शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

नींद

रात को सोते समय दिमाग के विभिन्न हिस्सों की भूमिका भी अलग-अलग होती है। वहीं व्यक्ति गहरी नींद में पहुंचने से पहले कई अवस्थाओं से होकर गुजरता है। तभी वह हल्की नींद से गहरी नींद में पहुंचता है। इस तरह से वह पांच स्टेज से होकर गुजरता है, जिसमें लगभग 90 मिनट का समय लगता है।
इलेक्ट्रोइंसिफेलोग्राफ के जरिए डॉक्टर नींद और उसके प्रकारों के बारे में अध्ययन कर सकते हैं। इस आविष्कार के पहले ऐसा संभव नहीं था। नींद के अध्ययन के लिए वर्ष 1950 में शोधार्थी यूजीन असेरिंस्के ने ऐसे ही उपकरण का इस्तेमाल किया था। नींद के मुख्य तौर पर दो प्रकार होते हैं। रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम), जिसे एक्टिव स्लीप या पैराडॉक्सिकल स्लीप कहा जाता है। इसमें पीड़ित को जल्दी नींद आ जाती है। नॉन रैपिड आई मूवमेंट (एनआरईएम), जिसे शांतिपूर्वक नींद आना कहते हैं। इस दौरान व्यक्ति को सपने नहीं आते हैं। ऐसे होती है शुरुआत नींद की शुरुआती अवस्था में व्यक्ति थोड़ा अलर्ट यानी होश में होता है। इस दौरान दिमाग कुछ तरंगे पैदा करता है, जिसे बीटा वेव्स के नाम से जाना जाता है। ये वेव्स छोटी, लेकिन तेज गति से संचालित होती हैं। जैसे-जैसे दिमाग रिलैक्सिंग मोड यानी आराम की स्थिति में आता है तो अल्फा वेव्स पैदा हो जाती हैं। ऐसे समय जब नींद में होने के बाद भी आप शांत अवस्था में नहीं होते हैं, तो इस स्थिति को हिप्नेगॉगिक हैल्यूसिनेशंस कहा जाता है। ऐसे समय में व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है, जैसे मानो वह गिर रहा हो या कोई उसका नाम पुकार रहा हो। स्टेज 1 सोने के चक्र की शुरुआती अवस्था में नींद हल्की होती है। इसे एक ऐसा ट्रांजिक्शन पीरियड (संक्रमण अवधि) भी कहा जाता है, जो सोने व जागने के बीच की स्थिति से संबंधित होता है। इस अवस्था में दिमाग थीटा वेव्स को तेज गति से संचालित करता है। नींद की ऐसी अवस्था में पहुंचने में व्यक्ति को 5-10 मिनट मुश्किल से लगते हैं। ऐसी अवस्था में यदि किसी को जगाया जाए तो वह कहता है कि वह सोया नहीं था। स्टेज 2 यह नींद की दूसरी अवस्था होती है। इसमें शरीर का तापमान कम होने लगता है। साथ ही हार्ट रेट धीमी हो जाती है। इस तक पहुंचने में करीब 20 मिनट का समय लगता है। स्टेज 3 इस स्टेज पर दिमाग में संचालित होने वाली धीमी तरंगें कच्ची नींद से गहरी नींद में पहुंचाने में मदद करती हैं। इन तरंगों को डेल्टा वेव्स कहा जाता है। स्टेज 4 इस अवस्था में व्यक्ति गहरी नींद में पहुंच जाता है, जो लगभग 30 मिनट तक रहती है। विशेषज्ञों के अनुसार जिन लोगों को नींद में चलने की शिकायत होती है, वह अक्सर इसी स्टेज में होती है। स्टेज 5 सपने अक्सर इसी स्टेज में आते हैं, जिसे मेडिकल टर्म में रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) स्लीप कहा जाता है। इस अवस्था में सांस लेने की गति और दिमाग की गतिशीलता बढ़ जाती है। इस स्टेज को पैराडॉक्सिकल स्लीप के समान ही माना जाता है, क्योंकि जब दिमाग और शरीर की अन्य कार्यप्रणाली अधिक सक्रिय होती है, तो शरीर की मांसपेशियां रिलैक्सिंग मोड पर होती हैं। वहीं, जब व्यक्ति सपना देखता है तो दिमाग की गतिशीलता बढ़ जाती है और वॉलेंटरी मसल्स स्थिर हो जाते हैं। जब उसकी अंतिम अवस्था यानी आरईएम स्लीप का समय पूरा होता है, तो वह धीरे-धीरे दूसरी अवस्था में वापस लौटने लगता है। यह पूरी प्रक्रिया मुश्किल से 4-5 मिनट की होती है। सभी स्टेज की बात की जाए, तो अंतिम अवस्था में पहुंचते-पहुंचते औसतन 90 मिनट का समय लग जाता है। एक रात में यह प्रक्रिया चार-पांच होती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गहरी नींद न आने से शारीरिक थकान खत्म नहीं होती। सोने के बाद भी यदि फ्रेशनेस न आए तो समझ लेना चाहिए कि गहरी नींद की अवधि पूरी नहीं हुई है। अच्छी नींद के लिए कमरे का तापमान कम रखा जाए तो बेहतर होता है क्योंकि इससे गहरी नींद जल्दी आती है। ऐसे काम करता है शरीर की मास्टर बायोलॉजिकल क्लॉक से ही व्यक्ति के सोने-जागने का समय निर्धारित होता है। यही क्लॉक लाइट के संपर्क में आने से प्रतिक्रिया देती है, जिसे सरकेडियन रिदम कहा जाता है। नींद की एनाटॉमी हाइपोथैलेमस : इसमें न्यूरॉन्स का समूह होता है, जो सरकेडियन रिदम को संचालित करने, सोने और जागने के लिए जिम्मेदार केमिकल्स को सक्रिय करने में मुख्य भूमिका निभाता है। थैलेमस : नींद के दौरान सभी ग्रंथियों को ब्लॉक करने और दिमाग को बीते दिनों की गतिविधियां याद करने की सूचना देता है। पीयूष ग्रंथि : यह मेलाटोनिन नामक हार्मोन को सक्रिय करता है। यह हार्मोन नींद के लिए जिम्मेदार होता है। हिप्पोकैम्पस : आरईएम स्लीप के दौरान व्यक्ति के दिमाग में स्टोर मेमोरी या बीते हुए पल दोबारा चलने लगते हैं। पोन्स : यह भाग रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) स्लीप के दौरान सपने देखने की प्रक्रिया के साथ ही स्पाइनल कॉर्ड को मिलने वाले संकेत ब्लॉक कर देता है। इससे सपने देखने के दौरान शरीर में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं होती है। सेरेब्रल कॉर्टेक्स : आरईएम स्लीप के दौरान पोन्स द्वारा कुछ संकेत आते हैं। इससे कई बार व्यक्ति दिमाग में स्टोर सूचनाओं से हटकर सपने देखने लगता है। रेटीना : इस हिस्से में कुछ कोशिकाएं होती हैं, जो विजन यानी दृष्टि से नहीं, बल्कि लाइट की संवेदना को महसूस करने से संबंधित होती हैं। इससे नींद आने और जागने का सीधा संबंध होता है(दैनिक भास्कर,6.8.2010)।

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