शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

घुटना बदला और लौट आईं खुशियां

जैसे-जैसे चिकित्सा विज्ञान तरक्की कर रहा है, मनुष्य की औसत आयु भी बढ़ रही है। अब अधिक बड़ी आबादी जीवन के ६०-७० या ८० से ज्यादा वसंत देखने लगी है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ कुछ ऐसी बीमारियाँ या शारीरिक समस्याएँ भी उसके साथ जुड़ जाती हैं, जो जीवन की गुणवत्ता पर बुरा असर डालती हैं। यही वजह है कि बुढ़ापे में भी व्यक्ति सुखपूर्ण एवं सक्रिय जीवन नहीं जी पाता। ऐसी ही एक प्रमुख समस्या है, घुटनों या जोड़ों की खराबी जिसका प्रमुख कारण है ऑस्टियो आर्थराइटिस। यह प्रमुख रूप से बढ़ती उम्र के कारण होने वाली समस्या है। इसमें घुटने के जोड़ों की लाइनिंग या अस्तर जिसे कार्टिलेज कहा जाता है, घिस जाती है। जोड़ को बनाने वाली अस्थियाँ आपस में रग़ड़ खाने लगती हैं। जोड़ के थोड़े-से भी मूवमेंट से तीव्र पीड़ा होती है। इससे मरीज धीरे-धीरे चलना-फिरना कम कर देता है या लंगड़ाकर चलने का प्रयत्न करता है। मरीज की शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। इसके कारण मोटापा, उच्च रक्तचाप, जीवनी शक्ति का ह्रास, रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी आदि समस्याएँ घेर लेती हैं। मरीज का स्वावलंबी जीवन दूसरों पर आश्रित होने लगता है। इस वजह से मरीज में अवसाद घर कर जाता है। रिश्तेदार-मित्र मंडली उसे बोझ समझने लगती है। कुल जमा बात यह है कि घुटनों के जोड़ में हुए ऑस्टियो आर्थराइटिस के प्रकोप से पीड़ित व्यक्ति की रसहीन, निष्क्रिय और निरुद्देश्य जिंदगी जीवन का उत्साह ही खत्म कर देती है। अब ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इसका समाधान क्या है? इस प्रश्न का उत्तर यदि कुछ दशक पहले दिया जाता तो निश्चित ही मरीज और उनके परिजनों के दुःख को जरा भी कम नहीं किया जा सकता था। लेकिन अब इस समस्या का ऐसा हल उपलब्ध है, जो न केवल मरीज बल्कि उनके परिजनों के दिलो-दिमाग के बोझ को हल्का करने वाला है। यह है घुटनों के जो़ड़ों की सर्जरी और उनकी बढ़ती सफलता की दर। आज दुनियाभर में लाखों बुजुर्ग मरीज "टोटल नी रिप्लेसमेट" के जरिए पीड़ादायक घुटनों से मुक्ति पा रहे हैं। इससे न सिर्फ उनकी चाल पहले जैसी हो गई है बल्कि दर्दनिवारक गोलियों से भी छुटकारा मिल गया है। दुःखद स्थिति यह है कि हमारे देश में अब भी जागरूकता की कमी के चलते कई बुजुर्ग घुटनों की पीड़ा भुगतते हुए जीवन जीने के लिए विवश हैं।जैसे-जैसे चिकित्सा विज्ञान तरक्की कर रहा है, मनुष्य की औसत आयु भी बढ़ रही है। अब अधिक बड़ी आबादी जीवन के ६०-७० या ८० से ज्यादा वसंत देखने लगी है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ कुछ ऐसी बीमारियाँ या शारीरिक समस्याएँ भी उसके साथ जुड़ जाती हैं, जो जीवन की गुणवत्ता पर बुरा असर डालती हैं। यही वजह है कि बुढ़ापे में भी व्यक्ति सुखपूर्ण एवं सक्रिय जीवन नहीं जी पाता। ऐसी ही एक प्रमुख समस्या है, घुटनों या जोड़ों की खराबी जिसका प्रमुख कारण है ऑस्टियो आर्थराइटिस। यह प्रमुख रूप से बढ़ती उम्र के कारण होने वाली समस्या है। इसमें घुटने के जोड़ों की लाइनिंग या अस्तर जिसे कार्टिलेज कहा जाता है, घिस जाती है। जोड़ को बनाने वाली अस्थियाँ आपस में रग़ड़ खाने लगती हैं। जोड़ के थोड़े-से भी मूवमेंट से तीव्र पीड़ा होती है। इससे मरीज धीरे-धीरे चलना-फिरना कम कर देता है या लंगड़ाकर चलने का प्रयत्न करता है। मरीज की शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। इसके कारण मोटापा, उच्च रक्तचाप, जीवनी शक्ति का ह्रास, रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी आदि समस्याएँ घेर लेती हैं। (नई दुनिया के सेहत ,फरवरी प्रथम सप्ताह संस्करण के परिशिष्ट में डॉ. कमल वैद,ऑर्थोपेडिक सर्जन,इंदौर का आलेख)

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