बुधवार, 6 जुलाई 2011

फूड पॉयजनिंगःकारण,लक्षण और बचाव

देश में हर साल २ करोड़ से भी अधिक लोग फूड पॉयजनिंग के शिकार होते हैं। इसके लिए व्यक्तिगत साफ-सफाई एवं भोजन की शुद्धता का अभाव प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। भोजन करने से पहले साबुन से हाथ धोने की आदत बहुत कम लोगों में पाई जाती है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में ६० प्रतिशत लोग भोजन से पहले हाथ धोने में यकीन नहीं रखते। इसी तरह ४० प्रतिशत लोग शौच से आने के बाद हाथ नहीं धोते। बारिश में नमी और उमस के कारण भोजन बहुत जल्दी खराब हो जाता है। इस संक्रमित भोजन के प्रयोग से फूड पॉयजनिंग की शिकायत होती है।

बारिश के मौसम में खाद्य पदार्थों में बहुत जल्दी बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं। खुले में रखा गया भोजन भी जल्दी संक्रमित हो जाता है। मक्खियों का प्रकोप भी इन दिनों काफी होता है। स्ट्रीड फूड इस मौसम में सबसे ज्यादा नुकसानदायक होता है। इसके अलावा मिलावटी खाद्यान्ना जैसे तुअर की दाल में खेसरी की दाल की मिलावट कई शारीरिक समस्याओं को जन्म देती है।

क्या हैं लक्षण...
दूषित भोजन का संक्रमण शरीर में पहुँचने से हाजमे पर सीधा असर होता है। मितली, उल्टियाँ, दस्त और पेटदर्द इसके प्रमुख लक्षण हैं। फूड पॉयजनिंग का अर्थ है दूषित पेय अथवा खाद्य पदार्थों का शरीर में पहुँचना। माइक्रो ऑर्गेनिज्म और बैक्टीरिया द्वारा भोजन में छोड़े गए विषैले तत्वों के कारण यह समस्या पैदा होती है। इन समस्याओं के साथ अक्सर मरीज को बुखार, माँसपेशियों में दर्द, हरारत के साथ कंपकंपी और बेहद थकान महसूस होती है।

माइक्रोऑर्गेनिज्म का शरीर में प्रवेश

-जो भोजन बासी हो चुका है और खुले में रखा है, जिसमें माइक्रो ऑर्गेनिज्म पैदा हो चुके हैं। वैसा भोजन करने पर कीटाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

-भोजन पकाने वाले के हाथ ठीक से न धुले हों । भोजन करने वाले के हाथ ठीक से न धुले हों, तब संक्रमण पेट तक पहुँच जाता है।

-कंपीलोबक्टर नामक संक्रमण दूध और मुर्गों में पनपता है। इसके अलावा साल्मोनेल्ला, लिस्टिरिया, शिंगेला और क्लोसट्रिडिया नामक बैक्टीरिया का संक्रमण भी शरीर में भोजन के जरिए पहुँचता है। कुछ रोगाणुओं के लक्षण प्रकट होने में चंद घंटे लगते हैं, कुछ संक्रमण चंद दिनों का समय लगाते हैं। ई-कोलाई नामक गंभीर संक्रमण सौभाग्य से इतना आम नहीं है।

कैसे बचें...
-भोजन बनाने से पहले बहुत अच्छे झागदार साबुन से हाथ धो लें।
-टॉयलेट से आने के बाद तथा पालतू जानवरों के साथ खेलने के बाद हाथ जरूर धोएँ। पालतू जानवरों को भोजन से दूर रखें।
-यह सुनिश्चित करें कि भोजन ताजा पकाया हुआ हो और ढँक कर रखा गया हो। किचन का ओटला हमेशा साफ रखें।
-सब्जियों और फलों को पोटेशियम परमैग्नेट से धोएँ।
-बासी भोजन को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाने की कोशिश न करें।

सावधानियाँ..
-महिला मरीज एवं किसी रेस्टॉरेंट के रसोइए को भोजन पकाने के काम से तत्काल छुट्टी दी जानी चाहिए।
-स्ट्रीट फूड खाने से बचना चाहिए। पहले से काटकर रखे गए सलाद से बचना चाहिए।
-किसी बड़े भोज में शामिल होने पर पका हुआ भोजन ही करें।
-घर के रेफ्रिजरेटर की नियमित रूप से सफाई करें। इसमें फंगस बहुत जल्दी पनपती है।
-सड़क के किनारे मिलने वाले फ्रूट ज्यूस पर भरोसा न करें।
-यह फायदे के स्थान पर नुकसान कर सकता है।

उपचार
पेट के अधिकतर संक्रमण 24 से 48 घंटों तक असर दिखाकर शिथिल हो जाते हैं। इस अवधित में उल्टियों और दस्तों के जरिए शरीर से जल तत्वों का बड़ी मात्रा में निस्तारण होता है। निर्जलीकरण से बचने के लिए उबालकर ठंडा किया हुआ पानी लगातार पीना चाहिए। ओआरएस का घोल नियमित अंतराल से लेना चाहिए। कई मरीज़ों को एंटीबायोटिक्स देने की ज़रूरत पड़ती है। इसके लिए पहले स्टूल टेस्ट किया जाना चाहिेए।
(डॉ. अनिल भदौरिया,सेहत,सेहत,नई दुनिया,जुलाई 2011 प्रथमांक)

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