दिल्ली के पानी में एनडीएम-1 (न्यू डेल्ही मेटालोबेटा लैक्टामेज-1) नामक प्रतिरोधी बैक्टीरिया पाए जाने की हालांकि अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है लेकिन यह एक बड़ा खतरा भी हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक इस्तेमाल से ऐसे बैक्टीरिया फिर पैदा हो सकते हैं जिन पर एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं करतीं। ऐसे में इनका संक्रमण ज्यादा खतरनाक होगा। आइएमए नेशनल के सहायक महासचिव और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. रवि मलिक ने बताया, प्रतिरोधी बैक्टीरिया की उत्पत्ति का कारण एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक इस्तेमाल होता है। दुनिया भर में सर्वाधिक प्रभावकारी और तेज एंटीबायोटिक दवा कार्बापेनम मानी जाती है लेकिन प्रतिरोधी बैक्टीरिया पर इसका भी असर नहीं होता। यदि एनडीएम-1 की पुष्टि हो जाती है तो वह भी प्रतिरोधी बैक्टीरिया की श्रेणी में ही आएगा। डॉ. आर.के. गुप्ता ने बताया, जानकारी के अभाव में जिस तरह एंटीबायोटिक दवाओं का लोग अधिक इस्तेमाल करते हैं, उससे ऐसे प्रतिरोधी बैक्टीरिया के पैदा होने का खतरा बना रहता है। इनका संक्रमण जानलेवा भी हो सकता है इसलिए ऐसे खतरे के प्रति समय रहते सावधान हो जाना चाहिए। डॉ. मलिक ने बताया, कुछ खास तरह के बैक्टीरिया की एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता चिंता का कारण बन गई है क्योंकि ऐसे बैक्टीरिया मरीज को कई अन्य तरह की समस्याएं भी उत्पन्न कर देते हैं। इसका आर्थिक खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। अस्पताल में भर्ती मरीजों में से कई के इलाज के 25 फीसदी खर्च का कारण यही होता है। डॉ. एस.एस. राठी कहते हैं कि वैसे तो बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक दवाओं का तेजी से असर होता है लेकिन इनका लगातार उपयोग बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता को इतना बढ़ा देता है कि वे एंटीबायोटिक दवाओं से बेअसर हो जाते हैं। यह स्थिति ज्यादा खतरनाक होती है। डॉ. गुप्ता ने बताया कि जुकाम और वायरल संबंधी अन्य बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक लेना हमेशा कारगर नहीं होता। कई बार तो यह खतरनाक भी हो सकता है क्योंकि इससे ऐसे बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं जिन्हें खत्म करना ही बड़ी चुनौती होता है। इनकी प्रतिरोधक क्षमता बार बार एंटीबायोटिक लेने के कारण इतनी बढ़ चुकी होती है कि उन पर दवाओं का असर नहीं होता(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,2.6.11)।
Sachmuch, khatra to bada hai.
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