शनिवार, 11 जून 2011

गर्भ के दौरान ही नहीं,उसके बाद भी पौष्टिक आहार लेना ज़रूरी

गर्भाधान करने से लेकर बच्चे के 2 साल के होने तक का अरसा 1000 दिनों का होता है। यह बड़ा गहरा और परिवर्तनकारी अहसास होता है। यही समय माँ औऱ बच्चे के जीवन भर के स्वास्थ्य व पोषण-स्तर को तय करने में अहम भूमिका निभाता है। यदि इस वक्त में माता की पोषण संबंधी ज़रूरतें पूरी न हो पाएं तो बच्चे पर इसका स्थायी प्रभाव हो सकता है।

अच्छा पोषण स्त्री को मातृत्व के लिए तैयार करने में मददगार होता है। गर्भावस्था और फिर स्तनपान कराने के दौरान एक स्त्री कई जटिल प्रक्रियाओं से गुज़रती है जिनमें सही मात्रा में आवश्यक पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है जैसे कि डीएचए, आयरन, प्रोटीन, विटामिन और खनिज। ये पोषक तत्व जच्चा-बच्चा दोनों के लिए अहम होते हैं। पोषण न मिलने पर महिला रक्त अल्पता या गर्भावस्था संबंधित अन्य बीमारियों की चपेट में आ सकती हैं। पूरा पोषण न मिलना एक अहम वजह है, जिसके चलते प्रतिवर्ष लाखों माताएँ और ५ साल से कम उम्र के बच्चे मौत का शिकार हो जाते हैं।

गर्भावस्था के दौरान पोषण की बहुत ज़रूरत रहती है ताकि गर्भस्थ शिशु का विकास सही तरीके से हो सके। बच्चे की सेहत और वृद्धि सही रहे तथा माता का गर्भाशय, प्लेसेंटा और एम्नियोटिक द्रव सही ढंग से काम करे। इस अवस्था में स्त्री को ज्यादा कैलोरी, प्रोटीन, प्रमुख विटामिनों व विभिन्न महत्वपूर्ण खनिजों की जरूरत रहती है ताकि गर्भस्थ शिशु का विकास समुचित ढंग से होता रहे। इसी प्रकार स्तनपान के दौरान यह सुनिश्चित करना अहम हो जाता है कि माता को पूरा पोषण मिले। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि शिशु माता के शरीर में मौजूद पुष्टिकरों के भंडार पर निर्भर होता है और माता के शरीर में उपलब्ध पौष्टक तत्वों की मात्रा और गुणवत्ता माता के दूध की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

गर्भावस्था में ज्यादा कैलोरीज़ की ज़रूरत है,इसका मतलब यह नहीं कि अतिरिक्त कैलोरीज़ ली जाए। अधिक खाने की बजाए विविध किस्म के खाद्य पदार्थ लेने पर ध्यान देना चाहिए ताकि संपूर्ण पोषण मिल सके। विभिन्न प्रकार के फल व सब्जियां खाने से सही मात्रा में पोषण मिलता है,जो इन 1000 दिनों में सबसे अहम होता है। भावी मांएँ अतिरिक्त पूरक आहार ले सकती हैं क्योंकि कई बार दैनिक भोजन से पर्याप्त मात्रा में फल,सब्जियां तथा अन्य पौष्टिक आहार लेना संभव नहीं हो पाता। यदि दैनिक आहार से पोषण की आवश्यकता पूरी न हो पाए,तो यह चिंता की बात है। इसलिए,विविध आहार के साथ फूड सप्लीमेंट्स और फोर्टिफाइड फूड जैसे तरीकों को भी अपनाया जा सकता है।

सिर्फ प्रसव के समय तक नहीं
सिर्फ प्रसव के समय तक ही ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि उससे आगे भी उतना ही ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि स्तनपान के दौरान भी स्त्री को भरपूर पोषण मिलना चाहिए। अच्छे पोषण से स्तन के दूध की गुणवत्ता बेहतर होती है, और साथ ही स्त्री को बच्चे के जन्म के पश्चात्‌ फिर से अपने शरीर को सेहतमंद बनाने में मदद मिलती है। अच्छे पोषण से ही माँ के शरीर में अच्छा दूध बनता है और उसका अच्छा असर शिशु की वृद्धि में देखने को मिलता है क्योंकि पहले ६ महीनों तक माँ का दूध ही बच्चे के लिए सभी तरह के ज़रूरी पुष्टिकरों का एकमात्र स्त्रोत होता है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं को डीएचए, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फोलेट व अन्य ज़रूरी विटामिन्स और खनिजों की पूर्ति हो ताकि शिशु का सही विकास एवं वृद्धि हो पाए। डीएचए मस्तिष्क एवं तंत्रिका तंत्र के विकास में विशिष्ट भूमिका अदा करता है इसलिए अगर माँ के शरीर में डीएचए का स्तर ठीक नहीं होगा तो इससे शिशु के शरीर में भी डीएचए का स्तर गिर जाएगा, नतीजतन शिशु का विकास पर विपरीत असर पड़ेगा। मातृत्व स्त्री के जीवन के सबसे सुखद क्षणों में से एक है। बहुत जरूरी है कि वह इसका आनंद ले और एक स्वस्थ जीवन को इस दुनिया में लाए। अपने शरीर की पोषण संबंधी ज़रूरतों का ख्याल रखकर आप अपने बच्चे के जीवन भर के स्वास्थ्य और पोषण के उत्तम स्तर को भी सुनिश्चित कर रही है। इसके अलावा पर्याप्त पोषण एवं पूरक आहार द्वारा पुष्टिकरों की आपूर्ति से गर्भावस्था की कई जटिलताओं से भी बच सकती हैं(डॉ. मनिका खन्ना,सेहत,नई दुनिया,जून प्रथमांक 2011)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस लेख में बतायी बाते, सारी की सारी काम की है, ये बात अलग है कि मानते कितने है।

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  2. सर ...महिलाओं के योग्य सुन्दर जानकारी !

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