
अच्छा होगा कि ये प्रोटीन हमारे लिए ज्यादा काम के न निकलें, ताकि इनके खिलाफ हमला बोलकर टीबी को जड़ से मिटाने का इंतजाम किया जा सके। कभी चेचक और प्लेग की तरह काबू में आ चुकी बीमारी मान ली गई टीबी ने हाल के वर्षों में भारत में फिर से रफ्तार पकड़ी है। संस्था- टीबीसी इंडिया और डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 1000 की औसत से हर साल टीबी से 3 लाख से ज्यादा मौतें हो रही हैं।
चार साल पहले डब्ल्यूएचओ और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने चेतावनी जारी की थी कि जिन मुल्कों में नए किस्म का और तकरीबन लाइलाज टीबी फैल रहा है, भारत उनमें काफी आगे है। टीबी के इस नए रूप को 'एक्सट्रीम ड्रग रेसिस्टेंट' या संक्षेप में एक्सडीआर-टीबी का नाम दिया गया है। टीबी के इलाज में सबसे अहम समस्या ऐंटिबायॉटेक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता पैदा होना है।
मेडिकल साइंस के लिए कठिन चुनौती बन रही इस बीमारी का तोड़ अगर कुछ प्रोटीन्स के सफाए से निकलता है तो यह एक बड़ी राहत होगी। इस शोध को आगे बढ़ाकर और इसमें आने वाली रुकावटों का हल खोजकर देश से टीबी के संपूर्ण सफाए का इंतजाम किया जाना चाहिए।
(संपादकीय,नभाटा,दिल्ली,6 मार्च,2010)
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