बुधवार, 3 मार्च 2010

शिशु मृत्यु दर और राजस्थान

राज्य व केंद्र सरकार की नौनिहालों का जीवन बचाए रखने के लिए चलाई जा रही योजनाओं और तमाम सरकारी दावों के बावजूद राजस्थान में आज भी शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।इन योजनाओं के संचालन में कोताही और लालफीताशाही के चलते प्रदेश में प्रति हजार में से ६३ बच्चे जन्म लेते ही दम तो़ड़ रहे हैं जबकि जन्म लेने के बाद दम तो़ड़ देने वाले बच्चों का औसत प्रति हजार में से ५३ ही है। सरकारी आंक़ड़ों के अनुसार राजस्थान में माता एवं शिशु के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बावजूद प्रसवघरों पर ही होते हैं जिससे जन्म लेते ही नवजात शिशु को होने वाली स्वास्थ्य संबंधी जटिलता का इलाज समय पर नहीं होता है। राज्य में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत पोलियो, गलघोंटू, काली खांसी, नवजात शिशुओं में टिटनेस, खसरा एवं क्षय रोग से सुरक्षा प्रदान करने के लिए टीका लगाए जाने की व्यवस्था है,लेकिन आमजन खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार के अभाव के चलते इनका प्रभावी क्रि यान्वयन नहीं हो पा रहा है।सरकारी रिकार्ड में जननी सुरक्षा योजना के संचालन के दावों के विपरीत सरकार ही यह मान रही है कि प्रदेश में प्रसव संक्रमण के कारण काफी संख्या में शिशुओं की मौत हो रही है। कम वजन और समय से पूर्व जन्म के कारण भी कई शिशु पर्याप्त चिकित्सा सुविधा के अभाव में हजारों शिशु काल के ग्रास बन रहे हैं। यहां तक कि सरकार खुद मानती है कि मलेरिया जैसी बीमारी जिसका इलाज आसान है, से भी शिशुओं की मौतें हो रही हैं। देश और प्रदेश के औसत में अन्तर देखें तो स्पष्ट पता चलता है कि सरकारी योजनाएं कागजों पर ही संचालित हो रही हैं और गर्भावस्था के दौरान प्रसूता की पर्याप्त देखभाल और टीकाकरण नहीं होने से इनका जीवन खतरे में प़ड़ रहा है। राज्य सरकार को शिशुओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए केन्द्र से सालाना करो़ड़ों रुपए का बजट मिलता है, लेकिन मृत्यु दर बताती है कि इसका कितना "सदुपयोग" हो रहा है। वर्ष २००९-१० के लिए नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के संचालन के लिए केन्द्र सरकार ने १८.६२ करो़ड़ रुपए का प्रावधान किया है जिसमें से अब तक ६.४७ करो़ड़ ही मिल पाए हैं। बाकी राशि के लिए राज्य सरकार अभी हाथ पर हाथ धरे बैठी है। इस कार्यक्रम के संचालन के लिए राज्य सरकार ने जिलों को १२.०६ करो़ड़ रुपए अब तक आवंटित किए हैं। केंद्र सरकार द्वारा शुरू पायलट कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश में केवल जयपुर शहर में एक साल तक के बच्चों को हेपेटाइटिस-बी का टीका निशुल्क लगाया जा रहा है जबकि अन्य जिले व जयपुर का ग्रामीण क्षेत्र अब भी इससे वंचित है। हेपेटाइटिस-बी का टीका राज्य के समस्त जिलों के बच्चों को निशुल्क उपलब्ध करवाए जाने के लिए प्रस्ताव भी केंद्र को भिजवाए गए हैं, लेकिन अब तक इसका क्रियान्वयन नहीं हो सका है। मस्तिष्क ज्वर, चिकन पॉक्स एवं निमोनिया जैसी बीमारियों के टीके भी अभी तक नियमित टीकाकरण में शामिल नहीं किए गए हैं। राज्य सरकार अब तक इन टीकों की उपलब्धता के लिए केंद्र का ही मुंह ताक रही है जबकि इन बीमारियों से हर साल लाखों बच्चे काल का ग्रास बन रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में सामने आई स्वाइन फ्लू बीमारी का मुफ्त टीका भी राज्य में उपलब्ध नहीं है। (नई दुनिया,दिल्ली,3.3.2010 में आलोक शर्मा की रिपोर्ट)

2 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद। जल्द ही आपकी साइट देखकर प्रतिक्रिया दूंगा।

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  2. बेनामीजून 18, 2010

    जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-ष्भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थानष् (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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