इस वर्ष 24 जनवरी को आयुष मेडिकल एसोसिएशन (एएमए) के राष्ट्रीय महासचिव डा. अर्जुन पाण्डेय ने पटना प्रवास में एलोपैथ डाक्टरों पर सीधा हमला बोलते हुए कहा था कि केन्द्रीय स्वास्थ्य बजट का 99 फीसदी राशि एलोपैथ डाक्टर बर्बाद कर रहे हैं। उनका यह भी कहना था कि केन्द्र सरकार की गलत नीति का फायदा उठाते हुए एलोपैथ डाक्टर सौ में से 10 दिन ही गांव के अस्पताल में मरीजों को ठीक से देखते हैं। डा. पाण्डेय ने कहा था कि वर्ष 2003 में ही राष्ट्रीय आयुष स्वास्थ्य नीति घोषित हो गई पर आयुष विभाग की पांचों (आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा और होमियोपैथी) चिकित्सा पद्धति के प्रचार प्रसार के लिए उत्तरदारी अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। मगर आज नई दुनिया में छपी खबर बताती है कि आखिरकार सरकार ने राज्य में 16सौ डाक्टरों की नियुक्ति का फैसला कर लिया है।
अखबार लिखता है कि लम्बे समय से डाक्टरों की कमी को झेल रहे स्वास्थ्य विभाग को इससे मुक्ति मिलने की संभावना है। डाक्टरों की नियुक्ति की प्रकिया लगभग पूरी हो गई है । जून में उम्मीद है कि सभी खाली पदों पर चिकित्सक बहाल कर लिए जाएंगे । प्रधान स्वास्थ्य सचिव सीके मिश्रा ने कहा है कि करीब १६०० आयुष डाक्टर और २३०० विशेषज्ञों की नियुक्ति का रास्ता प्रशस्त हो चुका है । इन पदों पर नियुक्ति के लिए साक्षात्कार लिए जा चुके हैं । पुराने बैकलॉग को भी भरने की कोशिश की जा रही है । हालांकि उन्होंने यह आशंका भी जाहिर कि इस बहाली से चिकित्सकों की कमी को पूरी तरह पाटा नहीं जा सकता है । केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय ने जून २००९ में राज्य के स्वास्थ्य की स्थिति पर जारी अपनी रिपोर्ट में बिहार में चिकित्सकों की कमी पर गहरी चिन्ता जाहिर की थी। उस रिपोर्ट के अनुसार सूबे में करीब ६ हजार मेडिकल ऑफिसर की जरूरत है।
बहुत खुशी की बात
जवाब देंहटाएंचिंता ! - कमी ?
जवाब देंहटाएंजिम्मेदार कौन