भारत में तपेदिक (टीबी) की चुनौती जितनी बड़ी है, उसे देखते हुए इस बीमारी से निजात दिलाने की हर कोशिश राहत देने वाली प्रतीत होती है। इधर,एम्स के सहयोग से,इंटरनैशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग ऐंड बायॉलजी के साइंटिस्टों ने एक शोध के आधार पर यह रहस्य खोलने का दावा किया है कि टीबी के बैक्टीरिया इंसान के शरीर में आखिर पनपते कैसे हैं। साइंटिस्टों की इस टीम के मुताबिक दुनिया में पहली बार वे मानव शरीर में मौजूद उन 44 प्रोटीन्स का पता लगाने में सफल रहे हैं जो टीबी के बैक्टीरिया को खुराक मुहैया कराते हैं। इस टीम का कहना है कि अगर किसी तरह से इन प्रोटीन्स का बनना रोका जा सके तो टीबी से काफी असरदार ढंग से लड़ा जा सकेगा। उनकी रिसर्च में इस बात का कोई खुलासा नहीं किया गया है कि इन 44 प्रोटीन्स की हमारे शरीर संचालन में क्या भूमिका है और इनकी गैरमौजूदगी से हमें क्या नुकसान हो सकते हैं।
अच्छा होगा कि ये प्रोटीन हमारे लिए ज्यादा काम के न निकलें, ताकि इनके खिलाफ हमला बोलकर टीबी को जड़ से मिटाने का इंतजाम किया जा सके। कभी चेचक और प्लेग की तरह काबू में आ चुकी बीमारी मान ली गई टीबी ने हाल के वर्षों में भारत में फिर से रफ्तार पकड़ी है। संस्था- टीबीसी इंडिया और डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 1000 की औसत से हर साल टीबी से 3 लाख से ज्यादा मौतें हो रही हैं।
चार साल पहले डब्ल्यूएचओ और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने चेतावनी जारी की थी कि जिन मुल्कों में नए किस्म का और तकरीबन लाइलाज टीबी फैल रहा है, भारत उनमें काफी आगे है। टीबी के इस नए रूप को 'एक्सट्रीम ड्रग रेसिस्टेंट' या संक्षेप में एक्सडीआर-टीबी का नाम दिया गया है। टीबी के इलाज में सबसे अहम समस्या ऐंटिबायॉटेक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता पैदा होना है।
मेडिकल साइंस के लिए कठिन चुनौती बन रही इस बीमारी का तोड़ अगर कुछ प्रोटीन्स के सफाए से निकलता है तो यह एक बड़ी राहत होगी। इस शोध को आगे बढ़ाकर और इसमें आने वाली रुकावटों का हल खोजकर देश से टीबी के संपूर्ण सफाए का इंतजाम किया जाना चाहिए।
(संपादकीय,नभाटा,दिल्ली,6 मार्च,2010)
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