गुरुवार, 9 जून 2011

आपका घर भी आपको कर सकता है बीमार

कभी सोचा है कि जिस घर को आप दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह समझते हैं, वो ही आपको बीमार कर सकता है? यदि नहीं तो जान लीजिए कि "सिक होम सिंड्रोम" नाम की एक समस्या होती है, जिसकी सबसे अधिक शिकार महिलाएँ होती हैं। "घर" की वजह से आपकी आँखों में पानी आने की शिकायत हो सकती है, नाक और गले में जलन पैदा हो सकती है। त्वचा में जलन के साथ ही आपकी सूँघने और स्वाद लेने वाली ग्रंथियों की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है। सिर्फ धरती का वातावरण प्रदूषित होने अथवा ग्लोबल वॉर्मिंग या ओजोन लेयर में छेद होने से ही सेहत खराब नहीं होती, बल्कि घर के सुरक्षा कवच में हुआ छोटा सा सुराख भी तबीयत खराब कर सकता है।

संभव है कि आपने घर बहुत मनोयोग से बनवाया हो, लेकिन इसमें खराबी हो तो यह आपको बहुत बीमार भी कर सकता है। आपके स्वास्थ्य का दारोमदार बहुत सारे घटकों पर निर्भर होता है। आपके घर में हवा, पानी और प्रकाश की क्या व्यवस्था है और आप कैसे वातावरण में साँस ले रहे हैं, पेयजल कितना शुद्ध है, भोजन कितना संक्रमित है अथवा अन्य तरह के संक्रमण पर आपका शरीर किस तरह की प्रतिक्रिया कर रहा है, इसमें आपकी सेहत का राज छुपा है। घर से निकलने वाले प्रदूषण से परिवार के सभी सदस्य अपनी-अपनी तरह से प्रभावित होते हैं। कुछ सदस्यों की घर में घुसते ही तबीयत खराब हो जाती है। दरअसल, साफ-सफाई रहित घरों में से न्यूरोटॉक्सिक पदार्थ निकलते रहते हैं, जो साँसों के जरिए अथवा संपर्क में आने पर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

किचन,टायलेट्स और बेडरूम से बैक्टीरिया,वायरस औऱ अन्य तरह के संक्रमण लग सकते हैं। एयर कंडीशनर,कूलर,गलीचे,परदे,किताबों का रैक,सीढियों के नीचे रखा हुआ अटाला आदि से संक्रमण हो सकता है। यदि घर में सूर्य का प्रकाश तथा वेंटिलेशन ठीक से न हो तो संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। घर के आसपास के गड्ढों में जमा पानी मच्छरों का स्वर्ग बन जाता है। वेक्टरजनित बीमारियां जैसे-मलेरिया,डेंगू और चिकनगुनिया भी इन्हीं के कारण होती हैं। घर का खराब ड्रेनेज सिस्टम आपको जल-मलजनित रोग,जैसे-टायफायड,कॉलेरा,डीसेंटरी जैसी बीमारियां भी दे सकता है।

फंगस
किचन सिंक और टायलेट्स में फंगस पैदा हो जाती है। ओवरहैड टैंक से ज़रा-सा भी रिसाव दीवारों को नर्म करता है। इससे दीवारों पर फंगस पैदा हो जाती है जो श्वांस के ज़रिए हमारे शरीर में प्रवेश करती है। मुद्दे की बात यह है कि पर्यावरण प्रदूषण के खतरों के प्रति सचेत रहने और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के उपाय जितने ज़रूरी हैं,उतना ही ज़रूरी है घर के पर्यावरण को सेहतमंद बनाना।

धूल है दुश्मन
घर हो या बाहर धूल हर जगह दुश्मनी निभाती है। घरों में धूल बाहर से भी आती है और खुद वहीं "पैदा" भी होती है। पैदा होने का अर्थ यह है कि हमारी त्वचा जो हर क्षण झर रही है, उस पर कीटाणु पलते हैं। उन्हें डस्ट स्माइट्स कहते हैं। खिरकर गिरने वाली त्वचा देखने में धूल जैसी ही लगती है। यदि सोफे पर बैठेंगे तो वहाँ त्वचा के कण गिरेंगे, बिस्तर पर सोएँगे, तब भी त्वचा के कण रह जाएँगे। श्वास के जरिए यही धूलकण फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं। इन्हीं के संपर्क में आने से एलर्जी होती है और खाँसी, सर्दी और त्वचा रोग तक हो जाते हैं। खिड़की और दरवाजों के परदों के अलावा फाल्स सीलिंग पर भी धूल होती है। 

एयर कंडीशनर व कूलर
एयर कंडीशनर और कूलर भी बीमार कर सकते हैं। एयर कंडीशनर कमरे की हवा को रीसर्कुलेट करता है। कमरे की हवा लगातार एक जैसे वातावारण में रहते हुए दूषित हो जाती है। यदि किसी एयर कंडीशंड कमरे कोई खाँस दे तो उसका संक्रमण एयर कंडीशनर से होकर पूरे कमरे में फैल सकता है। इसी तरह जुकाम अथवा किसी अन्य बीमारी का संक्रमण भी स्वस्थ लोगों को लग सकता है। कूलर में मच्छर पनपने का सबसे उचित माहौल होता है। जितनी जल्दी कूलर की सफाई होना चाहिए, उतनी जल्दी हो नहीं पाती है। इसके अलावा नमी के कारण कूलर वाले कमरे में फंगस पनप सकता है। इससे एलर्जिक अस्थमा और श्वास संबंधी दूसरी समस्या भी हो सकती हैं। यदि आप घर में धूम्रपान करते हैं तो यकीन जानिए आपके परिवार के हर सदस्य को आपने श्वास रोग के जोखिम पर रख दिया है। एयर कंडीशंड कमरों में किया गया धूम्रपान वहाँ आने वाले सभी की मुसीबत बन सकता है(डॉ. संजीव नाईक,सेहत,नई दुनिया,जून 2011 प्रथमांक)।

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