दवाओं की समीक्षा वर्षों से न होने से यह पता नहीं चल पा रहा है कि कौन सी दवा आवश्यक श्रेणी में है और कौन सी जीवन रक्षक की श्रेणी में। अब केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय आवश्यक दवाओं की सूची की समीक्षा करने जा रहा है। यह समीक्षा विशेषज्ञों का पैनल करेगी।
दवाओं की श्रेणी तय करने के लिए केंद्र सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के तर्ज पर वर्ष १९९६ में नेशनल लिस्ट ऑफ इसेंशियल मेडिसन यानी एनएलईएम का गठन किया था। लगभग सात साल बाद २००३ में इस सूची की समीक्षा कर ७१ नई दवाओं को सूची में स्थान दिया गया। एक समय था जब इस सूची में ३४२ दवाओं को शामिल कर मूल्य नियंत्रण के तहत लाया गया था। धीरे धीरे यह सूची घटकर १४२ पर आ गई। अब हालात ऐसे हैं कि आवश्यक दवाओं की सूची में ७० से भी कम दवाइयां रह गई हैं। मंत्रालय के अधिकारी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि सूची की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने की योजना है। भारत के औषधि महानियंत्रक ने भी इस बाबत एक प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव में रोग उपचार से जुड़े श्रेणी में ज्यादा आवश्यक दवाओं को शामिल किया जाए। जबकि फर्मा विभाग इस बात पर दबाव डाल रहा है कि इस सूची में ३५४ दवाओं को मूल्य नियंत्रण की श्रेणी में शामिल किए जाए। हालांकि, औषधि मूल्य नियंत्रक आदेश इस बात को परिभाषित नहीं कर रहा है कि आवश्यक और जीवन रक्षक दवाएं कौन कौन सी है। यदि एनएलईएम इन दवाओं को आवश्यक या जीवन रक्षक दवाओं की श्रेणी में लाता है तो १२ फीसदी से ज्यादा दवाइयां मूल्य नियंत्रण के अधीन आ जाएंगी। वर्तमान में २० फीसदी दवाइयों पर सरकार का नियंत्रण है(अमर उजाला,दिल्ली,20.1.11)।
सिर्फ समीक्षा से काम नहीं चलेगा!
जवाब देंहटाएंकार्यवाही भी होनी चाहिए!