ब्लागर के लिए लिखने से अधिक पढ़ना सुविधाजनक होता है.
    हिंदी में टिप्पणी करना भी अभी कठिन है.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी जानकारी दी है आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी जानकारी .ब्लॉग पर आपकी टिप्पणियों के लिए शुक्रिया .

    जवाब देंहटाएं
  7. अत्यंत ही ज्ञान वर्धक आलेख आभार

    जवाब देंहटाएं

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।