पेट में अल्सर की समस्या बेहद आम है । कई बार सही समय पर इसका उपचार न करने पर यह जानलेवा भी साबित होता है । बात करें अल्सर के मुख्य कारणों की तो सबसे पहले ध्यान देना चाहिए आहार पर । भोजन में अधिक उड़द व कुल्थी की दाल, खट्टी दही, सरसों, लहसुन, भारी व बादी भोजन, भैंस, सूअर व मछली का मांस, अति कड़वा और तीखा भोजन, सिरका, मदिरा आदि के सेवन से अल्सर की स्थिति पैदा हो सकती है । न सिर्फ भोजन बल्कि आपकी दिनचर्या का भी इसपर प्रभाव पड़ता है । आवश्यकता से अधिक व्यायाम या भागदौड़, बहुत ज्यादा पैदल चलना, अधिक बोलना, धूप व अग्नि से अधिक संपर्क, अत्यधिक क्रोध एवं भय भी इस बीमारी की आशंका को बढ़ाते हैं । इन सब कारणों से रक्त दूषित होता है और इसमें पित्त की मात्रा बढ़ जाती है जिससे अल्सर की उत्पत्ति होती है।
इसकी चिकित्सा के लिए सबसे अधिक जरूरी है खान-पान व दिनचर्या पर संयम जिसपर ध्यान देकर इसे प्रारंभिक अवस्था में भीतर ही दबाया जा सकता है । भोजन में मीठे और कड़वे आहार का संयमित रूप से सेवन करें । नहाने व पीने के लिए शीतल जल का ही उपयोग करें । शरीर की मालिश करवाते रहें । भोजन में पुराना साठी चावल, जौ, मूंग-मसूर की दाल, परवल, लौकी, पतली मूली, प्याज, खरगोश, तीतर व बटेर के मांस का सेवन हितकारी है । बकरी व गाय के दूध और उसके बने घी व मक्खन लें । इसके अलावा आंवला, खजूर, सिंग्घाड़ा, मुनक्का, किशमिश, नारियल का पानी, गन्ने का रस, चीनी व मिश्री आदि का सेवन करें । मल-मूत्र के वेग को रोकना, अत्यधिक मैथुन, धूम्रपान, मद्यपान, अत्यधिक व्यायाम आदि इस बीमारी में बहुत घातक सिद्ध हो सकते हैं इसलिए इनसे बचने की कोशिश करें। आयुर्वेद में इस बीमारी के उपचार के लिए कुछ कारगर औषधियां हैं जिन्हें चिकित्सक की देखरेख में लेना लाभकारी है । ये दवाएं हैं - उषीर आदि चूर्ण, प्रवाल पंचामृत, स्वर्ण गैरिक, प्रवाल पिष्टी, मुक्ता पिष्टी, स्वर्ण माणिक भस्म, शतावरी घृत आदि (डॉ. आकाश परमार,संडे नई दुनिया,18 सितम्बर,2011)
पेट के अल्सर के कई रूप हैं लेकिन सामान्यतया पेप्टीक या गैस्ट्रीक अल्सर हमारे शरीर के पाचन तंत्र में होने वाली सूजन और अल्सर या जख्म का मिला-जुला रूप है । यह अल्सर भोजन की थैली से लेकर छोटी या बड़ी आंत में, कहीं भी हो सकता है लेकिन यहां ज्यादातर छोटी आंत में होने वाली सूजन या खाने की थैली में होने वाला अल्सर आजकल सामान्य रोग होता जा रहा है । यदि इसका समय पर उपचार और प्रबंधन न हो तो यह और गंभीर हो सकता है । इसके गंभीर रूपों में अल्सरेटिव कोलाइटिस, क्रांस सिंड्रोम, टॉक्सिक मेगाकॉलन आदि हो सकते हैं ।
इसके मुख्य लक्षणों में डायरिया, मल के साथ म्यूकस अथवा खून, पेट में दर्द, बुखार, चिड़चिड़ापन, वजन में कमी, कमजोरी, जोड़ों में दर्द आदि प्रमुख हैं । गैस्ट्रीक अल्सर के मरीज को नियमित अपने चिकित्सक के संपर्क में रहना चाहिए ताकि मरीज को समय पर उचित उपचार मिलता रहे । यों तो इस रोग का कारण ज्ञात नहीं होता फिर भी अनियमित खान-पान, तनाव, बिगड़ी जीवनशैली आदि को इस रोग का कारक माना जाता है ।
गैस्ट्रीक अल्सर की आरंभिक अवस्था का होम्योपैथी में बेहतर उपचार है बशर्ते किसी अनुभवी व योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से समय-समय पर नियमित परामर्श लिया जाए । रोग के गंभीर होने पर जैसे एलोपैथी में इसकी मुक्कमल चिकित्सा नहीं हो पाती, वैसे ही होम्योपैथी में भी दिक्कतें आती हैं, फिर भी होम्योपैथिक उपचार को इसलिए बेहतर बताया जा सकता है कि इसमें दवा का कुप्रभाव शून्य होता है । होम्योपैथी की दवाओं में आर्जेंटम नाइट्रिकम, आर्सेमिक अल्ब, विस्मथ, क्रोटेलस एच, जिरेमियम, हेमामेलिस, सल्फर सहित सैकड़ों प्रभावी दवाएं गैस्ट्रीक अल्सर के उपचार में प्रभावी हैं लेकिन इसका चयन रोगी की शारीरिक और मानसिक लक्षणों के साम्यता के आधार पर किया जाता है। इसलिए सलाह है कि सही समय पर किसी अच्छे होम्योपैथिक चिकित्सक से उपचार का परामर्श अवश्य ले लें । (डॉ. ए.के. अरुण ,संडे नई दुनिया,18 सितम्बर,2011)। प्रस्तुतिःप्रियंका पांडेय पाडलीकर।
पेट के अल्सर के कई रूप हैं लेकिन सामान्यतया पेप्टीक या गैस्ट्रीक अल्सर हमारे शरीर के पाचन तंत्र में होने वाली सूजन और अल्सर या जख्म का मिला-जुला रूप है । यह अल्सर भोजन की थैली से लेकर छोटी या बड़ी आंत में, कहीं भी हो सकता है लेकिन यहां ज्यादातर छोटी आंत में होने वाली सूजन या खाने की थैली में होने वाला अल्सर आजकल सामान्य रोग होता जा रहा है । यदि इसका समय पर उपचार और प्रबंधन न हो तो यह और गंभीर हो सकता है । इसके गंभीर रूपों में अल्सरेटिव कोलाइटिस, क्रांस सिंड्रोम, टॉक्सिक मेगाकॉलन आदि हो सकते हैं ।
इसके मुख्य लक्षणों में डायरिया, मल के साथ म्यूकस अथवा खून, पेट में दर्द, बुखार, चिड़चिड़ापन, वजन में कमी, कमजोरी, जोड़ों में दर्द आदि प्रमुख हैं । गैस्ट्रीक अल्सर के मरीज को नियमित अपने चिकित्सक के संपर्क में रहना चाहिए ताकि मरीज को समय पर उचित उपचार मिलता रहे । यों तो इस रोग का कारण ज्ञात नहीं होता फिर भी अनियमित खान-पान, तनाव, बिगड़ी जीवनशैली आदि को इस रोग का कारक माना जाता है ।
गैस्ट्रीक अल्सर की आरंभिक अवस्था का होम्योपैथी में बेहतर उपचार है बशर्ते किसी अनुभवी व योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से समय-समय पर नियमित परामर्श लिया जाए । रोग के गंभीर होने पर जैसे एलोपैथी में इसकी मुक्कमल चिकित्सा नहीं हो पाती, वैसे ही होम्योपैथी में भी दिक्कतें आती हैं, फिर भी होम्योपैथिक उपचार को इसलिए बेहतर बताया जा सकता है कि इसमें दवा का कुप्रभाव शून्य होता है । होम्योपैथी की दवाओं में आर्जेंटम नाइट्रिकम, आर्सेमिक अल्ब, विस्मथ, क्रोटेलस एच, जिरेमियम, हेमामेलिस, सल्फर सहित सैकड़ों प्रभावी दवाएं गैस्ट्रीक अल्सर के उपचार में प्रभावी हैं लेकिन इसका चयन रोगी की शारीरिक और मानसिक लक्षणों के साम्यता के आधार पर किया जाता है। इसलिए सलाह है कि सही समय पर किसी अच्छे होम्योपैथिक चिकित्सक से उपचार का परामर्श अवश्य ले लें । (डॉ. ए.के. अरुण ,संडे नई दुनिया,18 सितम्बर,2011)। प्रस्तुतिःप्रियंका पांडेय पाडलीकर।
आप दे रहे हैं लाभकारी जानकारी !
जवाब देंहटाएंआभार !
http://ancient-ayurveda.blogspot.com/
न सिर्फ़ सचेत करती रचना बल्कि उचित मार्गदर्शन भी मिला।
जवाब देंहटाएंहमलोग जरुर लाभ उठाएंगे....आभार
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी दे रहे है…………आभार
जवाब देंहटाएंलाभकारी जानकारी
जवाब देंहटाएंघरेलु , आयुर्वेदिक , होमियोपेथिक --सब इलाज बता दिए ।
जवाब देंहटाएंएलोपेथी में बस एक किस्म की गोली से ठीक किया जा सकता है । :)
mostly thank you aayurveda.
जवाब देंहटाएंmostly thank you aayurveda.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा पन्ना है। आपका बहुत बहुत आभार!!
जवाब देंहटाएंमेरी पत्नी को अल्सरेटिव कोलारिटिस बीमारी हो गई है उन्हें आगरा में प्रतिष्ठित डॉक्टर को दिखाया है 10 माह से एलोपेथिक दवाई चल रही है लेकिन कोई फर्क नहीं है आप सलाह दीजिये क्या करना चाहिए ।
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