शुक्रवार, 11 मार्च 2011

फल-सब्ज़ी पर रंग-रोगन

फल-सब्जियों में प्रतिबंधित कीटनाशकों के इस्तेमाल पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को फटकार लगा कर लोगों की सेहत के प्रति अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है। पर यह इंतहा ही है कि पेट भरने के लिए लोग जिन फलों, सब्जियों, दूध और अनाजों पर निर्भर हैं, उनमें मिलावट और उनकी खेती में खतरनाक कीटनाशकों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कोर्ट को आगे आना पड़ रहा है। अभी यह मामला एक आरटीआई कार्यकर्ता के आवेदन से प्रकाश में आया, जिससे पता चला कि फलों को कृत्रिम तरीके से पकाने और साग-सब्जियों की पैदावार बढ़ाने में प्रतिबंधित कीटनाशकों के प्रयोग की रोकथाम करने वाला विभाग इस बारे में लापरवाही बरत रहा है।

मंडियों में फल-सब्जियों के सैंपल लेने और जांच में गड़बड़ी पाने पर दोषियों को पकड़ने का जिम्मा दिल्ली सरकार के प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्टरेशन (पीएफए) डिपार्टमेंट का है। पर इस विभाग ने पिछले तीन साल में दिल्ली की मंडियों में जाकर एक भी सैंपल नहीं लिया। अगर सरकार को आम जनता की सेहत की जरा भी फिक्र होती, तो क्या पीएफए ऐसा कर सकता था? नियम यह है कि पीएफए के फूड इंस्पेक्टर पूरे साल ऐसे सैंपल लें और नियमित जांच में अगर उन्हें कोई गड़बड़ी मिलती है तो इलाके के एसडीएम के साथ मिलकर ऐक्शन लें। कानून उन्हें ऐसे फल-सब्जी बेचने वालों की दुकानें बंद कराने और जिन इलाकों से ये चीजें मंडी में आ रही हैं, वहां जाकर असली दोषियों को पकड़ने का अधिकार देता है।

व्यवस्था यह भी है कि फल-सब्जियों की जांच रिपोर्ट एक निश्चित अंतराल पर दिल्ली के गवर्नर को भी भेजी जाए। लेकिन जिस तरह नीचे से ऊपर तक हर कोई इस मामले से बेखबर बना हुआ था उसमें ज्यादा संभावना यही दिखती है कि यह अनदेखी जानबूझकर की जा रही थी। वरना सैंपल लेने, जांच करने, रिपोर्ट लिखने और उसे पाने वाले महकमों और उनके अधिकारियों में से कोई तो इस बारे में पूछता कि इतने दिनों में फल-सब्जियों की जांच की कोई सूचना क्यों नहीं आई? कोर्ट के निदेर्श के बाद संबंधित विभागों और अधिकारियों के सक्रिय होने भर से कोई बात नहीं बनेगी।
 
जिन लोगों की निष्क्रियता की वजह से यह अंधेरगर्दी अब तक होती रही, उन्हें दंडित करना होगा। एक आम नागरिक महंगाई के इस दौर में फल-सब्जियों में कीटनाशकों का जहर होने के बारे में सवाल उठाने का जोखिम इसलिए नहीं लेता था कि कहीं उसे झोले में आई जरा सी सब्जी से भी हाथ ना धोना पड़े। लेकिन उसका यह डर उसकी सेहत पर भारी पड़ रहा है। फल-सब्जियों में मौजूद कीटनाशकलोगों के किडनी और लीवर खराब कर रहे हैं। आज जिस तरह ग्लोबल मार्केट में अपने हरे-भरे उत्पादों की जगह बनाने के लिए हम कड़े पश्चिमी मानकों का सामना करने के लिए तैयार हैं, वैसी ही चौकसी हमें अपनी मंडियों में बिक रहे कद्दू-लौकी और सेब-संतरे के लिए भी बरतनी होगी(संपादकीय,नवभारत टाईम्स,दिल्ली,11.3.11)।

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