प्रति व्यक्ति आय में नंबर दो पर रहे हरियाणा ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के क्रियान्वयन में सभी को पीछे छोड़ दिया है। चार साल का काम एक साल में पूरा करने पर भारत सरकार ने राज्य को विशेष पुरस्कार से नवाजा है। यह पुरस्कार डाटा मैनेजमेंट तथा स्वस्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर मिला है। योजना के तहत बीपीएल तबके के लोगों को बीमा के तहत स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। सारे देश में यह योजना 2008 से लागू की गई थी, लेकिन कई राज्य तो अभी तक योजना के नफे नुकसान में उलझे हैं। हरियाणा ने इस योजना की न केवल एक अप्रैल 2008 से शुरुआत कर दी बल्कि 2008-09 में सभी 21 जिलों में इसे लागू कर डाला। योजना को 2012 में पूरा किया जाना था। केरल में राज्यों की बैठक बुलाई गई तो हरियाणा का प्रदर्शन हर मोर्चे पर बेजोड़ था। योजना के क्रियान्वयन के लिए ईएसआई को नोडल एजेंसी बनाया गया है। केंद्र की भागीदारी इसमें 75 फीसदी की है तो बाकी का हिस्सा राज्य को वहन करना पड़ता है। 2009-10 के लिए 17.22 करोड़ रुपये राज्य ने जारी किए हैं और 45.2 करोड़ भारत सरकार की तरफ से दिए गए हैं। बीमा योजना में बीपीएल परिवार के पांच लोगों को साल में 30 हजार रुपये तक की स्वास्थ्य सुविधा दी जाती है। उन्हें स्मार्ट कार्ड बनवाने के लिए 30 रुपये खर्च करने होते हैं। सरकार ने आईसीआईसीआई लोंबार्ड, नेशनल इंश्योरेंस तथा स्टार हेल्थ जैसी कंपनियों को इसके लिए अधिकृत किया है। 780 बीमारियों को योजना में शामिल किया गया है। हाई प्रोफाइल अस्पतालों में बीपीएल जाकर अपना इलाज करा सकता है। योजना में बीपीएल की परेशानी के हिसाब से लचीला रुख अपनाया गया है। अगर कोई व्यक्ति हरियाणा में पंजीकृत हुआ है और काम के सिलसिले में उसे बाहर जाना पड़ता है तो कार्ड के जरिए वह वहां भी अपना इलाज करा सकता है। एक परिवार को दो कार्ड उपलब्ध कराए जाते हैं। परिवार के मुखिया की अनुपस्थिति में अन्य सदस्य दूसरे कार्ड के जरिए स्वास्थ्य लाभ हासिल कर सकते हैं। फरीदाबाद, पलवल, यमुनानगर, भिवानी तथा पानीपत से शुरू हुई योजना सारे प्रदेश में सफलता के झंडे गाड़ रही है। 2009-10 में तीन लाख 683 कार्ड जारी किए गए हैं। योजना पर कुल खर्च 29.80 करोड़ रुपये का खर्च आया है और 183 अस्पताल इसके तहत काम कर रहे हैं। इस अवधि तक 36345 दावे किए गए और 34022 का निपटारा हो चुका है। 2008-09 के दौरान चार लाख एक हजार 989 कार्ड जारी किए गए थे। इस दौरान 142 अस्पताल काम कर रहे थे। कुल दावे 3905 थे जिनमें 3857 का निबटारा किया गया। ईएसआई के उपनिदेशक डा. सतीजा कहते हैं कि बीपीएल परिवारों के लिए योजना वरदान की तरह है। उनके पास आमदनी का जुगाड़ न के बराबर होता है। बीमारी की हालत में उन्हें लगभग भूखे मरने के हालात से दो-चार होना पड़ता है। वह कहते हैं कि योजना हरियाणा में बेहद कामयाब रही है जिसके लिए केंद्र सरकार ने अवार्ड दिया है,लेकिन फिर भी इसमें कुछ पेंच हैं। अभी भी ज्यादा लोग अस्पताल नहीं पहुंच पा रहे हैं। पूरी कोशिश है कि लोगों को जागरूक किया जाए जिससे योजना का लाभ उन्हें मिले(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,6 जून,2010 में चंडीगढ़ से शैलेन्द्र गौतम की रिपोर्ट)।
पहला कदम सफलतापूर्वक औऱ तेजी से उठाने के लिए हरियाणा सरकार बधाई की पात्र है। पर देखना होगा कि हरियाणा के ईएसआई अस्पतालों की स्थिती कैसी है। उम्मीद है कि बाकी देश की तुलना में बेहतर ही होगा।
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