स्वस्थ एवं समृद्ध समाज के निर्माण के लिए बच्चों का पारिवारिक और मानसिक रूप से मजबूत होना बेहद जरूरी होता है। इसलिए आवश्यक हो जाता है कि समाज एवं राष्ट्र मिलजुल कर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए उचित एवं अनुकूल वातावरण का निर्माण करें। अगर बच्चे स्वस्थ नहीं रहेंगे तो एक स्वस्थ व समृद्ध समाज के निर्माण की कल्पना मुश्किल है। सबसे गम्भीर चिंता का विषय है कि बच्चों में धूम्रपान की लत लगातार बढ़ती ही जा रही है। साथ ही सेकेंड हैंड स्मोकिंग के दुष्प्रभाव में आने से उनका स्वास्थ्य भी दांव पर लगता जा रहा है। यह ठीक है कि सरकार एवं स्वयंसेवी संस्थाएं सेकेंड हैंड स्मोकिंग के दुष्प्रभाव को कम करने एवं उस पर नियंतण्रलगाने के उद्देश्य से अनेक कार्यक्रम एवं प्रभावोत्पादक तरीके अपना रही हैं लेकिन जमीनी स्तर पर नतीजे बिल्कुल ही संतोषजनक नहीं हैं। सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने वाले लोगों के खिलाफ कड़े कानून और अर्थदंड का प्रावधान किया गया है लेकिन इसके बावजूद सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान की प्रवृत्ति पर लगाम लगता नहीं दिख रहा है। नतीजा सबके सामने है। अब बच्चे भी धूम्रपान की ओर आकर्षित होने लगे हैं। आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो धूम्रपान विरोधी चलाए जा रहे अभियान के बावजूद भी बच्चों में धूम्रपान की लत बढ़ती ही जा रही है। देखा जाए तो बच्चों में धूम्रपान के प्रति बढ़ते आकर्षण की कई मुख्य वजहें हैं। मसलन पड़ोस का बिगड़ा वातावरण, फिल्मों के धूम्रपान वाले दृश्य, परिवार द्वारा बच्चों पर कम ध्यान दिया जाना, बुरी संगत का असर और स्कूलों में नैतिक शिक्षा का कमजोर पड़ता उद्देश्य इत्यादि लेकिन पिछले दिनों आई स्वीडिश नेशनल हेल्थ एण्ड वेल्फेयर बोर्ड और ब्लूमबर्ग फिलांथ्रोपिज की एक रिसर्च से साबित हुआ है कि बच्चों में धूम्रपान की लत पड़ने की एक और वजह उनका सेकेंड हैंड स्मोकिंग के प्रभाव में आना भी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सेकेंड हैंड स्मोकिंग के प्रभाव में आने से बच्चे धीरे-धीरे धूम्रपान के लती हो जाते हैं। धूम्रपान से होने वाले लाइलाज खतरों को छोड़ भी दिया जाए तो सिर्फ सेकेंड हैंड स्मोकिंग के दुष्प्रभाव से आज छ: लाख से अधिक लोग असामयिक मौत के शिकार हो रहे हैं। इन मरने वाले लोगों में तकरीबन दो लाख से अधिक बच्चे ही होते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल 'लैंसेट' में छपी एक रिपोर्ट पर विश्वास किया जाय तो स्मोकिंग न करने वाले 40 फीसद बच्चों और 30 फीसद से अधिक महिलाओं-पुरुषों पर सेकेंड हैंड स्मोकिंग का घातक प्रभाव पड़ता है। अप्रत्यक्ष धूम्रपान के कारण बच्चों में गम्भीर बीमारियां होती हैं; मसलन अस्थमा एवं फेफड़े का कैंसर। इसके अलावा भी अन्य गम्भीर बीमारियों के होने का खतरा बराबर बना रहता है। इनकी वजह से असमय मृत्यु की आशंका भी प्रबल हो जाती है। पिछले दिनों र्वल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के टुबैको- फी इनिशिएटिव के प्रोग्रामर डा. एनेट ने सेकेंड हैंड स्मोकिंग को लेकर चिंता प्रकट की थी। दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में सेकेंड हैंड स्मोकिंग का दुष्प्रभाव सर्वाधिक देखने को मिल रहा है। अशिक्षा, गरीबी और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव इसका मूल कारण हो सकता है। स्वीडिश रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन बच्चों के माता पिता धूम्रपान करते हैं उन बच्चों में निमोनिया और अस्थमा जैसी घातक बीमारियों की आशंका ज्यादा होती है। सवाल यह उठता है कि बच्चों को धूम्रपान की बढ़ती लत और सेकेंड हैंड स्मोकिंग के दुष्प्रभाव से आखिर कैसे बचाया जाय? इसके लिए ऐसे कारगर उपायों को अमल में लाने की जरूरत है जो न केवल बच्चों में धूम्रपान के प्रति बढ़ते आकर्षण को कम करे बल्कि उनके मन में भी यह भावना पैदा हो कि धूम्रपान एक सामाजिक बुराई है। धूम्रपान के खिलाफ सरकारी कार्यक्रमों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों में स्कूलों एवं अन्य शिक्षण संस्थाओं को शामिल करके इस कार्यक्रम को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। धूम्रपान पर नियंतण्रस्थापित करने में स्कूलों की भूमिका निर्णायक एवं प्रभावी साबित हो सकती है बशत्रे वह इसे नैतिक शिक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए। स्कूलों में जागरूकता पैदा करने वाले कार्यक्रम अन्य संस्थाओं की अपेक्षा ज्यादा कारगर साबित होते हैं(अरविन्द जयतिलक,राष्ट्रीय सहारा,30.3.11)।
हमारे गाँव में एक बाबाजी थे .... अब नहीं रहे.... उन्हें हमने बचपन से हुक्का गुड़गुडाते देखा. कहीं भी जाते हुक्का जरूर साथ रखते ..... या चलते-फिरते बीडी पिया करते थे... उनकी बीबी भी (बुढापे में) बीडी पिया करती थीं. वे उम्र दराज़ होकर सिधारे. उनके सब बच्चे शराबी-कबाबी हैं लेकिन उनका हाजमा वैसा नहीं जैसा कि उनके पिता का था.
जवाब देंहटाएंक्या नशे की भी गुणवत्ता होती है? जो अब नहीं रही.
क्या धूम्रपान आयु को घटाता नहीं? या फिर, क्या धूम्रपान हर हालत में नुकसान पहुँचाता है? यदि हाँ, तो बाबाजी ९०+ आयु के होकर क्यों मरे?