रविवार, 30 अक्तूबर 2011

नवजात में आँख के परदे की समस्याएँ

समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों में अंधापन रेटिनोपैथी या आरओपी का मुख्य कारण है। मुख्यतः,ऐसे नवजात शिशु जिनका जन्म 31 सप्ताह पहले हो एवं वज़न 1.2 किलोग्राम से कम हो,उनमें यह समस्या हो सकती है। बच्चा जितनी जल्दी पैदा होता है,रेटिनोपैथी का ख़तरा उतना ही ज्यादा होता है। अधिकतर मरीज़ों में यह बीमारी दोनों आंखों में होती है और यही अंधेपन का प्रमुख कारण होता है। समय से पहले जन्मे औसतन २१-४० प्रतिशत शिशुओं में यह बीमारी देखी जाती है। इससे प्रभावित कुल शिशुओं में से ९० प्रतिशत बच्चों में बीमारी मामूली होती है और बिना इलाज के भी ठीक हो सकती है। बाकी १० प्रतिशत शिशुओं में यह बीमारी गंभीर होती है। इनका यदि समय पर इलाज न हो तो यह बीमारी अंधेपन में बदल जाती है। बच्चों में आँखों की दूसरी बीमारियाँ जैसे परदे का खिसकना, दूर की दृष्टि के रोग, तिरछापन आदि की संभावना ज़्यादा रहती है। 

कारण... 
गर्भावस्था में आँख १६ सप्ताह के अन्तराल में बनना शुरू होती है। गर्भावस्था के आखिरी १२ सप्ताह में आँख पूरी तरह विकसित होती है। यह आखिरी का विकास बहुत तेज़ी से होता है। सही समय पर पैदा होने वाले बच्चों में रेटीना पूरी तरह विकसित हो जाता है, लेकिन समय से पहले जन्मने वाले बच्चों में रेटीना के बाहरी हिस्से का विकास पूरी तरह नहीं हो पाता। इसके कारण बाहरी हिस्से को पोषण नहीं मिल पाता और नई असामान्य रक्त वाहिनियाँ बन जाती हैं। ये रक्त वाहिनियाँ बहुत कमज़ोर होती हैं एवं जल्दी फट सकती है तथा रेटीना पर स्कारद्ध निशान बनाती है, जो परदे को खींचकर उसको जगह से हटा सकता है। 
-  अपरिपता एवं खून की कमी। 
- साँस की तकलीफ। 
- बच्चे का रक्त ट्रांसफ्युशन। 
- सामान्य स्वास्थ्य की कमी। 

इलाज के तरीके 
इलाज के लिए सबसे लाभदायक है लेज़र थेरेपि या क्रायोथेरेपि जो रेटीना के बाहरी हिस्से में बनी हुई असामान्य रक्त वाहिनियों को खत्म कर देती है या कम कर देती है। इससे अंदरूनी ज़रूरी दृष्टि बनी रहती है, जिससे पढ़ना, सिलना, वाहन चलाना आदि संभव है। लेज़र थेरेपि या क्रायोथेरेपि की जाती है, लेकिन इसका दुष्प्रभाव यह है कि इससे बाहरी दृष्टि कम हो जाती है। इलाज करने से आंखों की रोशनी कई बार बच जाती है,परन्तु हमेशा नहीं। कुछ बच्चों में इलाज़ के बावजूद बीमारी रहती जाती है और अंधापन आ जाता है। 

क्या कर सकते हैं 
समय से पहले पैदा होने वाले शिशु की आंखों के पर्दे की जांच रेटिना विशेषज्ञ द्वारा आवश्यक रूप से कराएं। सही समय पर इलाज़ करने से बच्चे की आंख को बचाया जा सकता है(डॉ. राजीव रमन,सेहत,नई दुनिया,अक्टूबर,2011 द्वितीयांक)। 
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6 टिप्‍पणियां:

  1. नवजातों में भी आंख की समस्‍या ?
    बिल्‍कुल नई जानकारी !!

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  2. इतनी अच्छी जानकारी पहले कभी पढ़ी ही नहीं थी।

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  3. अच्छी और उपयोगी जानकारी मिली|

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  4. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ!

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