दमा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
दमा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 6 मई 2014

अस्थमा दिवस विशेषः मुश्किल बढ़ा रहे डॉगी के बाल, परफ्यूम की महक

सांस उखड़ने का दौरा पड़ जाता है। जरा सा मौसम बदलता सांस फूलने लगती है। सांस रूठ जाने का एहसास होता है। कोई खास चीज खाने पीने पर सांस जैसे जवाब देती हुई महसूस होती है। दम घुटने लगता है। डॉक्टर इसे दमा के लक्षण बताते हैं। इन लक्षणों को प्रकट होने देने से रोका जा सकता है। ऐसा तभी मुमकिन है जब हमारी सांसों में सेहत घुली होगी। 

दमा के दम के साथ जाने की बात भी सालों से सुनी जा रही है। आज की तारीख में चिकित्सा विज्ञान की तरक्की ने इसे झूठा साबित कर दिया है। दमा का बेहतर इलाज संभव हो गया है तो इससे बचाव को लेकर भी लोगों को जागरूक किए जाने पर जोर दिया जा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा योग गुरु के रूप में नियुक्त आयुर्वेद के सीनियर फिजीशियन डॉ.एसपी गुप्ता कहते हैं, दमा ऐसी बीमारी है जिसमें श्वास नलियां सिकुड़ जाती हैं जिसकी वजह से मरीज को सांस अंदर लेने और बाहर छोड़ने में दिक्कत होती है। सांस की इस तकलीफ की वजह तमाम तरह की एलर्जी बनती है। किसी भी प्रकार की एलर्जी अपना असर नहीं दिखा सके इसके लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता, जीवनशक्ति मजबूत होना जरूरी है। प्राणायाम हमारी जीवनशक्ति बढ़ाने के साथ ही सांसों की नलियों का आयाम बढ़ाता है। सीनियर फिजीशियन डॉ.राकेश कुमार के मुताबिक दमा का कारण चाहे कोई भी एलर्जी हो, लेकिन इसका कारगर इलाज उपलब्ध हो गया है। इनहेलर तकनीक से साइड इफेक्ट का खतरा लगातार कम होता जा रहा है। इनहेलर के इस्तेमाल से फेफड़ों की ताकत बढ़ती है। इनहेलर को पहले लोग आखिरी दवा मानते थे, लेकिन अब इसे पहली और सबसे कारगर दवा के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। यह दवा सीधे फेफड़ों में जाती है शरीर के बाकी हिस्सों पर इसका असर नहीं पड़ता। अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ.अजीम इकबाल के मुताबिक इनहेलर दमा रोगियों के लिए वरदान बन रहा है। इसकी वजह से मरीजों में दमा के दौरे पड़ने की प्रवृत्ति कम हुई है। लोगों में इनहेलर का इस्तेमाल बढ़ने लगा है। इसकी वजह से दवा खाने की जरूरत कम हो रही है। ज्यादा गंभीर स्थिति में खाने की दवा असर करना बंद कर देती है। तब इनहेलर का ही सहारा लेना पड़ता है। 

बदला हुआ लाइफ स्टाइल दमा को दावत दे रहा है। वो चाहे डॉगी पालने का शौक हो या फिर एक से बढ़कर सुगंधित परफ्यूम के इस्तेमाल का। डॉ.अजीम इकबाल के मुताबिक जिन लोगों को धूल से एलर्जी के चलते दमा होता है उनके लिए पालतू जानवरों जैसे कुत्ते के बाल भी परेशानी का कारण बनते हैं। परफ्यूम, रूम स्प्रे, कॉइल का धुआं, कोई भी क्रीम, लोशन आदि के इस्तेमाल से भी एलर्जी हो सकती है। दमा के मर्ज की कोई उम्र नहीं है, लेकिन पंद्रह से पैंतीस साल के युवाओं में इसकी प्रवृत्ति ज्यादा देखने को मिल रही है। इसकी वजह उन्हें धूल का एक्सपोजर ज्यादा होना हो सकती है।

दमा के जो मरीज अपने इलाज पर ज्यादा पैसा खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं वह होम्योपैथी का सहारा ले सकते हैं। जिला होम्योपैथी चिकित्साधिकारी डॉ.बीपी सिंह के मुताबिक होम्योपैथी में दमा का कारगर इलाज हो सकता है। होम्योपैथी में हर मरीज को अलग अलग दवा देने की जरूरत महसूस की जाती है। क्योंकि, सभी के लक्षण एक जैसे नहीं होते। इस चिकित्सा पद्धति से इलाज करते समय मरीज की मानसिक स्थिति भी ध्यान में रखी जाती है। पचास साल से कम उम्र के मरीजों का होम्योपैथी में पूरी तरह से इलाज हो जाता है। इलाज के दौरान और सामान्य स्थिति में भी दमा के मरीजों को ठंडी और खट्टी चीजें खाने से बचना चाहिए। कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम आदि का सेवन बिल्कुल नहीं करें तो अच्छा है। आयुर्वेद फिजीशियन डॉ.एसपी गुप्ता के मुताबिक, दमा के मरीजों को चावल, उड़द, दही से परहेज करना चाहिए(हिंदुस्तान संवाददाता,मुरादाबाद,6.5.14)। 

दमा के संबंध में इस ब्लॉग पर पूर्व में प्रकाशित कुछ उपयोगी आलेखों का लिंक है- 

आगे चलें...

शुक्रवार, 11 मई 2012

अस्थमा पीड़ित बच्चों के लिए घरेलू उपचार

-एक पके हुए केले को गैस पर धीमी आँच पर थोड़ी देर तक सेकें। इस पर बारीक कुटी हुई काली मिर्च बुरक कर बच्चे को गरम-गरम खाने के लिए दें। इससे अस्थमा के अटैक में तुरंत राहत मिलती है। 

 - तुलसी के कुछ पत्तों को पीसलें। १३ मि.ली. शहद में २० मि.ली. तुलसी का पेस्ट अच्छे से मिलाकर बच्चे को चटा दें।  

- अस्थमा के मरीज़ों को कई बार सांस लेने में परेशानी महसूस होती है। ऐसे में तुलसी के पत्तों पर थोड़ा काला नमक छिड़कर चूसने से फायदा होता है।

- अस्थमा में लहसुन बहुत फायदेमंद होती है। लहसुन की कलियों को दरग्गच कर दूध में उबालें। बच्चे को ये दूध पिलाएँ। लहसुन की कलियाँ भी खा सकते हैं।

-शहद की बरनी को बच्चे को कुछ मिनिटों के लिए सूंघने के लिए दें। एक गिलास हल्के गरम पानी में एक चम्मच शहद मिलाएँ और एक दिन में तीन बार बच्चे को पीने के लिए दें। 

-पुरानी सुखाई हुई हल्दी का एक टुकड़ा लें। इसे खरल या ओखली में डालकर बारीक पाउडर बना लें। एक चम्मच यह हल्दी पावडर लेकर दो चम्मच शहद में अच्छे से घोल लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन दें। 

-अजवाईन को पानी में उबालें और बच्चे को इसकी भाप लेने के लिए दें। तकलीफ कम हो जाएगी। 

-रात को सोने के पले,थोड़े से भुने हुए चने खा लें। इसके ऊपर एक गिलास गरम दूध पीयें। 

-किशमिश को रात भर पानी में गलाकर रख दें। सुबह-सुबह बच्चे को ये अंगूर चबाकर खाने के लिए दें(सेहत,नई दुनिया,मई प्रथमांक 2012)

आगे चलें...

रविवार, 1 अप्रैल 2012

ब्रॉन्कायल अस्थमा

ब्रॉन्कायल अस्थमा श्वसन तंत्र का क्रॉनिक रोग है जिसके लक्षण हैं बार-बार हाँफने व घरघराने के दौरे पड़ना; हर व्यक्ति में इन दौरों की गंभीरता व आवृत्ति भिन्न होती है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति में एक दिन या एक हफ्ते में कई बार लक्षण प्रकट हो सकते हैं और लोगों के लिए तो शारीरिक श्रम करते हुए या रात में स्थिति बदतर हो सकती है। अस्थमा के अटैक में ब्रॉन्कायल ट्यूब सूज जाती हैं, जिससे वायु पथ तंग हो जाते हैं। नतीजतन फेफड़ों में जाने वाली एवं बाहर आने वाली हवा का प्रवाह घट जाता है। बारंबार प्रकट होने वाले अस्थमा के लक्षणों से मरीज को रात में अनिद्रा, दिन में थकान, सक्रियता का स्तर कम होना आदि जैसी समस्याएँ पेश आती हैं और वह स्कूल/ दफ्तर में अनुपस्थित रहने लगता है। यह बहुत दुखद है, क्योंकि अस्थमा, रोगी व उसके परिवार पर बहुत बोझ डालता है। कई मामलों में जिंदगी भर मरीज की गतिविधियों में अड़चन देता रहता है।

अस्थमा के कारण 
 अस्थमा के बुनियादी कारणों को अभी भी पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। अस्थमा होने के पीछे जो सबसे पुख्ता जोखिम हैं वे आनुवांशिक प्रवृत्ति व अन्य घटनाओं के संयोजन से उत्पन्न होते हैं जैसे पर्यावरणीय एक्सपोज़र या कुछ खास पदार्थों व कणों को श्वास के साथ भीतर खींच लेना। इससे एलर्जिक रिएक्शन या वायुपथ में परेशानी पैदा हो सकती है, जैसेः -भीतरी एलर्जी कारक (जैसे- बिस्तर, गलीचे व स्टफ्ड फर्नीचर पर मौजूद धूलि कण; प्रदूषण, पालतू पशुओं की रूसी) -बाहरी एलर्जी कारक (जैसे- पराग व फफूंद) एवं तंबाकू का धुआँ। -कार्यस्थल पर रासायनिक उत्तेजक पदार्थ।

वायु प्रदूषण 
अन्य कारकों में शामिल हो सकते हैं- ठंडी हवा, अत्यधिक भावनात्मक घटना जैसे गुस्सा या डर और शारीरिक सक्रियता। यहाँ तक की कुछ दवाएँ भी जैसे एस्प्रिन व अन्य नॉन-स्टिरॉयड एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग्स भी अस्थमा को भड़का सकती हैं। शहरीकरण से भी अस्थमा के रोगियों की तादाद बढ़ी है, लेकिन इस संबंध की सटीक प्रकृति क्या है वह अब तक स्पष्ट नहीं है। 

शारीरिक सक्रियता से होने वाला अस्थमा 
शारीरिक सक्रियता से होने वाला अस्थमा उस स्थिति को कहते हैं जब कसरत या कड़ा परिश्रम करने से रोगी का ब्रॉन्कोसपाज़्म तीव्र हो उठता है और साथ में वायुपथ की प्रतिक्रिया बहुत बढ़ जाती है। शारीरिक सक्रियता से होने वाला ब्रॉन्कोसपाज़्म अक्सर अनदेखा रह जाता है, क्योंकि यह अस्थमा लगभग ५० प्रतिशत मरीजों में खामोशी के साथ मौजूद रहता है किंतु कसरत या कड़ा परिश्रम करने पर प्रकट होता है। कसरत से होने वाले ब्रॉन्कोसपाज़्म का पैथोजेनेसिस विवादास्पद है। यह रोग शायद वायुपथ का पानी कम होने,वायुपथ की गर्मी घटने या इन दोनों के संयोजन से हो सकता है। 

रोगी शिक्षा 
अस्थमा के मरीज़ को इस विषय पर शिक्षा देना महत्वपूर्ण है। मरीज़ों और चिकित्सकों के बीच सहभागिता स्थापित करके इस मर्ज़ की अच्छी प्रकार देखभाल की जा सकती है। 

रोगी शिक्षा के अहम बिंदु इस प्रकार हैं 
-अस्थमा के इलाज के हर पहलू पर मरीज को शिक्षित किया जाना चाहिए। 

- हैल्थकेयर टीम के सभी सदस्यों; जिनमें नर्सें, फार्मासिस्ट व रेस्पिरेटरी थेरपिस्ट शामिल हैं,को पर्याप्त शिक्षा दी जाना चाहिए।

-डॉक्टरों को चाहिए कि वे मरीजों को अस्थमा के सैल्फ-मैनेजमेंट के बारे में बताएँ, जिनमें शामिल विषय हैं-अस्थमा के बुनियादी तथ्य, सैल्फ-मॉनीटरिंग तकनीकें, दवाओं की भूमिका, इन्हेलर का इस्तेमाल और पर्यावरण नियंत्रण के उपाय।

-मरीज व उसके परिवार के लिए इलाज संबंधी लक्ष्य निश्चित किए जाने चाहिए।

-एक लिखित, वैयक्तिक व दैनिक सैल्फ-मैनेजमेंट योजना विकसित करना चाहिए(डॉ. आर के सिंघल,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक 2012)। 


अटैक आने पर क्या करें 
अस्थमा के अटैक आने पर लेटें नहीं, बल्कि कमर सीधी करके बैठ जाएं। शांत, सहज और तनाव-मुक्त रहने की कोशिश करें तथा कसे हुए कपड़ों को ढीला कर दें। बिना देर किये चिकित्सक के कहे अनुसार रिलिवर दवा का खुराक लें। पांच मिनट तक अगर आराम नहीं मिलता है तब चिकित्सक की सलाह के अनुसार रिलिवर दवा का अतिरिक्त डोज लेनी चाहिए। बावजूद आराम महसूस न हो तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करें। 


कैसे करें देखभाल 
अस्थमा मरीजों के लिए अलग-अलग दवाइयां लेना, वायु मार्ग खोलने के लिए एलर्जी कारकों के प्रति रोगी के शरीर की प्रतिक्रिया कम करने के लिए, एलर्जी संबंधी परीक्षण, दमे के दौरे को रोकने और जांचने के लिए पिक फ्लो मीटर का उपयोग करनी चाहिए। जब सांस में घरघराहट हो तो दूध के उत्पादों का सेवन बंद कर दें, क्योंकि इससे रोगी का श्लेष्मा गाढ़ा हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए जरूरी है कि दमे का दवा सदैव साथ रखनी चाहिए। ठीक हो जाने पर भी चिकित्सक की सलाह के बिना दवाइयां लेना बंद नहीं करें। सिगरेट, पाईप तथा सिगार के धूएं से बचनी चाहिए। 


उपचार की पद्धति 
अस्थमा की रोकथाम के लिए बाजार में आवश्यक दवाइयां उपलब्ध है। कुछ साल पहले तक यह इसका इलाज एक बड़ी समस्या थी लेकिन अब परिस्थिति काफी हद तक सामान्य है। चिकित्सक की सलाह के अनुसार अपनी दवाइयां, जैसे- इन्हेलर या प्रिवेन्टर तथा एंटीबायोटिक अस्थमा मरीजों के लिए मददगार साबित होती है। आमतौर पर लोग अपने कोलेस्ट्रॉल एवं मधुमेह की बराबर जांच कराते हैं, वैसे ही अस्थमा रोगियों को इस रोग के बारे में ध्यान देना जरूरी है एवं आवश्यकता होने पर कम्प्यूटराइज्ड पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट करानी चाहिए(राष्ट्रीय सहारा,पटना,3.5.11)।

आगे चलें...

सोमवार, 21 नवंबर 2011

सर्दी में अस्थमा

पूरी दुनिया में तीस करोड़ से ज्यादा लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। सर्दियों के दस्तक देते ही इस बीमारी से परेशान होने वालों की संख्या दिल्ली में भी हजारों में है। अस्थमा यानी दमा के रोगियों को कई बार सर्दियों के मौसम में समझ नहीं आता कि अपनी इस बीमारी पर काबू पाने के लिए क्या करें। लेकिन किसी भी बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि बीमारी है क्या, क्यों होती है और उस बीमारी के रोगी को क्या करना चाहिए और क्या नहीं? 

क्या है अस्थमा 
अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जिसमें श्वासनली या इससे जुड़े हिस्सों में सूजन आ जाती है। इसके चलते फेफड़ों में हवा जाने में रुकावट पैदा हो जाती है। जब एलर्जन्स या इरिटेंट्स श्वासनली के संपर्क में आते हैं तो सांस लेने में परेशानी होने लगती है। यही अस्थमा है। 

अस्थमा के लक्षण 
जल्दी जल्दी सांस लेना सांस लेने में तकलीफ और खांसी के कारण नींद में रुकावट सीने में दर्द या कसाव पीक फ्लो मीटर में पीक फ्लो रेट में गिरावट (पीक फ्लो मीटर एक ऐसा आसान और सस्ता उपकरण है, जिसकी मदद से आप अपने फेफड़ों की कार्यप्रणाली पर नजर रख सकते हैं) 

अस्थमा के कारण 
सीएमओ डॉक्टर संजय कुमार के मुताबिक, अस्थमा के कोई बहुत स्पष्ट कारण नहीं होते। लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह एक जेनेटिक समस्या है। यानी ये बीमारी तब होने की आशंका ज्यादा होती है, जब यह आपके पूर्वजों को हो। अस्थमा होने का एक अन्य कारण भी है। यदि कोई व्यक्ति पर्यावरण के एलर्जन्स या इरिटेंट्स के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील होता है तो उसे अस्थमा हो सकता है। अस्थमा का उम्र से कोई रिश्ता नहीं होता। यह किसी भी उम्र में हो सकता है। यदि व्यक्ति की उम्र 30 से कम है तो उसके अस्थमा के लिए एलर्जिक जिम्मेदार हो सकते हैं। यदि व्यक्ति की उम्र 30 से अधिक है तो हवा में तैरते हवा के कणों के कारण भी अस्थमा हो सकता है। बड़े बुजुर्गो में सिगरेट का धुआं, ठंडी हवा और भावनात्मक तनाव से भी अस्थमा हो सकता है। 

घरेलू नुस्खे भी फायदेमंद 
लहसुन अस्थमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। 

अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से अस्थमा नियंत्रित रहता है। सुबह-शाम इस चाय का सेवन करने से फायदा होता है। 

अस्थमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें। काफी फायदा होगा। 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्घ शहद मिलाएं और गरम-गरम पी लें। रोज दो से तीन बार यह काढ़ा पीने से लाभ होगा। 

अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मेथी का काढ़ा और स्वादानुसार शहद मिलाएं। यह बेहद फायदेमंद साबित होता है। 

मेथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मेथी दाना और एक कप पानी उबालें। सुबह-शाम इसका सेवन करें। 

क्या करें 
धूल से बचें, याद रखें धूल-कण ऐसे लोगों के लिए एक आम ट्रिगर है। एयरटाइट गद्दे, बक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल ना करें। इन जगहों पर धूल-कण होते हैं। 

पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं। इससे घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा। 

अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें। इसके बारे में जानकारी बढाएं। इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढ़ेगी। 

एलर्जी की जांच कराएं, इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स के मूल कारणों की पहचान कर सकते हैं। 

क्या न करें 
घर में पालतू जानवर हैं तो उन्हें बिस्तर पर या बेडरूम में न आने दें। 

घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आसपास धूम्रपान न करें। संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद कर दें, क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपड़ों पर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है। 

गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें। 

अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें। 

अस्थमा का अटैक आने पर घबराएं नहीं। 

उन माता-पिता को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिनके बच्चों को अस्थमा है। अटैक के दौरान बच्चों पर आपकी प्रतिक्रिया का असर पड़ता है। आप घबरा जाएंगे तो उन पर इसका बुरा असर पड़ेगा(अनुराधा गोयल,हिंदुस्तान,दिल्ली,16.11.11)।

आगे चलें...

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

अस्थमा का घरेलू उपचार

-एक पका हुआ केला लें। इसे गैस पर धीमी आँच करके थोड़ी देर तक सेकें। इस पर बारीक कुटी हुई काली मिर्च बुरक कर बच्चे को गरम-गरम खाने के लिए दें। यह एक बढ़िया उपाय है जिससे अस्थमा के मरीज़ को तुरंत राहत मिलती है। अस्थमा के अटैक से उबरने के लिए यह एक कारगर उपाय है।

-तुलसी के कुछ पत्तों को पीस लें। १३ मि.ली. शहद में २० मि.ली. तुलसी का पेस्ट अच्छे से मिलाकर बच्चे को खाने के लिए दें। यह एक बढ़िया उपाय है।

-अस्थमा के मरीज़ों को कई बार साँस लेने में परेशानी महसूस होती है। ऐसे में तुलसी के पत्तों पर थोड़ा काला नमक छिड़ककर मुँह में रखने से फायदा होता है।  

 - अस्थमा में लहसुन बहुत फायदेमंद होती है। लहसुन की कलियों को कुचलकर दूध में उबालें। बच्चे को ये दूध पिलाएँ, चाहें तो उबली हुई कलियाँ भी खाई जा सकती हैं।

-शहद की बरनी को बच्चे को कुछ मिनटों के लिए सूँघने के लिए दें। एक गिलास हल्के गरम पानी में एक चम्मच शहद मिलाएँ और दिन में तीन बार बच्चे को पीने के लिए दें।  

-पुरानी सुखाई हुई हल्दी का एक टुकड़ा लें। इसे खरल या ओखली में डालकर बारीक पावडर बना लें। यह हल्दी पावडर एक चम्मच लें और इसे दो चम्मच शहद में अच्छे से घोल लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन लें।  

 - अजवाइन को पानी में उबालें और बच्चे को इसकी भाप लेने के लिए दें, राहत मिलेगी।

-सूखे अंगूरों को रात भर पानी में गलाकर रख दें। सुबह बच्चे को ये अंगूर चबाकर खाने के लिए दें।

-रात को सोने से पहले थोड़े से भुने चने खा लें। इसके ऊपर एक गिलास गरम दूध पीयें(सेहत,नई दुनिया,अक्टूबर चतुर्थांक 2011)। 


आज ही शाम सात बजे जानिएः 


कमर दर्द होने पर क्या करें

आगे चलें...

रविवार, 27 मार्च 2011

तकिया और दमा

हो सकता है, आप इस तथ्य से वाकिफ न हों कि तकिया अस्थमा के उत्प्रेरकों से भरा हो सकता है, लेकिन यह सच है। जिन लोगों को अस्थमा है उन्हें अपने रहवास के सभी साजो-सामान पर नजर रखना चाहिए। तकिया और बिस्तर गादी उनमें सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सारी रात इसी के साथ बिताई जाती है।

अस्थमा के कई मरीजों को तकिए का खोल रोज तक बदलने की सलाह दी जाती है। इसकी वजह यह है कि इसमें शरीर से खिरने वाली त्वचा पर पलने वाले अति सूक्ष्म जीव (डस्ट स्माइट्स) जमा हो जाते हैं। मरीज अक्सर तकिए का खोल बदलकर ही संतुष्ट हो जाते हैं जबकि इतना ही काफी नहीं है। अक्सर तकिया सालों साल नहीं बदला जाता क्योंकि उसकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता। कई मरीज खुशनसीब होते हैं जिनके परिजन तकिए को एकाध बार धूप दिखा देते हैं। तकिया बदला भी जाना चाहिए इस पर बहुत कम लोग सहमत होते हैं।

गंभीर है यह समस्या
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल हैल्थ साइंसेस के एक सर्वेक्षण के मुताबिक ४५ प्रतिशत घरों में डस्ट स्माइट्स भरे हैं। इनमें अस्थमा कारक उत्प्रेरकों की इतनी अधिक सघनता होती है कि इलाज चलते रहने के बावजूद मरीज को रह-रहकर अस्थमा के दौरे पड़ते हैं। इसकी वजह यही डस्ट स्माइट्स हैं। मासूम से तकिए और गादी में ठसाठस भरे जीवों पर किसी का ध्यान नहीं जाता। हो सकता है,सामान्य मरीज़ों को इनसे बहुत फर्क न पड़ता हो,मगर जो असाध्य अस्थमा,एलर्जी और श्वास संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं,उन मरीज़ों को पड़ता है। व्यक्तिगत साफ-सफाई की ओर ध्यान देकर इन मरीज़ों को दमा के दौरों से बचाया जा सकता है।

हर साल बदलें
विशेषज्ञों का मानना है कि अस्थमा के मरीज़ का तकिया हर साल बदला जाना चाहिए। सामान्य जन दो साल में तकिया बदल सकते हैं। इस्तेमाल हो रहे तकियों को हफ्ते में एक बार धूप में रख सकते हैं। बिस्तर-गादी और तकियों के अलावा,शयनकक्ष के गलीचों में भी इन्हीं सूक्ष्म जीवों की भरी-पूरी कॉलोनियां निवास करती हैं। गलीचों को धूप दिखाने के साथ ही इन्हें 130-160 डिग्री तक गर्म किए पानी में भी धोया जा सकता है।

हाइपो एलर्जिक तकिया
हाइपो एलर्जिक तकिए पोलिएस्टर फाइबर से बने होते हैं जो बेहतर विकल्प के रूप में सामने आते हैं। पोलियूरेथ्रीन चढ़े हुए बिस्तर-गादी और तकियों में एलर्जन्स का जमावड़ा नहीं होने पाता लेकिन पसीना सोख लिया जाता है। इससे शरीर नियमत रूप से "सांस" ले पाता है।

एक्यूट ब्रोंकाइटिस
आमतौर पर एक्यूट ब्रोंकाइटिस यानी श्वास नलिका की सूजन के कारण होने वाली तीव्र खाँसी का दौरा कुछ दिनों से कुछ हफ्तों तक जारी रहता है। हो सकता है इसके साथ सर्दी-जुकाम और बुखार भी आ जाए। यह पहले सूखी खाँसी के रूप में शुरू होता है बाद में इतना तीव्र हो जाता है।

मरीज गहरी नींद में से उठ बैठता है। कुछ ही दिनों में बलगम निकलने लगता है। इसी के साथ सिरदर्द,बदन दर्द,बुखार और थकावट रहने लगती है। बुखार भले ही जल्दी उतर जाए,लेकिन खांसी कई हफ्तों तक जारी रहती है। यदि खांसी के साथ बलगम निकलना भी एक महीने तक जारी रहे तो विशेषज्ञ को दिखाना ठीक रहता है। यदि खांसी के साथ बलगम और खून भी निकलने लगे,तो स्थिति को गंभीर समझना चाहिए। इस परिस्थिति में टीबी अथवा फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है।

बच्चों पर असर
बच्चों पर एलर्जन्स का बहुत जल्दी असर पड़ता है। बच्चों को इस्तेमाल के लिए एलर्जी प्रुफ कवरिंग वाले बिस्तर गादी और तकिए दिए जा सकते हैं। इससे वे घरेलू डस्ट माइट्स से होने वाले संक्रमण से बच सकते हैं। इसकी पुष्टि "द जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्युनोलॉजी" में प्रकाशित एक अध्ययन से भी हुई है।

घर भी रखें साफ
आपके घर का वातावरण और माहौल भी अस्थमा के उत्प्रेरकों को बिस्तर गादी और तकिए में जमा करने के लिए जिम्मेदार है। उदाहरण के तौर पर आपका घर बहुत खुला-खुला है और बाहर धूल भरी हवाएँ भी आती रहती हैं, तब घर में धूल अधिक रहेगी साथ ही डस्ट स्माइट्स भी अधिक मात्रा में रहेंगे। इसी तरह यदि एअर टाइट घर में रहेंगे तब भी अस्थमा उत्प्रेरकों से घिरे रहेंगे क्योंकि डस्ट एलर्जन्स बाहर नहीं निकल पाएँगे। इसलिए सबसे अच्छा उपाय यही है कि बिस्तर-गादी और तकिए तो नियमित रूप से धूप दिखाते रहें। छः महीने से दो साल के भीतर तकिए बदल दें(डॉ. सलिल भार्गव,सेहत,नई दुनिया,मार्च चतुर्थांक 2011)

आगे चलें...

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

पटाखे और दमा

दिवाली के बाद राजधानी की हवा में जहर घुल जाता है! पटाखों के शोर से न सिर्फ ध्वनि प्रदूषण होता है, बल्कि वायु प्रदूषण भी जमकर होता है। एम्स के मेडिसीन विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ एमपी शर्मा के मुताबिक दिवाली के बाद अचानक श्वास संबंधी मरीजों की संख्या अस्पताल में ब़ढ़ जाती है। २० से २५ फीसदी ऐसे मरीज अस्पताल पहुंचते हैं, जिन्हें अस्थमा, दमा, हृदय, फेफ़ड़े आदि के रोग की शिकायत होती है। डॉ. शर्मा के मुताबिक धुएं व धूल के रूप में सूक्ष्म पदार्थ लोगों के नाक के रास्ते आसानी से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इन सूक्ष्म पदार्थों का व्यास १० माइक्रोमीटर होता है। इससे सबसे अधिक छोटे बच्चे प्रभावित होते हैं। उनमें अस्थमा के अधिक मामले देखने में आते हैं। दिवाली की रात पटाखों के चलने से वातावरण में एक धुंध(स्मॉग) का स्तर बन जाता है, जिससे लोगों में श्वास फूलना, घबराहटर, खांसी, हृदय व फेफ़ड़े संबंधी परेशानी, आंखों व गले में संक्रमण, दमा का अटैक आदि होने लगता है। दीपावली रोशनी का त्योहार है और इस अवसर पर पटाखे न छूटें, ऐसा हो नहीं सकता। पटाखे बेशक रोमांच प्रदान करते हैं, लेकिन इनसे उठने वाला धुआं सेहत के लिए खासा तकलीफदेह होता है। धुआं आमतौर पर प्रदूषण का पर्याय भी समझा जाता है, और निस्संदेह दीपावली के पटाखों का धुआं इसी श्रेणी में आता है। इस प्रदूषण से उठने वाली स्वास्थ्य परेशानियों के बारे में सांस की तकलीफ से जूझ रहे लोगों से बेहतर और कौन बता सकता है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में दमे के रोगियों की संख्या 1.5 से 2 करोड़ के बीच है, जिनमें एक अनुमान के अनुसार 10 से 15 प्रतिशत 5 से 11 वर्ष तक के बच्चों हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके शरीर की रोधक प्रणाली पूरी तरह से विकसित नहीं होती। फुलझड़ी और अनार जैसी आतिशबाजी में कॉपर, कैडमियम, लैड, मैंग्नीज़, ज़िंक, सोडियम और पोटाशियम जैसे तत्व होते हैं। दमे के जिन रोगियों के एयरवेज हाइपरएक्टिव होते हैं, इन प्रदूषण तत्वों से ब्रांकियल मकोसा को तकलीफ होती है और श्वास प्रणाली में सूजन आ जाती है।

होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. बख्शी के अनुसार, ‘सर्दी और जुकाम की तकलीफ को ठीक से काबू न किए जाने पर टॉन्सिलाइटिस, साइनसाटिस, एलजिर्क रिनाइटिस, नैज़ल पॉलिप की समस्याएं सिर उठाती हैं और तेज दवाओं से इन्हें दबाने पर दमे की गंभीर समस्या आ घेरती है।’

दमे की समस्या एलर्जी के कारण उठती है और उसकी प्रमुख वजह एंडोजेनिक होती है और अधिकांश मामलों में यह आनुवांशिक चलती है। अक्सर यह समस्या रोगी के शरीर में कहीं छुपी रहती है और विशेष हालात में व्यक्ति के रोधक तंत्र के कमजोर होने की स्थिति में मुंह उठा देती है। ऐसे हालात सजर्री, इनफेक्शन, गर्भावस्था या वृद्धावस्था में बनते हैं।

दीपावली पर जो घातक गैसें पर्यावरण को दूषित करती हैं, उनमें ऐसे घातक तत्व होते हैं। शोध के अनुसार दशहरे से नववर्ष तक का समय दमा रोगियों के लिए कठिन होता है। संकरे इलाकों में रहने वाले दमा रोगियों को इन दिनों विशेष तौर पर तकलीफ का सामना करना पड़ता है।

दमे का उपचार: होम्योपैथी विधि में विशेष तौर पर बनाई गई दवाओं की मदद से शरीर के उपचार तंत्र को सहयोग मिलता है। दमे का इलाज होम्योपैथी में संभव है, लेकिन इसके लिए उन कारकों का बहुत गहराई से अध्ययन करना पड़ता है जिनके कारण दमे का दौरा पड़ा था, और उन कारणों का भी जिनसे दमा पीड़ित की हालत गंभीर या उसमें सुधार आता है। अनुभवी होम्योपैथ से इस बारे में सलाह लेनी चाहिए। प्रत्येक रोगी को दमे की दवा का अलग अनुभव होता है।

दवाएं: एरेलिया 200 - रात्रि में होने वाले दमा के अटैक के लिए आर्सेनिक एलबम 200 - सर्दी के मौसम में उठने वाली दमा समस्या के लिए पोथोस 30 - सांस के जरिए धूल अंदर जाने से होने वाली तकलीफ के लिए खुराक : गोली - दिन में दो सिरप : दिन में दो बार आधा कप पानी में एक चम्मच दमे का इलाज कराने वालों को कुछ समय तक के लिए इन्हेलरों, स्टीरॉयड और ब्रॉन्कोडिलेटर्स दूर रहना चाहिए।

सावधानियां: सरकार भी प्रदूषण कम करने की पहल कर रही है, लेकिन त्योहार के समय आतिशबाजी को रोक पाना संभव नहीं होता। इसलिए बेहतर होगा कि सावधानी बरती जाए। इसके लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं -

- अधिक प्रदूषण वाले इलाकों से दूर रहें। - खाना हल्का और जल्दी खाएं। ठंड से बचें। - भावनात्मक तनाव से दूर रहने का प्रयास करें। - इसके अतिरिक्त ठंडे पेय, अचार, टमाटर सूप, सॉस/कैचप न लें। संतरा, नींबू, अंगूर, अरबी, भिंडी, चावल, उड़द दाल, बर्गर और पिज्जा आदि न लें।

(हिंदुस्तान,दिल्ली,2.11.2010)


आगे चलें...

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

संधिकाल में खीर

आयुर्वेद के हिसाब से संधिकाल का मौसम शुरू हो चुका है। दो मौसमों के मिलन समय को संधिकाल कहा जाता है। गर्मी कम हो गई है, सर्दी ने दस्तक दे दी है। ऐसे मौसम में सबसे अधिक दिक्कत दमा रोगियों को होती है। शुक्रवार को शरद पूर्णिमा है। इस दिन विशेष तरीके से खीर का सेवन लोगों के लिए अमृत समान है। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ-आयुर्वेद) डॉ. एसके आर्य कहते हैं कि शरद पूर्णिमा का तात्पर्य है चांद का मौसम। हमारा स्वास्थ्य चक्र तीन हिसाब से चलता है सूर्य, चंद्रमा और वायु। वायु सूर्य-चंद्रमा को संतुलित करता है। चंद्रमा प्रतीक है कफ या शीत का। शरद पूर्णिमा के दिन कई किरणें ऐसी होती हैं जिन्हें एक विशेष विधि से ग्रहण करने पर फायदा होता है। डॉ. आर्य कहते हैं कि व्यक्ति विशेष को अपनी भूख के अनुसार ५० से १०० ग्राम तक शमा के चावल, ५०० ग्राम गाय का दूध और उतना ही पानी लेना चाहिए। एक खास किस्म की ज़ड़ (गु़ड़िया) को धोकर मिला लें। सबको मिलाकर खीर बनाएं। खीर में मीठे के लिए सिर्फ गु़ड़ का प्रयोग करें। शाम को छः बजे खीर बनाएं। जैसे ही चंद्रमा का उदय हो उसको केले के पत्ते से स्टील के पात्र में रखकर ढक दें। कुछ देर तक निरंतर देखते रहें। फिर भरपेट खीर खाएं। खाने के बाद पानी नहीं पीएं। बहुत ज्यादा प्यास लगे तो सौंठ का उबला हुआ पानी पीएं। डॉ. आर्य कहते हैं कि निश्चित रूप से ऐसा करना अमृत लेने जैसा होगा, खासतौर पर दमा रोगियों के लिए। क्या करें- *एक माह तक रात्रि में १० से २० ग्राम तक गु़ड़ खाएं *पेट साफ रखने के लिए त्रिफला और इसबगोल का प्रयोग करें *लौकी, तोरई, बथुआ, परमल, चौलाई, लहसुन का सेवन न करें *सौंठ, पिपली, काली मिर्च का बराबर चूर्ण शहद के साथ चाटें क्या न करें- *खाने के बाद रोटी का एक टुक़ड़ा सब्जी के साथ खाएं फिर जल पिएं *मलमूत्र, डकार, खासी को जबरन न रोकें *ज्यादा भी़ड़ की जगह पर न जाएं *सर्दी से बचाव करें *ज्यादा से ज्यादा स्वच्छ हवा का सेवन करें *प्राणायाम करें, धीरे-धीरे (नई दुनिया,दिल्ली,22.10.2010)

आगे चलें...

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

मुंबई में दमे की आयुर्वेदिक दवा का वितरण 22 को

मुंबई में,भिवंडी के विश्व गौड़ ब्राह्माण संस्था की ओर से गोकुलनगर स्थित रानी सती मंदिर में 22 अक्टूबर की रात 11 बजे दमा (अस्थमा) की आयुर्वेदिक दवा वितरण किया जाएगा। संस्था के अध्यक्ष मोतीलाल मिश्र ने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात अस्थमा और किडनी स्टोन की दवा वितरित की जाएगी। इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है। रजिस्ट्रेशन 19 व 22 अक्टूबर को सुबह 10 बजे से एक बजे तक और शाम चार बजे से सात बजे तक राणीसती मंदिर में किया जाएगा, जिसके लिए मोतीलाल मिश्रा से मोबाइल नंबर- 9322234605 एवं 230330 पर संपर्क कर सकते हैं। रात 11 बजे के बाद अस्थमा की दवा खीर के साथ एवं किडनी स्टोन की दवा चाय के साथ दी जाएगी(नवभारत टाइम्स,मुंबई,17.10.2010)।

आगे चलें...

बुधवार, 22 सितंबर 2010

गैलेक्सो की स्पाइरिवाःअसाध्य अस्थमा को बाय-बाय

अस्थमा रोगियों के लिए एक खुशखबरी। शोधकर्ताओं ने अस्थमा के लिए नई दवा की खोज की है। यह नई दवा उन मरीजों के लिए भी फायदेमंद होगी, जिनमें अस्थमा रोग नियंत्रित नहीं हो पाता है। इस शोध के लिए अमेरिकी सरकार ने फंड मुहैया कराया और शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए करीब एक मिलियन डॉलर खर्च किए। अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा खोजी गई नई दवा का नाम स्पाइरिवा है। अस्थमा रोगियों को इस दवा से उतना ही फायदा होता है, जितना सेरेवेंट दवा से होता है। अस्थमा पर नियंत्रण पाने के लिए ग्लैक्सो द्वारा बनाई जा रही सेरेवेंट दवा अभी तक सबसे कारगर है। एक शोधकर्ता ने बताया कि अस्थमा के उपचार के लिए बनाई गई नई दवा स्पाइरिवा, ग्लैक्सो द्वारा बनाई जा रही सेरेवेंट के बराबर ही मरीजों को फायदा पहुंचाती है। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर लगभग 300 मिलियन लोग अस्थमा से ग्रसित हैं, जिनमें 22 मिलियन रोगी तो अमेरिका में है। इनमें करीब 4000 मरीज प्रत्येक वर्ष मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। जिन अस्थमा रोगियों पर नियंत्रण नहीं पाया जाता है, उन्हें वर्तमान गाइडलाइन के मुताबिक दवा की खुराक को दुगुना कर दिया जाता है और साथ में मांसपेशियों पर नियंत्रण पाने के लिए अलग से दवा दी जाती है, जिससे मरीज की सांसें बरकरार रह सके, लेकिन यह भी बहुत अधिक कारगर नहीं है। नए उपचार की खोज के लिए शोधकर्ताओं ने अस्थमा के इलाज में सहायक तीनों तरीकों को शोध में आजमाया। यानि, स्टेरॉइड दवा की खुराक को दुगुना करना, ग्लैक्सो की दवा सेरेवेंट और नई दवा स्पाइरिवा, इन तीनों से होने वाले फायदे को देखा गया। इसके लिए शोधकर्ताओं ने 210 अस्थमा मरीजों को शामिल किया। ये सभी वैसे रोगी थे, जिनमें अस्थमा नियंत्रित नहीं हो पा रहा था। शोधकर्ताओं ने प्रत्येक दवाओं को दो-दो सप्ताह के अंतराल पर 14 सप्ताह तक मरीजों को दिया। शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके द्वारा बनाई गई नई दवा स्पाइरिवा, स्टेरॉइड दवाओं की खुराक को दुगुना करने से भी अधिक फायदा पहुंचा रहा था। साथ ही ग्लैक्सो द्वारा बनाई जा रही दवा सेरेवेंट के बराबर मरीजों को ठीक कर रहा था। प्रमुख शोधकर्ता डॉ. लेविस स्मिथ ने बताया कि स्पाइरिवा अस्थमा रोगियों के इलाज के लिए एक नया विकल्प है। इतना ही नहीं, कुछ डॉक्टर तो इन्हें उपयोग में भी ला रहे हैं, खासकर उन मरीजों में जिनमें स्टेरॉइड दवा से कोई फायदा नहीं होता है(अमर उजाला,दिल्ली,21.9.2010)।

आगे चलें...

बुधवार, 21 जुलाई 2010

दमा है तो मॉनसून से सावधान

बारिश का मौसम आ चुका है और मॉनसून में अस्थमा यानी दमे के अटैक की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि थोड़ा सा परहेज और थोड़ी सी सावधानी से इसका मुकाबला किया जा सकता है।
अस्थमा का कारण: मॉनसून के दौरान अस्थमा की बीमारी में वृद्धि क्यों होती है? इस संबंध में डाक्टरों का कहना है, 'इस समय वातावरण में अचानक पोलेन ग्रेन का ज्यादा फैलाव हो जाता है। इसके अलावा, बढ़ी हुई उमस के कारण फंगस में भी वृद्धि हो जाती है। इससे दमा के अटैक की घटनाएं बढ़ जाती हैं। बारिश के कारण सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे घुले हुए रसायनों की मौजूदगी से वायु प्रदूषण के लेवल में वृद्धि हो जाती है, जो दमा रोगियों के लिए घातक है। मॉनसून में कुछ वायरल इन्फेक्शन भी बढ़ जाते हैं, जिससे दमा की प्रॉब्लम बढ़ जाती है।
रोकथाम के उपाय : कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखकर दमा के रोग को नियंत्रण में रखा जा सकता है। दमा की दवा का नियमित सेवन करना चाहिए। असाध्य दमा से पीडि़त अधिकांश लोग दवाएं (सामान्यत: यह एक इन्हेल करने वाली कोर्टिकोस्टरॉयड है) लेते हैं, क्योंकि यह सांस लेने की प्रक्रिया में प्रॉब्लम खड़ी करती है।
अध्ययनों से पता चलता है कि नियमित रूप से दवाओं के सेवन से दमा का खतरा कम हो जाता है। यदि डॉक्टर ने दमा की दवा रोज खाने को कहा हो, तो इस सलाह पर अमल जरूरी है। एक खुराक भी मिस न हो इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
अस्थमा का खतरा कैसे कम होगा:
नम और उमस भरे क्षेत्र को नियमित रूप से सुखाएं। उमस खत्म करने वाले इक्यूपमेंट्स के प्रयोग से ह्यूमिटी को 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत के बीच रखें।
यदि संभव हो तो एसी का उपयोग करें।
बाथरूम की नियमित रूप से सफाई करें और इसमें ऐसे प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल करें, जो कीटों को खत्म करने में सक्षम हों।
एक्जॉस्ट फैन का उपयोग करें और नमी को घर में न रहने दें।
पौधों को बेडरूम से बाहर रखें।
पेंटिंग करते समय पेंट में फंगल खत्म करने वाले केमिकल का उपयोग करें, जिससे फंगल को बढ़ने से रोका जा सकता है।
दिखाई देने वाले फंगल को साफ करें तथा ब्लीच तथा डिटर्जेंट जैसे पदार्थों से युक्त क्लीनिंग सोल्युशंस का उपयोग करें।
ह्यूमिड या तेज हवा वाले दिन अंदर रहें , क्योंकि इस दिन पॉलेन गे्रन की मात्रा वातावरण में काफी हाई होती है।
पॉलेन ग्रेन को रोकने के लिए खिड़कियों को बंद रखें।
पिलो और कालीनों को एलर्जेंन्स - रोधी बनाएं।
पिलो व बेड को पंखों से दूर रखें। अपने बेड को सप्ताह में एक बार गर्म पानी से धोयें।
कालीन का प्रयोग न करें। करें भी तो उसकी वैक्यूमिंग करते समय चेहरे पर मास्क लगाएं। यदि आपके बच्चे को दमा है तो उस समय वैक्यूम न करें , जब वह कमरे में हो।
भीगे कपड़े से फर्श के धूल को साफ करें और साथ ही लैंपशेड्स तथा विंडोंसिल्स की भी सफाई करें।
हीटर्स और एयर कंडिशनर्स के फिल्टर्स को नियमित रूप से बदलें।
ऐसे मित्रों और परिजनों के यहां लंबे समय तक न रहें , जिनके पास पालतू जानवर हैं। यदि आप वहां जाते हैं तो यह सुनिश्चित कर लें कि दमा या एलर्जी की दवाएं आपके साथ हैं।
अपने पालतू जानवर को सप्ताह में एक बार अवश्य नहलाएं।
(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,18.7.2010)

आगे चलें...

मंगलवार, 4 मई 2010

दमे को करें बेदम

आज विश्व दमा दिवस है। दुनिया भर में दमा के मरीजों की अनुमानित संख्या 30 करोड़ है। यह रोग पुरुषों में ज्यादा और महिलाओं में कम होता है। दमा का कारण ज्ञात नहीं है। इस मर्ज के मुख्य कारण पुष्प के परागकण, तेज गंध व स्प्रे, धूल या धुआं, धूम्रपान का धुआं, बिस्तर व तकिए की धूल, मौसम में परिवर्तन और इत्र व पाउडर का प्रयोग आदि हैं। इसे ठीक नहीं किया जा सकता। हां,दवा से नियंत्रित जरूर किया जा सकता है।
दमा के दौरे के वक्त,bronchial tubes में सूजन आ जाती है जिसके कारण सांस के लिए हवा का प्रवाह बाधित होता है । दमे के कारण फेफड़े में हवा की कमी हो जाती है इसके बार-बार अटैक से अनिद्रा और दिन में थकान जैसी शिकायतें होती हैं। सामान्यतया, दमे से पीड़ित मरीज़ को रात में खांसी आती है। मरीज को बार-बार सांस फूलने के दौरे पड़ते हैं। सोते समय दम घुटने जैसा अहसास होता है। बार-बार नाक व गले में संक्रमण होता है। बच्चों में पसलियां चलनी शुरू हो जाती हैं। ये लक्षण पूरे साल में कभी भी प्रकट हो सकते हैं, लेकिन मौसम परिवर्तन पर इनकी संभावना अधिक होती है। ध्यान रखें कि दमा संक्रमण की बीमारी नहीं है। माता-पिता में अगर किसी को एलर्जी की शिकायत है तो संतानों में इस मर्ज की संभावना अधिक होती है। 77 प्रतिशत रोगियों को अस्थमा की तकलीफ 5 वर्ष की उम्र से पहले ही शुरू हो जाती है। इस बीमारी से बच्चों को बचाने तथा अन्य मरीजों को जागरूक बनाने के लिए हर साल 4 मई को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। अन्य असाध्य रोगों की तुलना में अस्थमा से मरने वालों की संख्या काफी कम होते हैं मगर 2005 में,दुनिया भर में 2 लाख 55 हजार लोग इस रोग से मारे गए। विकासशील देशो में औद्योगीकरण और वाहनों की बढ़ती संख्या और धूम्रपान के बढ़ते चलन के कारण यह रोग भी बढ़ रहा है। विश्व में 30 करोड़ लोग दमा से ग्रस्त हैं और इस रोग के एक तिहाई मरीज भारत में हैं। भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या में 2468 लोग दमे से पीड़ित हैं। चंडीगढ़ शहर में 5 प्रतिशत बच्चे अस्थमा रोग से पीडि़त हैं। दिल्ली में 10 व मुंबई में 12 से 15 प्रतिशत लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। भोपाल में एक लाख लोग दमे से पीड़ित हैं। इनहेलेशन थेरैपी दमा के इलाज में वरदान साबित हुई है। इस थेरैपी का समुचित प्रयोग हो तो 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में दमा पर पूर्णतया नियंत्रण पाया जा सकता है। पूरे विश्व में यह इलाज की पहली अवस्था है। इस विधि में मुख्यतया दो प्रकार की दवाइयों का प्रयोग होता है। एक वह जिसमें तुरन्त लाभ मिलता है जिसे ब्रॉन्कोडाइलेटर कहते हैं। दूसरी वह जो बीमारी को आगे बढ़ने से रोकती है और कुछ मरीजों में उसे समाप्त करने की भी क्षमता रखती है। इसके अन्तर्गत मुख्यतया इन्हेलर स्टेरॉयड को शुमार किया जाता है। आज दैनिक जागरण में, चेस्ट फिजीशियन डॉ. ए.के. सिंह सीनियर ने अपने आलेख में लिखा है कि इन्हेलर्स का सबसे बड़ा लाभ यह है कि दवा सीधे सांस नली में पहुंचती है जबकि खाने वाली दवाएं शरीर के विभिन्न अंगों में जाकर नुकसान पहुंचा सकती हैं। कभी भी दमा के लक्षण प्रकट होने पर घबराएं नहीं। खुली खिड़की के पास खड़े हो जाएं, इन्हेलर का प्रयोग स्पेसर डिवाइस से करें। नेब्यूलाइजर भी ऐसी स्थिति में काफी उपयोगी होते हैं। अगर आराम नहीं मिलता, तो चिकित्सक से सम्पर्क करें। नवीनतम शोध-अध्ययनों से यह पता चला है कि 10 प्रतिशत लोगों में दमा को नियंत्रित करना कठिन है। ऐसे मरीजों में नयी पद्धति जैसे थर्मल ब्रान्कोप्लास्टी, एण्डोब्रांकियल वाल्व प्लेसमेंट, एंटी आईजीई, एंटीबॉडीज, स्पेसिफिक मॉडीफाइड इम्यूनोथेरैपी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
नेचुरोपैथी की एक किताब कहती है कि पके केले को छिलके सहित सेंकने के बाद इसका छिलका हटा दें व केले के टुकड़े कर लें। इस पर 15 काली मिर्च पीसकर बुरक दें व गरम-गरम ही दमा रोगी को खिलाएँ, तो दमा के दौरे में लाभ होता है। केले के पत्तों को छाँव में सुखाकर बाद में इसकी राख बना कर दिन में तीन बार एक-एक चुटकी की मात्रा में शुद्ध शहद के साथ लेने से भी आराम मिलता है। दमा के रोगी को कपालभाति क्रिया के अलावा भस्त्रिका सूर्यभेदी(उच्च रक्तचाप व तनाव वाले रोगी के लिए वर्जित), उच्चायीब्रह्म कुंभम प्राणायाम करना चाहिए। सांस के रोगियों के लिए सूर्यभेदीब्रह्मकुंभम उपयोगी है। ये गरम प्राणायाम हैं और कफ व विजातीय तत्वों को वाष्प बनाकर बाहर निकालते है। परिणामस्वरूप, सांस नली व फेफड़ों की नस नाड़ियों व शिराएं खुलकर ठीक से कार्य करती हैं तथा रोगियों का इन्हेलर तक छूट जाता है। दमा के रोगियों के लिए पवन मुक्त भुजंग अर्धश्लव, मारजार, नटराज आसन ज्यादा लाभदायक है। दमा के तीव्र वेग में तत्काल कफ निकालने का उपाय करना चाहिए। इसके लिए सरसों का तेल गर्म कर तथा इसमें थोड़ा नमक मिलाकर गुनगुना तेल छाती एवं पीठ पर लगाना चाहिए। अदरक का रस एक तोला, तुलसी के पत्तों का रस एक तोला- दोनों के मिश्रण में एक ग्राम शुद्ध हींग पाऊडर मिलाकर एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम लेने से आराम मिलता है। आयुर्वेद कहता है कि दमा के रोगियों को तैलीय पदार्थ व मैदा से बने पदार्थ नहीं खाने चाहिए। इसके अलावा दही, लस्सी, कढ़ी, खीर, उड़द की दाल अरबी, भिंडी व चावल के भी सेवन से बचना चाहिए। रोगी को गुनगुने दूध में शुद्ध हल्दी सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। ऐसे रोगियों को मूंग, मसूर की दाल, घीया, तोरई, परमल व टमाटर की सब्जी खानी चाहिए। ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। खाने के पहले व बाद में पानी नहीं पीना चाहिए। अपने आसपास का वातावरण शुद्ध रखना चाहिए तथा गुनगुना पानी पीना चाहिए। भोजन के पूर्व नमक एवं अदरक का सेवन लाभकारी है। रात को सोते समय लगभग आधा तोला इसबगोल सेवन करना चाहिए। धतूरे से निर्मित 'कंकासव' को एक चम्मच पानी में मिलाकर दिन में दो बार भोजन के बाद लेने से भी राहत मिलती है। दिल्ली में कर्मचारी राज्य बीमा निगम के आयुर्वेदाचार्च डॉ. प्रभाकर राव और डॉ. जे.एन.राव कहते हैं कि आयुर्वेद में दमे से निजात के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाली दवाएं दी जाती हैं। इनमें च्यवनप्राश,ब्रह्मरसायन और अगस्त्य हरीतिकी रसायन प्रमुख हैं। रामदेव जी की औषध-दर्शन पुस्तिका कहती है कि दमबेल(टाइलोफोर/इंडिका)का एक पत्र लेकर,उसमें एक काली मिर्च डालकर पान की तरह खाली पेट तीन दिन तक चबाने से अस्थमा के रोगी को लगभग पूरा आराम मिल जाता है। इस प्रयोग को जरूरत होने पर हफ्ते भर तक दुहराया जा सकता है। तीन या सात पत्ते मात्र खाने से दमे से छुटकारा मिल जाता है। किसी-किसी को इसके सेवन से उल्टी हो सकती है किंतु इससे घबराने की जरूरत नहीं है। जब कफ निकल जाएगा तो उल्टी अपने आप रूक जाएगी। इसी पुस्तक में एक अन्य स्थान पर सलाह दी गई है कि दिव्य श्वासारि रस-20 ग्राम,दिव्य अभ्रक भस्म 5 ग्राम,दिव्य प्रवालपिष्टी 5 ग्राम,दिव्य त्रिकटु चूर्ण-10 ग्राम और सितोपलादि चूर्ण 25 ग्राम लेकर मिला दें और 60 पुड़िया बना लें। सुबह नाश्ते से औऱ शाम खाने से एक घँटा पहले शहद या गर्म पानी के साथ लें। जीर्ण रोग की स्थिति में,इसमेंस्वर्ण बसन्तमालती दो-तीन ग्राम मिलाने से अत्यंत लाभ मिलता है। दूसरा उपाय यह है कि लक्ष्मीविलास रस और संजीवनी वटी को 20-20 ग्राम लेकर दोनों में से 1-1 गोली लेकर दो या तीन बार सुबह-शाम गर्म दूध या गर्म पानी के साथ लें। वैसे,हैदराबाद में बाथिनी गौड़ परिवार गत 160 सालों से भी अधिक समय से हर साल मृगशिरा कार्तिक(5 से 9 जून के बीच) के दिन प्रसादम नामक हर्बल दवा को बांटता है। तमाम आस्थाओं के बावजूद,यह स्वीकार करना होगा कि गुप्त विधि से तैयार कर मरल जाति की मछली के मुंह में भरकर साबुत खिलाई जाने वाली यह दवा अगर कारगर होती तो दुनिया से दमे का सफाया हो गया होता।

आगे चलें...

रविवार, 24 जनवरी 2010

दमा और अंगूर

(हिंदुस्तान,पटना,22.1.10)
आगे चलें...

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

दमा और अंगूर

(हिंदुस्तान,पटना,22.1.10)
आगे चलें...

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

दमा और धूल

(हिंदुस्तान,पटना,1.1.10)
आगे चलें...