फ़ीचर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
फ़ीचर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 6 मार्च 2013

किस ख़ुशबू में क्या

खुशबू में सूदिंग और रिलैक्सिंग प्रॉप्रटीज तो हैं ही, साथ ही चिकित्सकीय गुण भी हैं। विशेषकर पौधों का सत्व, जिसे एसेंशियल ऑइल भी कहा जाता है, ऐसे गुणों से भरपूर है। तो आइए खुशबूओं में नहाकर स्वास्थ्य-लाभ लें। एसेंशियल ऑइल बैक्टीरियल, फंगल और वाइरल संक्रमण दूर करने में काफी मदद करते हैं। वहीं सौंदर्य चिकित्सा में इनका कोई सानी नहीं। १९३७ में तकनीकी रूप से आए इस ऑइल का कंसेप्ट वैसे तो प्राचीनकाल से सुना जा रहा है। इन अतिसांद्र ऑइल के इस्तेमाल का विज्ञान एरोमाथैरेपी कहलाता है और खासा लोकप्रिय भी हो चुका है। 

इस तरह करें उपचार 
बालों की कंडीशनिंग के लिए 
१ टीस्पून जोजोबा ऑइल और एक से तीन बूंदें रोजमैरी ऑइल की लेकर बालों पर लगाएं, तीस मिनट इसे रखें और फिर धो लें। 

दाग-धब्बों के लिए 
३ बूंदें लेवेंडर ऑइल की लेकर इसमें ३ टीस्पून वीटजर्म ऑइल मिलाएं और चेहरे पर लगाएं। 

मुहांसे दूर करने के लिए 
३ बूंदें बर्गामॉट में २ बूंदें कैमोमिल, १ विटामिन ई कैप्सूल और ६ टीस्पून सनफ्लावर ऑइल मिलाकर लगाएं। 

ब्लैकहैड्‌स दूर करने के लिए 
२ बूंद लैवेंडर में २ बूंद जेरानिअम, १ बूंद नींबू, ६ टीस्पून सनफ्लावर ऑइल और १ विटामिन ई कैप्सूल मिलाकर प्रभावित भाग पर लगाएं। 

ऐसे हो इनका उपयोग 
- स्नान के समय पानी में अपने शरीर को सूट करने वाले एसेंशियल ऑइल की कुछ बूंदें मिलाएं। 
- मालिश इनके इस्तेमाल का सबसे प्रचलित तरीका है। किसी लोशन के साथ मिलाकर इससे मालिश मानसिक-शारीरिक दोनों तरह से रिलैक्स करती है। 
- इनहेलेशन में ऑइल की पांच बूंदें गर्म पानी में डालकर तौलिए का इस्तेमाल करते हुए भाप लेते हैं। 
- कंप्रेसिंग में गुनगुने पानी में तेल की कुछ बूंदें डालकर एक कपड़ा भिगोएं और प्रभावित स्थान पर इसे रखें। कई तरह के दर्द में लाभकारी, खासकर मसल क्रैम्प्स में। 

सेफ्टी टिप 
अरोमा ऑइल पौधों का सत्व होते हैं, जबकि दूसरे सुगंध द्रव्य रासायनिक प्रक्रिया से बनते हैं। एसेंशियल ऑइल लगाने से पहले इनकी सांद्रता कम कर लेनी चाहिए। एक निश्चित मात्रा में ही उपयोग करें, वरना सिरदर्द और बेचैनी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। गलती से ये ऑइल मुंह के भीतर चले जाएं तो पानी से कुल्ला करें। ढेर सारा पानी पिएं और आराम न होने पर चिकित्सक की सलाह लें। अगर आप प्रेगनेंट हैं, गंभीर अस्थमा है या किसी किस्म की एलर्जी है। कीमोथैरेपी चल रही हो तो भी अरोमा थैरेपी न लें।

बढ़ रहा है क्रेज़ 
अल्टरनेटिव थैरेपी को लेकर लोगों में खासा आकर्षण भी है और दिनों दिन इसे आजमाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। भारतीयों के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी भी इसके मुरीद बन रहे हैं। चाहे साधारण सिरदर्द हो या कैंसर जैसी बीमारी, अल्टरनेटिव थैरेपीज़ में सबके लिए इलाज के दावे किए जाते हैं। इस मामले में यह साल भी खबरों से भरा रहा। वेट लॉस करवाने से लेकर अस्थमा, डिप्रेशन, स्वाइन फ्लू आदि जैसी हर चीज़ के लिए कोई उपाय होने का दावा अल्टनेट थैरेपी में किया जाता है। 

कॉमन ऑइल और उनके गुण 
कैमोमिल- कारगर एंटीडिप्रेजेंट, अवसाद कम करता है। मुंहासे जड़ से खत्म करता है। 

यूकेलिप्टस- श्वाससंबंधी बीमारियों में असरदार। अपनी कूलिंग प्रॉप्रटीज के कारण माइग्रेन, बुखार और मांसपेशियों का दर्द दूर करता है। 

लैवेंडर- फ्लू, कोल्ड में भी कारगर। घाव और जले हुए स्थान पर एंटीसेप्टिक का काम। 

सीडरवुड- युरिनरी ट्रैक्ट के संक्रमण को दूर करने में प्रभावशाली। 

टी-ट्री ऑइल- मुंहासों के लिए सबसे अच्छा इलाज। 

रोजमैरी- बालों की संपूर्ण देखभाल जैसे डैंड्रफ और बालों का झड़ना रोकता है। 

पेपरमिंट- मैंथॉल सिरदर्द और मांसपेशियों का दर्द घटाता है लेकिन सोने से पहले इसका उपयोग टालें।

जोजोबा ऑइल- बहुत ही शानदार मॉइश्चराइजर है और झुर्रियां कम करता है। बेस ऑइल बतौर भी इस्तेमाल होता है। 

सैंडलवुड- हर तरह की त्वचा के लिए फायदेमंद है। सूखी खांसी और गले के विकार दूर करने में इस्तेमाल होता है। 

जिंजर- कोल्ड और फ्लू में असरदार। 

नेरोली- अनिद्रा और सिरदर्द का इलाज होता है। 

जेरानिअम- त्वचा संबंधी समस्याओं में राहत। 

गेहूं के अंकुर का तेल- विटामिन ई से भरपूर होने के कारण सन-बर्न में फायदेमंद। स्ट्रेच मार्क्स दूर करने में भी सहायक। 

आपकी त्वचा के लिए 
वातज स्किन (ड्राय और रफ) रोज-ऑइल इस तरह की त्वचा के लिए सर्वश्रेष्ठ है। 

पित्तज स्किन (अतिसंवेदनशील व नाजुक) सैंडलवुड सबसे अच्छा है। 

कफज स्किन (दाग-धब्बेदार व तैलीय) बर्गामॉट तेल इस त्वचा के लिए लाभकारी(डॉ. माधवी वटी जगत,सेहत,नई दुनिया,मार्च प्रथमांक 2013)।

आगे चलें...

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

आई ठंडःभोजन कम,हो प्यास बड़ी

जैसे स्कूटर में ट्रेन का फ्यूल नहीं डाला जा सकता, वैसे ही हम अपने शरीर की लिमिट से ज्यादा या कम लें तो नुकसान ही होगा। ये कहना है न्यूट्रिशन कंसल्टेंट विनोद सक्सेना का। उनके अनुसार ठंड में मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया तेज़ हो जाने के कारण लोग सामान्य डायट से ज्यादा खाने लगते हैं। इससे भी नुकसानदायक है पानी पीने के लिए प्यास लगने का इंतज़ार करना। कुछ साधारण से नियम फॉलो करने पर ठंड से बचाव नहीं, बल्कि एंजॉय किया जा सकता है। ठंड का मौसम यानी वक्त है सालभर के लिए एनर्जी जुटाने का। अगले चार महीने तक हम जैसा खाएंगे और जितना व्यायाम करेंगे, वही बाकी के आठ महीने में खर्च होगा। लेकिन यह सब हमें अपनी शरीर की प्रकृति के अनुसार ही करना चाहिए। इस समय शरीर को टोन-अप किया जा सकता है ताकि आने वाले एक्सट्रीम मौसम से लड़ने में शरीर को परेशानी न हो। पेश हैं कुछ आसान लेकिन बेहद कारगर टिप्स- 

प्यास हो बड़ीः 
गर्मियों में तो फिर भी लोग पानी पी लेते हैं लेकिन सर्दियां मुश्किल हो जाती हैं क्योंकि अधिकतर लोग प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं। यहां यह समझना ज़रूरी है कि सर्दियों में भी शरीर को पानी की उतनी ही ज़रूरत होती है और पानी की कमी भी होती है। इस दौरान भी एक व्यस्क को लगभग ४ लीटर पानी पीना चाहिए। अगर दिन बीतते-बीतते याद आ जाए कि पानी पीना है तो भी एक बार में बहुत सा पानी पीना फायदेमंद नहीं है, इसलिए दिनभर में थोड़ा-थोड़ा करके पानी पिएं। 

जितनी भूख, उतना खानाः 
ठंड में चयापचय की प्रक्रिया तेज़ होने के कारण हम ज्यादा खाना पचा पाते हैं लेकिन इस वजह से भूख से ज्यादा और गरिष्ठ खाना अवॉइड करें। प्रॉापर डायट प्लान करें, जिसमें विटामिन सी से भरपूर मौसमी फल, फाइबर और जूस शामिल करें। हर सुबह नाश्ते में ड्राय फ्रूट्स भी हो। ओवरवेट लोग कम कोलेस्ट्रॉल-युक्त चीजें जैसे अखरोट आदि शामिल कर सकते हैं। खाने में किसी न किसी रूप में आंवला शामिल करें।

अंतर हो खाने में:
नाश्ते से खाने के बीच चार से छह घंटे का अंतर रखना चाहिए ताकि खाना ठीक से पच सके और अगले मील के लिए शरीर तैयार हो जाए। हर काम का वक्त निधार्रित करें और ये शिड्यूल कम से कम एक मौसम फॉलो करें ताकि असर स्वयं जज कर सकें।सूरज से करें दोस्तीः आमतौर पर लोग इन दिनों सुबह देर तक सोते हैं और सूरज सिर पर चढ़ने पर या खाली वक्त में धूप सेंकते हैं। इस धूप से शरीर में हानिकारक विकिरण भी प्रवेश कर जाते हैं इसलिए सुबह की गुनगुनी धूप से लेकर दोपहर होने से पहले तक की धूप सन-बाथ का प्रापर तरीका है। रोज २० मिनट सनबाथ प्रि-विटामिन डी देता है जो शरीर के भीतर एक्टिव विटामिन में बदल जाता है। 

योग मिटाए रोगः 
ठंड में खूब एक्टिव रहें। सुबह के वक्त योग या कोई एक वक्त तय करते व्यायाम, दौड़ना शरीर को स्वस्थ रखता है। पूरा फायदा उठाने के लिए वर्क-आउट के नियम फॉलो करना न भूलें। स्नान से लगभग एक घंटे पहले गुनगुने तेल से शरीर की मालिश भी एक तरह का व्यायाम है।कान ढांककर रखें : ठंड का मज़ा लेने के साथ एक्सट्रीम ठंड से बचाव करना भी आवश्यक है। कानों को हमेशा ढंककर रखें क्योंकि ठंड के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील यही होता है। साथ ही कोई इंफेक्शन होने पर चिकित्सकीय परार्मश लिए बिना कोई दवा न लें। 

सूरज से करें दोस्तीः 
आमतौर पर लोग इन दिनों सुबह देर तक सोते हैं और सूरज सिर पर चढ़ने पर या खाली वक्त में धूप सेंकते हैं। इस धूप से शरीर में हानिकारक विकिरण भी प्रवेश कर जाते हैं इसलिए सुबह की गुनगुनी धूप से लेकर दोपहर होने से पहले तक की धूप सन-बाथ का प्रापर तरीका है। रोज २० मिनट सनबाथ प्रि-विटामिन डी देता है जो शरीर के भीतर एक्टिव विटामिन में बदल जाता है(सेहत,नई दुनिया,नवम्बर द्वितीयांक,2012)।

आगे चलें...

बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

हम क्यों नहीं हो पाते एकाग्र?

चित्त की अस्थिरता के कई कारण हैं। इसमें काम की अधिकता और भरपूर नींद की कमी जैसे कई गुनहगार शामिल हैं। आधुनिक समाज एकाग्रता नष्ट करने वालों से भरा है। लूसी जो पॉलाडीनो, एनसीनिटास, सान डियागो, अमेरिका की मनोवैज्ञानिक हैं। वे सारी दुनिया में "अटेंशन एक्सपर्ट" के तौर पर जानी जाती हैं। उन्होंने "फाइन्ड योर फोकस जोन, ड्रीमर्स, डिस्कवरर्स एंड डायनेमोस" जैसी पुरस्कृत किताबें लिखी हैं। वे गत तीस वर्षों से दुनिया भर में कार्पोरेट प्रोफेशनल्स, स्टूडेंट्स तथा होम मेकर्स के लिए चित्त की एकाग्रता पर आयोजित कार्यशालाओं में व्याख्यान देती हैं। 

मनोवैज्ञानिक लूसी जो पॉलाडीनो ने एकाग्रता का सबसे बड़ा दुश्मन सोशल मीडिया को माना है। उनका मानना है कि अपने दोस्तों से सोशल मीडिया के जरिए जुड़ना और घंटों के लिए दुनिया भर के जरूरी कामों से कट जाना बहुत आसान है। हर बार जब भी आप इन साइट्स पर अपना स्टेटस अपडेट करते हैं तब आपके विचारों की श्रंखला टूट जाती है। आपको दोबारा काम की सामान्य गति पकड़ने में वक्त लग जाता है। एकाग्रचित्त रहने के लिए जानते हैं उनके टिप्स- 

काम के दौरान रखें सोशल मीडिया से दूरी 
काम के दौरान सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखें। यदि आपको थोड़ी-थोड़ी देर में अपना मेल चेक करने की आदत है तो इसे थोड़ा विश्राम दें। ब्रेक के दौरान ही स्टेटस अपडेट करें अन्यथा लगातार आ रही पोस्ट्स आपका ध्यान विचलित कर देंगी। यदि आप लगातार अपनी पोस्ट चेक करने की लत के शिकार हो गए तों कुछ देर के लिए अपना लैपटॉप लेकर उस स्थान पर चले जाएँ जहां नेटकनेक्शन ही उपलब्ध न हो। 

ई-मेल ओवरलोड 
ई-मेल आपके इनबॉक्स पर हर वक्त आती रहती हैं। आप इन्हें देखते ही जवाब देने के लिए उतारू हो जाते हैं। हो सकता है इनमें से कुछ मेल आपके लिए महत्वपूर्ण हों लेकिन इतना तो तय है कि इनका जवाब देते समय आपके मौजूदा प्रोजेक्ट से कुछ समय के लिए दूरी बन जाएगी। यदि आप हर मैसेज का जवाब देने के लिए लगातार रुकते रहेंगे तो आपका काम भी खोटी होगा और ध्यान भी भंग होगा। इसलिए मेल चेक करने तथा जवाब देने के लिए कोई खास समय तय कर लें। शेष दिन भर केवल मौजूदा प्रोजेक्ट पर ध्यान दें। चाहें तो ई-मेल प्रोग्राम को ही शाम तक के लिए बंद कर दें। 

सेलफोन 
ई-मेल से ज्यादा सेलफोन की रिंगटोन तकलीफ़दायक है। इसकी हर घंटी काम से ध्यान भटका देती है। काम के दौरान कॉल अटेंड करने से आपके मौजूदा काम करने की गति धीमी पड़ जाती है। यदि ज़रूरी न हो तो सेलफोन को सायलेंट मोड पर रख दें। इसे वायसमेल मोड पर भी रख सकते हैं। किसी टाइमबाउंड प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हों,तो सेलफोन बंद कर दें। वॉयसमेल चेक करने के लिए ब्रेक का समय फिक्स कर दें। हर वक्त सेलफोन के मैसेजबॉक्स में से कुछ खोजते रहने की आदमत महत्वपूर्ण समय नष्ट करती है। 

मल्टीटास्किंग 
यदि आपने बहुत से काम एक साथ करने की कला विकसित कर ली है तो संभवतः आपको एहसास भी होता होगा कि आप कम समय में बहुत सारा काम निपटा लेते हैं। यह भ्रम है। शोध अध्ययन सुझाते हैं कि जब आप एक से दूसर काम की तरफ ध्यान बंटाते हैं तो आपका बहुमूल्य समय नष्ट हो जाता है। एक साथ तीन प्रोजेक्ट पर काम करने में अधिक समय नष्ट होता है जबकि एक-एक करके तीनों प्रोजेक्ट अपेक्षाकृत कम समय में निपटाए जा सकते हैं। इसलिए,अलग-अलग कामों की प्राथमिकता तय करें और उन्हें उसी क्रम में निपटाएं। कई सारे हल्के काम एक साथ किए जा सकते हैं। मसलन,अपनी डेस्क पर बिखरे हुए सामान को,फोन पर बात करते समय ढंग से जमा सकते हैं। 

बोरियत 
ध्यान भटकाने में बोरियत का भी हाथ है। हर दिन कोई नया काम करना हो तो उसमें रुचि बनी रहती है लेकिन रोज एक जैसा काम करने में बोरियत महसूस होने लगती है। अरुचिकर काम से ध्यान मिनटों में हट जाता है। किसी भी वजह से बोरियत होने लगे तो इन्हें छोड़कर आप महत्वहीन काम हाथ में ले लेते हैं। बोरियत से निपटने के लिए अपने आप को इंसेटिव दीजिए। हर १० या १५ मिनट के बाद एक ब्रेक लीजिए। यदि आपका ध्यान ब्रेक की ओर लगा रहे तो बोरियत भरा काम भी आसानी से पूरा हो जाता है। डेस्क पर इकट्ठा हो गई रसीदों और बिलों को फाइल करते समय म्यूजिक सुनने से बोरियत दूर हो सकेगी। 

तनाव 
तनाव अधिक होने की दशा में आप किसी भी एक काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। तनाव का शारीरिक स्वास्थ पर भी विपरीत असर पड़ता है। तनाव के कारण सिरदर्द होता है, दिल की धड़कनों की गति बढ़ जाती है। तनाव शैथिल्य के लिए योग एवं ध्यान का सहारा लें। इससे एक शोध अध्ययन का नतीजा सुझाता है कि आठ हफ्ते के एक ध्यान शिविर में भाग लेने वालों का ध्यान दूसरों की बनिस्पत अधिक देर तक एकाग्र रह सका था।

थकान 
शोध अध्ययनों के मुताबिक जो लोग नींद पूरी नहीं ले पाते हैं और पुनः काम शुरू कर देते हैं उनका ध्यान काम में नहीं लग पाता। शारीरिक थकान को दूर करने का एकमात्र उपाए आराम करना ही है। हर वयस्क को ७ से ९ घंटे की नींद लेना जरूरी होता है। रातों की नींद खराब करके घर पर ऑफिस के काम करते रहने से किसी का भला नहीं होता। नींद को प्राथमिकता पर रखें। 

भूख 
मस्तिष्क का ईंधन है भोजन, खासतौर पर नाश्ता प्रमुख आहार है। सुबह का नाश्ता छोड़कर सीधे लंच करना हितकर नहीं है। भूखे रहने से ध्यान विचलित होता है। 

अवसाद 
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हैल्थ के मुताबिक अवसादग्रस्त इंसान एकाग्र नहीं रह पाता। अवसाद की स्थिति में चिकित्सकीय परामर्श लेना ठीक होता है। अवसाद का सफल इलाज औषधियों और काउंसिलिंग से होता है। 

घर के काम का खयाल ऑफिस तक पीछा करता है 
कई बार ऐसा होता है कि घर का कोई करने का विचार ऑफिस तक पीछा करता रहता है। यह भी होता है कि अधूरा छूटा हुआ काम पूरा करने का खयाल हर वक्त सताता रहता है। इस तरह का कोई भी विचार ध्यान भटकाने के लिए पर्याप्त है। इससे निपटने के लिए घर और ऑफिस के कामों की अलग-अलग सूचियाँ बना लें। कागज़ पर उतारे हुए विचार पीछा नहीं करते। 

तनाव और तोंद दोनों कम करेगी डीप ब्रीदिंग 
एकाग्रता बढ़ाने के लिए डीप ब्रीदिंग से बड़कर कोई दूसरा विकल्प नहीं है। डीप ब्रीदिंग से दो फायदे हैं। पहला तनाव कम होता है दूसरा यह कि इंसान ओवरईटिंग नहीं करता। 

कैसे लें गहरी साँस 
आप जीवन में कुछ भी कर रहे हों, साँस तो लेते ही हैं। साँस पर ध्यान केंद्रित करने सेयह धीमी और गहरी होने लगती है। नाक से गहरी साँस भरें। साँस से सीना फुलाने की बजाए इसे पेट पर केंद्रित करें। पेट से साँस लेते ही आप रिलेक्स होने लगेगें। साँस अंदर भरने और छोड़ने की पूरी प्रक्रिया में दो बार रुकें। साँस भरने के बाद आठ तक गिनती गिनें।इसी तरह साँस छोड़ने के बाद भी आठ तक गिनें। इन अंतरालों पर ध्यान केंद्रित करें। इससे साँस गहरी होगी। एक मिनट में १० बार साँस लेने की कोशिश करें। धीरे-धीरे अभ्यास से साँस पर नियंत्रण होने लगता है। इससे उच्च रक्तचाप भी कम होगा। 

लगातार तनाव बना रहने के कारण साँस तेजी से चलने लगती है। फेफड़े आधे-अधूरे ही भरते हैं और शरीर के हर सेल तक ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती है। तेज गति से साँस लेने की आदत पड़ जाती है। साँस पर ध्यान केंद्रित करने से यह लंबी होती है और शरीर के प्रत्येक सेल को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है। फेफड़ों से विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। रक्त के साथ नाड़ी भी शुद्ध होती है। 

"जंप स्टार्ट युवर मेटाबॉलिज्मः हाउ टू लूज वेट बाय चेंजिंग द वे यू ब्रीद" नामक किताब में पैम ग्राउट ने लिखा है कि उथली साँस लेने से शरीर के ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती साथ ही बॉडी मेटॉबॉलिज्म भी धीमा पड़ जाता है। मोटापे का यह भी एक बड़ा कारण है। 

हाल ही में हुएशोध अध्ययनों से मालूम हुआ है कि तेज गति से साँस लेने वालों को उच्च रक्तचाप की समस्या होती है। गहरी साँस लेने से अस्थमा के रोग में राहत मिलती है। इससे शरीर द्वारा निर्मित पेनकिलर्स रिलीज होने लगते हैं। इससे सिरदर्द, अनिद्रा, पीठ का दर्द तथा तनाव जनित अन्य दर्दों से राहत मिलती है। डीप ब्रीदिंग से मस्तिष्क को किसी एक काम पर केंद्रित करने में मदद मिलती है(सेहत,नई दुनिया,सितम्बर 2012 द्वितीयांक)।

आगे चलें...

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

सावधानी ही है फ्लू से बचाव

फ्लू का प्रचलित नाम इनफ्लूएंजा है। यह वायरस से होता है। फ्लू का वायरस नाक, गला और फेफड़े के साथ पूरे शरीर को प्रभावित करता है। मुख्यत: इनफ्लूएंजा वायरस तीन प्रकार के होते हैं- ए, बी और सी। इनमें से इनफ्लूएंजा- ए कॉमन है। यह वायरस शरीर में पहुंचकर प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। इन्हीं में से एक स्वाइन फ्लू का इनफ्लूएंजा एच1एन1 है जो सबसे पहले वर्ष 2009 में प्रकाश में आया। इससे विगत में कुछ मौतें भी हुई। वायरस कभी मरते नहीं बल्कि तेजी से म्यूटेट होते रहते हैं। अगर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम है तो वे उभर आते हैं और शरीर को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। यही वजह है कि आज भी लोगों को स्वाइन फ्लू हो रहा है। स्वाइन फ्लू कोई भयावह बीमारी नहीं है। यह दूसरे फ्लू की तरह ही संक्रमण फैलाता है। इसकी पहचान जितनी जल्दी हो जाती है, उतनी जल्दी इलाज संभव है। फ्लू बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा व लंग्स की बीमारी से पीड़ित को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। 

फ्लू की चपेट में आने पर क्या करें 
ज्यादा से ज्यादा आराम करें। सार्वजनिक जगहों पर जाने से परहेज करें। रोजाना कम से आठ से दस गिलास पानी, जूस या स्पोर्ट्स ड्रिंक्स पियें। खाने में सुपाच्य भोजन शामिल करें। दिन में कई बार हाथ धोयें। हाथ धोने के लिए एंटीसेप्टिक मिक्स हैंड वॉश का प्रयोग करें। बुखार उतारने के लिए पैरासिटामोल का प्रयोग करें। कफ और खांसी के लिए डॉक्टर की सलाह पर दवा लें। अगर डायरिया और उल्टी की शिकायत है तो पेय पदार्थ को थोड़ा-थोड़ा पियें। छाती में दर्द और पीला कफ होने पर डॉक्टर की सलाह पर एंटीबायोटिक लें। 

बचाव 
भीड़भाड़ वाली जगहों से दूर रहें। अगर जाते हैं तो मास्क या कपड़े से मुंह ढक लें। किसी से हाथ मिलाने या छूने के बाद अच्छे से हाथ धो लें। अगर किसी को फ्लू है तो उससे दूर रहें। बच्चे, बुजुगरे और मरीजों को दूर रखें। घर का कोई सदस्य फ्लू से पीड़ित है, तो जल्द से जल्द इलाज करायें। इससे दूसरे लोगों में होने की आशंका अधिक रहती है। 

लक्षण 
-तेज बुखार। 

-गले में दर्द व खराश। 

-खांसी। 

-बदन दर्द। 

-कुछ लोगों में उल्टी और डायरिया। 

-निमोनिया, न्यूरो और सांस संबंधी तकलीफ।

जांच और इलाज 
फ्लू के लिए आरटी पीसीआर जांच की जाती है। कौन से वायरस से फ्लू हुआ है। इसके लिए वायरस कल्चर किया जाता है। इसके साथ ही खून में एंटीबॉडीज की जांच की जाती है। फ्लू का इलाज उसके लक्षणों को देखकर किया जाता है। साथ में, कुछ एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। एंटीवायरल ड्रग्स जैसे टेमीफ्लू और रेलेनजा कभी-कभी ही मरीजों को देनी पड़ती हैं। ये दवाएं डॉक्टर की सलाह पर ही लें वरना ये नुकसान कर सकती हैं। (हेमंत पाण्डेय,आधी दुनिया,राष्ट्रीय सहारा,3 सितम्बर,2012)।

पिछले दिनों,तरह-तरह के बुखारों को लेकर यह पोस्ट बहुत चर्चित रही थी।

आगे चलें...

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

ये बरसाती बीमारियां

बरसात का सुहाना मौसम कई बार तकलीफ की वजह बन जाता है। बारिश चाहे इस बार कम हुई है, लेकिन इससे जुड़ी बीमारियां जरूर सताने लग गई हैं। बरसात से जुड़ी समस्याओं की रोक-थाम और इलाज पर पेश है पूरी जानकारी। 

आंखों की समस्याएं 
कंजंक्टिवाइटिस: 
कंजंक्टिवाइटिस, आई फ्लू या पिंक आई के नाम से जानी जाने वाली यह बीमारी आम वायरल की तरह है और जब भी मौसम बदलता है, इसका असर देखा जाता है। 

- बचाव के लिए हाइजीन मेनटेन करना सबसे जरूरी है। इस सीजन में हाथ मिलाने से भी बचें क्योंकि हाथों के जरिए संक्रमण फैल सकता है। 

- अगर समस्या हो जाए तो साफ-सफाई बरतें, आंखों को ताजे पानी या बोरिक एसिड मिले पानी से धोएं। 

- आंखों को मसलें नहीं क्योंकि इससे रेटिना में जख्म हो सकता है। ज्यादा समस्या होने पर खुद इलाज करने के बजाय डॉक्टर की सलाह लें। 

कितनी तरह का: 
कंजंक्टिवाइटिस तीन तरह का होता है - वायरल, एलर्जिक और बैक्टीरियल। 

डाइग्नोसिस: कंजंक्टिवाइटिस का आमतौर पर लक्षणों से ही पता लग जाता है। फिर भी यह किस टाइप का है, इसकी जांच के लिए स्लिट लैंप माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल करते हैं और बैक्टीरियल इंफेक्शन के कई मामलों में कल्चर टेस्ट भी किया जाता है। 

इलाज: वायरल कंजंक्टिवाइटिस कॉमन कोल्ड की तरह होता है और आमतौर पर एक हफ्ते में अपने आप ठीक हो जाता है। इसमें बोरिक एसिड से आंखों को धोने की सलाह दी जाती है। एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस में नॉन स्टेरॉयडल ऐंटिइन्फ्लेमेट्री मेडिकेशन की जरूरत होती है और बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में बैक्टीरियल आई ड्रॉप इस्तेमाल करने के लिए कहा जाता है। 

स्किन की समस्याएं 
फंगल इन्फेक्शन: बारिश में रिंगवॉर्म यानी दाद-खाज की समस्या बढ़ जाती है। पसीना ज्यादा आने, मॉइस्चर रहने या कपड़ों में साबुन रह जाने से ऐसा हो सकता है। इसमें गोल-गोल टेढ़े-मेढ़े रैशेज़ जैसे नजर आते हैं, रिंग की तरह। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे में फैल जाते हैं। अगर फंगल इन्फेक्शन बालों या नाखूनों में है तो खाने के लिए भी दवा दी जाती है। फ्लूकोनोजोल (Fluconazole) ऐसी ही एक दवा है। 

क्या करें: ऐंटि-फंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) या टर्बिनाफिन (Terbinafine) टैबलेट ले सकते हैं। ये दोनों जिनेरिक नेम हैं। 

फोड़े-फुंसी/दाने: इन दिनों फोड़े-फुंसी, बाल तोड़ के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। पहले दाना लाल होता है, फिर पस आने लगता है। कई बार बुखार भी आ जाता है। आम धारणा है कि ऐसा आम खाने से होता है, लेकिन यह सही नहीं है। यह मॉइस्चर में पनपने वाले बैक्टीरिया से होता है। 

क्या करें: दानों पर ऐंटिबायॉटिक क्रीम लगाएं, जिनके जिनेरिक नाम फ्यूसिडिक एसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं। ग्लैंड्स ज्यादा काम कर रहे हैं तो क्लाइंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। ऐंटिऐक्नी साबुन एक्नेएड (Acne-Aid), एक्नेक्स (Acnex), मेडसोप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर खाने के लिए भी ऐंटीबायॉटिक टैबलेट देते हैं। 

घमौरियां/रैशेज़: स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहने से कीटाणु (माइक्रोब्स) आसानी से पनपते हैं। इससे रैशेज और घमौरियां हो जाती हैं। ये ज्यादातर उन जगहों पर होती हैं, जहां स्किन फोल्ड होती है, जैसे जांघ या बगल आदि में। पेट और कमर पर भी हो जाती हैं। 

क्या करें: ठंडे वातावरण यानी एसी और कूलर में रहें। दिन में एकाध बार बर्फ से सिंकाई कर सकते हैं और घमौरियों व रैशेज पर कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।

ऐथलीट्स फुट 
जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं, उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है। 

क्या करें: जूते उतार कर रखें और पैरों को हवा लगाएं। खुली चप्पल पहनें। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों पर पाउडर डाल लें। क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) क्रीम या पाउडर लगाएं। डॉक्टर को फौरन दिखाएं। इस इलाज घर बैठकर खुद करना सही नहीं है। डॉक्टर जरूरत पड़ने पर ऐंटिबायॉटिक या ऐंटिफंगल मेडिसिन देंगे।  

बरसात में रखें ध्यान 
- खुले, हल्के और हवादार कपड़े पहनें। 

- टाइट और ऐसे कपड़े न पहनें, जिनमें रंग निकलता हो। 

- कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए। 

- ऐंटिबैक्टीरियल साबुन जैसे कि मेडसोप, सेट्रिलैक (Cetrilak) आदि से दिन में दो बार नहाएं। 

- शरीर को जितना मुमकिन हो, सूखा और फ्रेश रखें। 

- बारिश में बार-बार भीगने से बचें। - पैरों और हाथों की उंगलियों में मॉइस्चर न रहें। 

- लगाने वाली दवा भी कम लगाएं। उससे गीलापन बढ़ता है। उससे बेहतर पाउडर लगाना है। 

- पानी खूब पिएं। इससे शरीर में गर्मी कम रहेगी। 

- पेट साफ रखें। कब्ज न होने दें, वरना शरीर गर्म रहेगा। 

- नॉन ऑइली और कूलिंग क्लींजर, फेसवॉश, लोशन और डियो यूज करें। 

- डायबीटीज के मरीज शुगर को कंट्रोल में रखें। 

- फुटवेयर साफ रखें। 

बरसात के बुखार 
डेंगू 
बीमारी की वजह: मादा एडीज इजिप्टी मच्छर। कहां पैदा होते हैं: साफ पानी में। जीवनकाल: 2 से 3 हफ्ते। कब दिखती है बीमारी: काटे जाने के 3-5 दिनों में, कभी-कभी 10 दिन में भी। 

डेंगू 3 तरह का होता है - क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार, डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF) और डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)। इन तीनों में से दूसरी और तीसरी तरह का डेंगू सबसे ज्यादा खतरनाक है। साधारण डेंगू बुखार अपने आप ठीक हो जाता है लेकिन DHF या DSS का फौरन इलाज शुरू नहीं किया जाए तो जान जा सकती है। 

लक्षण क्या-क्या 

साधारण डेंगू बुखार 
- ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना। 

- सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द। 

- आंखों के पिछले हिस्से में दर्द। 

- बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना और जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना। 

- गले में हल्का-सा दर्द होना। 

- शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना। 

डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF) 
- नाक और मसूढ़ों से खून आना। - शौच या उलटी में खून आना। - स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े चकत्ते पड़ जाना। 

डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS) 
इसमें DHF लक्षणों के साथ-साथ 'शॉक' की अवस्था के भी लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे : 

- मरीज बहुत बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद उसकी स्किन ठंडी महसूस होती है। 

- मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है। 

- मरीज की नाड़ी कभी तेज और कभी धीरे चलने लगती है। उसका ब्लड प्रेशर एकदम लो हो जाता है। 

कौन-से टेस्ट 
अगर तेज बुखार हो, जॉइंट्स में तेज दर्द हो या शरीर पर रैशेज हों तो फौरन फिजिशन के पास जाएं। वह डेंगू का टेस्ट कराएगा। डेंगू की जांच के लिए ऐंटिजन ब्लड टेस्ट (एनएस 1) या ऐंटिबॉडी टेस्ट (डेंगू सिरॉलजी) कराया जाता है। 

प्लेटलेट्स की भूमिका 
आमतौर पर तंदुरुस्त आदमी के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। प्लेटलेट्स अगर एक लाख से कम हैं तो मरीज को फौरन हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए। अगर प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार तक या उससे नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। 

बच्चों में खतरा ज्यादा 
बच्चों का इम्यून सिस्टम ज्यादा कमजोर होता है और वे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए उनके प्रति सचेत होने की ज्यादा जरूरत है। पैरंट्स ध्यान दें कि बच्चे घर से बाहर पूरे कपड़े पहनकर जाएं। जहां खेलते हों, वहां आस-पास गंदा पानी न जमा हो। बहुत छोटे बच्चे खुलकर बीमारी के बारे में बता भी नहीं पाते इसलिए अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। बच्चों को डेंगू हो तो उन्हें अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें पानी की कमी भी जल्दी होती है। 

पहचानें डेंगू के मच्छर को 
इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। ये मच्छर दिन में, खासकर सुबह काटते हैं। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है क्योंकि इस मौसम में मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं। एडीज इजिप्टी मच्छर बहुत ऊंचाई तक नहीं उड़ पाता। 

इलाज 
- अगर मरीज को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका इलाज व देखभाल घर पर की जा सकती है। 

- डॉक्टर की सलाह लेकर पैरासिटामोल (क्रोसिन आदि) ले सकते हैं। 

- एस्प्रिन (डिस्प्रिन आदि) बिल्कुल न लें। इनसे प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं। 

- अगर बुखार 102 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा है तो मरीज के शरीर पर पानी की पट्टियां रखें। 

- सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें। बुखार की हालत में शरीर को और ज्यादा खाने की जरूरत होती है। 

- किसी भी तरह के डेंगू में मरीज के शरीर में पानी की कमी नहीं आने देनी चाहिए। उसे खूब पानी और बाकी तरल पदार्थ (नींबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि) पिलाएं ताकि ब्लड गाढ़ा न हो और जमे नहीं। 

- मरीज को पूरा आराम करने दें। आराम भी डेंगू की दवा ही है। 

अपने आप न आजमाएं 
- इन दिनों बुखार होने पर सिर्फ पैरासिटामोल (क्रोसिन, कैलपोल आदि) लें। एस्प्रिन (डिस्प्रिन, इकोस्प्रिन) या एनालजेसिक (ब्रूफिन, कॉम्बिफ्लेम आदि) बिल्कुल न लें। क्योंकि अगर डेंगू है तो एस्प्रिन या ब्रूफिन आदि लेने से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है। 

- Dexamethasone (जेनरिक नाम) का इंजेक्शन और टैबलेट तो बिल्कुल न लें। अक्सर झोलाछाप मरीजों को इसका इंजेक्शन और टैबलेट दे देते हैं, जिससे मौत भी हो सकती है। 

मलेरिया 
किससे होता है: एनाफिलिज मादा मच्छर से। लक्षण: तेज बुखार, सिर में दर्द, एक दिन छोड़कर ठंड के साथ बुखार आना। बचाव: मच्छरदानी का इस्तेमाल, आसपास पानी इकट्ठा न हो। इलाज: लक्षण नजर आने पर फौरन डॉक्टर को दिखाएं। 

कॉमन फ्लू 
- फ्लू के तीन मुख्य वायरस होते हैं, जिनमें ए, बी और सी टाइप शामिल हैं। ए वायरस जानवरों और इंसान दोनों में होता है और बी, सी सिर्फ इंसानों में होता है। 

- सबसे खतरनाक टाइप ए वायरस होता है। अगर मरीज को कोई और बीमारी भी है तो टाइप बी भी गंभीर हो सकता है, लेकिन सी कम खतरनाक होता है। 

- ए और सी टाइप की चपेट में आने वाले ज्यादातर मरीजों को छींक आने, शरीर में दर्द, खांसी, नाक बहने और तेज बुखार जैसे लक्षण होते हैं, लेकिन टाइप सी से प्रभावित लोगों में लक्षण स्पष्ट नहीं दिखते। 

- हर बार मौसमी बदलाव के समय टाइप सी ज्यादा ऐक्टिव होता है, इसलिए पांच से सात दिन में लोग बिना मेडिकेशन के ठीक हो जाते हैं। 

लक्षण और इलाज 
-नाक से पानी बहना, गले में खराश, खांसी (सूखी या बलगम के साथ - सफेद, हरा या पीला बलगम)। पीले का मतलब बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है। 

-लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक इन्फेक्शन में लक्षण गंभीर होते हैं, मसलन तेज बुखार और शरीर में तेज दर्द होगा और बलगम ज्यादा हो सकता है। इसमें मरीज को ऐंटिबैक्टीरियल ट्रीटमेंट लेना होता है। 

- अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक इन्फेक्शन में नाक बहती है। यह आमतौर पर वायरल होता है। इसमें सिरदर्द आदि से राहत के लिए पैरासिटामॉल और जरूर हो तो ऐंटिएलर्जिक दवा देते हैं। 

- अगर सिर्फ गले में खराश है तो बैक्टीरियल मानकर चलते हैं। उसमें भी ऐंटिबायॉटिक देते हैं। ज्यादातर ऐंटीबायॉटिक का पांच दिन का कोर्स होता है। 

बालों की देखभाल 
मौसम बदलने पर बाल थोड़ा ज्यादा झड़ते हैं। बारिश के मौसम में अगर बालों को साफ और सूखा रखें तो झड़ने की शिकायत नहीं होगी। 

- बारिश में बालों में पानी रहने से फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। बच्चों के बालों में फंगल इन्फेक्शन ज्यादा होता है। उनके बाल कटवाते हुए हाइजीन का खास ख्याल रखें। देखें कि कंघी साफ हो। बालों के बीच में फंगल इन्फेक्शन हो तो क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगा सकते हैं। तेल का इस्तेमाल न करें। फौरन डॉक्टर को दिखाएं। 

- डैंड्रफ भी एक किस्म का फंगल इन्फेक्शन ही है। हालांकि थोड़ी-बहुत डैंड्रफ होना सामान्य है, खासकर मौसम बदलने पर, लेकिन ज्यादा होने पर यह बालों की जड़ों को कमजोर कर देती है। साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें। डैंड्रफ से छुटकारे के लिए इटोकोनाजोल (Etoconazole), जिंक पायरिथिओनाइन (Zinc Pyrithionine यानी ZPTO) या सिक्लोपिरॉक्स ऑलोमाइन (Ciclopirox Olamine) शैंपू का इस्तेमाल करें। 

ध्यान दें 
- बाल ज्यादा देर गीले न रहें। ऐसा होने पर बाल उलझ सकते हैं और गिर सकते हैं। 

- बालों को साफ रखें और हफ्ते में दो बार जरूर धोएं। जरूरत पड़ने पर ज्यादा बार भी धो सकते हैं। 

- बाल नहीं धोने हैं तो नहाते हुए शॉवर कैप से बालों को अच्छी तरह ढक लें। 

- बाल धोने के लिए जॉन्संस या डव जैसा माइल्ड शैंपू यूज करें। 

- बाल धोने के बाद अच्छी तरह सुखाएं। पंखे या ड्रायर को थोड़ा दूर रखकर बाल सुखा लें। 

- इन दिनों बालों में तेल कम लगाएं। 

अच्छी खुराक जरूरी 
बाल प्रोटीन से बनते हैं, इसलिए हाई प्रोटीन डाइट जैसे कि दूध, दही, पनीर, दालें, अंडा (सफेद हिस्सा), फिश, चिकन आदि खूब खाएं। साथ ही विटामिन-सी (मौसमी, संतरा, आंवला आदि), ऐंटिऑक्सिडेंट (सेब, नट्स, ड्राइ-फ्रूट्स) के अलावा सी फूड और हरी सब्जियां खूब खाएं। 

पेट की बीमारी 
बरसात में दूषित खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन यानी गैस्ट्रोइंटराइटिस हो जाता है। ऐसा होने पर मरीज को बार-बार उलटी, दस्त, पेट दर्द, शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है। 

डायरिया: 
डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों, पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। 

डायरिया आमतौर पर तीन तरह का होता है: वायरल, बैक्टीरियल और प्रोटोजोअल। पहला वायरस से होता है और ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। यह सबसे कम खतरनाक होता है, जबकि दूसरा बैक्टीरिया और तीसरा अमीबा से होता है। ये दोनों ज्यादा खतरनाक हैं और इनमें डॉक्टर की देखरेख के बिना इलाज नहीं करना चाहिए। 

- अगर तेज बुखार हो, पेशाब कम हो रहा हो व मल के साथ खून या पस आ रहा है तो बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल डायरिया हो सकता है। बैक्टीरियल इन्फेक्शन में ऐंटिबायॉटिक और प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में एंटी-अमेबिक दवा दी जाती है। अगर किसी ने बहुत ज्यादा ऐंटिबायॉटिक खाई हैं, तो उसे साथ में प्रोबायॉटिक्स भी देते हैं। दही प्रोबायॉटिक्स का बेहतरीन सोर्स है। 

- वायरल डायरिया है तो मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन (Domperidone) और लूज मोशंस रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल (Racecadotrill) ले सकते हैं। पेट में मरोड़ हैं तो मैफटल स्पास (Maflal spas) ले सकते हैं। एक दिन में उलटी या दस्त न रुके तो डॉक्टर के पास ले जाएं। 

- यह गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें, जैसे कि नारियल पानी, नींबू पानी (हल्का नमक और चीनी मिला), छाछ, लस्सी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल, पतली खिचड़ी, दलिया आदि। मरीज को सिर्फ तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। 

मच्छरों से करें बचाव 
-घर या ऑफिस के आस-पास पानी जमा न होने दें, गड्ढों को मिट्टी से भर दें और रुकी हुई नालियों को साफ करें। 

- अगर पानी जमा होने से रोकना मुमकिन नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसीन ऑइल डालें। 

- रूम कूलरों, फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें, उन्हें सुखाएं और फिर भरें। घर में टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उलटा करके रखें। 

- डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें। 

- अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें। 

- मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम, स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि इस्तेमाल करें। गुग्गुल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है। कॉइल या इलेक्ट्रिक रेप्लेंट इस्तेमाल करते वक्त पंखे, एसी आदि बंद कर आधे-एक घंटे के लिए कमरा बंद कर दें और सभी लोग बाहर चले जाएं। इसके बाद कमरे की एक खिड़की खोल दें, जिससे मच्छर बाहर निकल जाएं। इस खिड़की को खुला रखें। 

- घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छरनाशक दवा का छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो-फ्रेम्स, पर्दों, कैलेंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर-रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें। दवाई छिड़कते वक्त अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा जरूर बांधें। साथ ही, खाने-पीने की सभी चीजों को ढककर रखें। 

- ऐसे कपड़े पहनें, जिनसे शरीर का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा ढका रहे। खासकर बच्चों के लिए यह सावधानी बहुत जरूरी है। बच्चों को मलेरिया सीजन में निकर व टी-शर्ट न पहनाएं। 

- बच्चों को मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं। 

- रात को सोते समय मच्छरदानी लगाएं। 

एक्सपर्ट्स पैनल 
1.डॉक्टर अनूप मिश्रा,डायरेक्टर, फॉर्टिस सीडॉक सेंटर फॉर इंटरनल मेडिसिन 
2.डॉक्टर केके अग्रवाल सीनियर जनरल फिजिशन, मूलचंद हॉस्पिटल 
3.डॉक्टर गोविंद श्रीवास्तव डेप्युटी डायरेक्टर, स्किन इंस्टिट्यूट ऐंड स्कूल ऑफ डर्मटॉलजी 
4.डॉक्टर त्यागमूर्ति शर्मा डायरेक्टर, शार्प साइट सेंटर 
5.डॉक्टर वंदना केंट चाइल्ड स्पेशलिस्ट, रॉकलैंड हॉस्पिटल 
6.डॉक्टर मनोज खन्ना कॉस्मेटिक सर्जन एनहेंस एस्थेटिक्स ऐंड कॉस्मेटिक स्टूडियो(प्रियंका सिंह व नीतू सिंह,नभाटा,दिल्ली,24.7.12)

आगे चलें...

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

थोड़े-से बदलाव से बदल सकती है ज़िंदगी

सुबह होती है शाम होती है, जिंदगी यूं ही तमाम होती है। हर व्यक्ति कोल्हू के बैल की भांति अपने खूंटे से बंधे घर से दुकान, दुकान से घर, घर से ऑफिस, ऑफिस से घर चलता रहता है। कहते हैं एक साइड पर तवे पर रोटी भी पड़ी सड़ जाती है। उसे भी कभी उलट कभी पलट करना पड़ता है। तालाब में रुका पानी सड़ांध मारने लगता है। बहते पानी में कभी दुर्गंध नहीं पड़ती। हर व्यक्ति कुछ बदलाव चाहता है। कुएं का मेंढक भी चाहता है कि मैं बाहर आऊं। मैदानी लोग पहाड़ पर चेंज के लिए जाते हैं और पहाड़ी लोग ठंड से बचने के लिए मैदानी इलाकों में घूमने जाते हैं। लोग घर का खाना खाकर ऊब जाते हैं फिर रेस्टोरेंट में खाकर कुछ नयापन अनुभव करते हैं। यदि आप जिंदगी को खूबसूरत बनाना चाहते हैं तो छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढें। आप प्रतिदिन, प्रति सप्ताह अपनी हाबीज डवल्प या रिवाइज करने का प्रयास करें। प्रतिदिन थोड़ा समय गार्डनिंग या चित्रकारी, सृजनात्मक लेखन, कविता लिखने में समय लगाएं। यदि आप दफ्तर का काम करते हैं तो कभी-कभी किचन का काम करके चाय, टोस्ट, अंडे बनाकर परिवार वालों के लिए नई डिश बनाएं। जो काम भी आप करते हैं वह शौक एवं आनंद के साथ करें। उसमें नवीनता लाएं। 

एक ही डिश अलग-अलग ढंगों से बनाएं। रविवार को सारा दिन हल्का भोजन करें। काम से ज्यादा आराम करें। संगीत सुनें। पसंद का टीवी प्रोग्राम देखें। हर समय कुछ नया करने के लिए तैयार रहें। अपने को बदलने की कोशिश में रहें। नया हेयर स्टाइल बनाएं। यह जिंदगी अपनी है। अपना सफर कैसे काटना है, यह अपने आप निर्धारित करें। उम्र का ध्यान छोड़ दें। जिम जाएं। गिटार या सितार सीखें। अपने आप को समय दें। अपने शरीर, मन, आत्मा को समय दें। पसंद का संगीत सुनें। अपने आपको खुश रखें। यह न सोचें कि आप न होंगे तो दुनिया न चलेगी। हर पल को भरपूर जीने की आदत डालें। निराश, मूर्ख, लड़ाई पसंद, झूठे, फरेबी, मतलबी, लोगों से किनारा करें। तटस्थ रहें। टेंशन वाली बातें रिपीट न करें। टापिक ही न छेड़ें। जिंदगी को जीने का अंदाज बदलते रहें। जो लोग अपने लिए मनोरंजन, कसरत, हंसने के लिए समय नहीं निकालते वे अपने बीमार होने के लिए वक्त निकालने के लिए तैयार हो जाएं। आएं जीवन का रहस्य जानें, गम के पक्षियों को अपने सिर पर मत बैठने दें। (विजेंद्र कोहली गुरदासपुरी,दैनिक ट्रिब्यून,16.7.12)। 

दरअसल,इन दिनों मनुष्य की महत्वाकांक्षा इस कदर बढ़ी-चढ़ी है कि वह अधिकाधिक धन-दौलत जुटा लेने, प्रसिद्धि कमा लेने और वाहवाही लूट लेने की ही उधेड़बुन में हर घड़ी उलझा दिखाई पड़ता है। यह सच है कि व्यक्ति का रहन-सहन जितना निर्द्वन्द्व व निश्छल होगा, उतनी ही अनुकूल उसकी आंतरिक स्थिति होगी। इसके विपरीत, जहां बनावटीपन, दिखावा, झूठी शान, प्रतिस्पर्धा होगी वहां लोगों की मनोदशा उतनी ही असामान्य होती है। एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि भोले-भाले ग्रामीणों की तुलना में स्वभाव से अधिक चतुर, चालाक और कृत्रिमता अपनाने वाले शहरी लोगों का ‘मूड’ अपेक्षाकृत ज्यादा बुरी दशा में होता है। यदि कभी ‘मूड’ खराब हो जाए तो अकेले पड़े रहने की अपेक्षा मित्रों के साथ हंसी मजाक में स्वयं को व्यस्त रखें, पर हां यह सावधानी रखें कि ‘मूड’ को चर्चा का विषय न बनाएं। 

एक कारगर तरीका भ्रमण भी है। प्रकृति के संपर्क से मन जितनी तीव्रता से प्रकृतस्थ होता है, उतना तेजी से अन्य माध्यमों के सहारे नहीं हो सकता। इसलिए ऐसी स्थिति में पार्क, उपवन, बाग, उद्यान जैसा आसपास कोई सुलभ स्थल हो तो वहां जाकर मानसिक दशा को सुधारा जा सकता है। नियमित व्यायाम, खेल एवं किसी भी रचनात्मक कार्यों का सहारा लेकर भी मन की बुरी दशा को घटाया-मिटाया जा सकता है। आवश्यकता से अधिक की आकांक्षा और स्तर से ज्यादा की चाह में प्रवृत्त न रहें तो मूड को खराब होने से बचाया जा सकता है। आध्यात्मिक जीवनयापन करते हुए अपने सुनिश्चित लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने से भी मन को असीम शांति व संतुष्टि मिलती है(उमेश कुमार साहू,दैनिक ट्रिब्यून,16.7.12)।

आगे चलें...

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

खुश रहना हो,तो तुलना से बचें

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दूसरों की हैपनिंग पोस्ट्स से क्या आपको परेशानी होती है? अगर ये आपको डिप्रेस कर रहे हैं, तो खुश रहने के दो ही रास्ते हैं, तुलना से बचें या नेट पर कम टाइम बिताएं: 

फेसबुक पर आप लॉग-इन तो करते होंगे दोस्तों का पता लगाने और फ्रेश होने के लिए, लेकिन साइट पर सभी के पोस्ट देखकर आपको इतनी परेशानी होती होगी कि आप फटाफट साइन-आउट कर जाते होंगे। दरअसल, एक बार एफबी पर जाने के बाद दूसरों के पोस्ट, मेसेज व पिक्चर्स देखने का लालच छोड़ा नहीं जाता। आखिर इस साइट को बनाया भी तो इसी मकसद से गया है कि लोग अपने रिलेशन, लोकेशन और फोटो अपडेट्स करते रहें। 

लेकिन यहां दूसरों का टशन देखकर अक्सर लोगों का अपना जी जलने लगता है। होता यह है कि वे अपने प्रोफाइल की तुलना दूसरों से करते हैं और अपने पास कुछ भी हैप न पाकर निराश हो जाते हैं। कभी-कभी तो यह निराशा डिप्रेशन तक में बदल जाती है। 

वह मुझसे हैप क्यों 
अब 26 साल के बैंकर श्याम अवस्थी को ही लें, जिन्हें अपने फ्रेंड्स के फोटोज और अपडेट्स हर बार उन्हें चिढ़ाते हुए से लगते हैं। 

श्याम बताते हैं, 'जब भी बढ़िया जगह पर मैं अपने दोस्तों और जानकारों को बढ़िया जगहों मस्ती करते देखता हूं, तो मुझे बहुत बुरा लगता है। उनके शानदार घर और महंगी चीजें देखकर भी मैं थोड़ा लो फील करता हूं। हालांकि मैं जानता हूं कि मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता, लेकिन उनकी मस्ती देखकर मैं इरीटेट हो जाता हूं। जबकि मेरी लाइन में वर्क प्रेशर ज्यादा है और मुझे देर तक काम करना पड़ता है। फिर मेरा पैकेज भी उतना नहीं है।' 

यह चीज कहीं न कहीं श्याम को पर्सनल लाइफ में भी डिस्टर्ब कर रही है, क्योंकि इन दोस्तों से अक्सर वह सहज नहीं हो पाते। 

नेट ने बढ़ाई प्रॉब्लम 
यह ह्यूमन नेचर है, जो हम दूसरों की कॉपी करना चाहते हैं और नेट वर्ल्ड से इसे पूरा बढ़ावा भी मिला है। साइकॉलजिस्ट आकृति गुप्ता कहती हैं, 'उसने यह किया और मैं पीछे रह गया, यह एक कॉमन सोच है और कहीं न कहीं कई परेशानियों की वजह भी बनती है। फिर सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने इस चीज को बढ़ावा ही दिया है। अब जब भी कोई चाहे, वह, अपने या किसी दूसरे नाम से, लॉग-इन करके दूसरों के अपडेट्स ले सकता है। हालांकि बाद में दूसरों की मस्ती देखकर वे खुद भी परेशान होते हैं।'

आकृति की मानें, तो लो-कॉन्फिडेंस लेवल वाले लोग कोई कॉमेंट या पोस्ट नहीं करते, बल्कि छिपकर दूसरों को देखते हैं। उनका यह व्यवहार उन्हें दूसरों की जिंदगी में झांकने के लिए और उकसाता है। 

लो-एस्टीम है वजह 
जब भी हम किसी से अपनी तुलना करके निराश होते हैं, तो इसका मतलब यही है कि हम अपने आप से और अपने आस-पास की चीजों से खुश नहीं हैं। साइकॉलजिस्ट डॉ. अमित चुग कहते हैं, 'दूसरों से कंपैरिजन पर कॉम्प्लेक्स फील होता है, तो मान लें कि आपको खुद को एक्सेप्ट करने में परेशानी हो रही है। अगर आप हमेशा यही सोचते रहेंगे कि वह बेहतर है या मैं बेहतर हूं, तो कभी भी आपको दिमागी शांति नहीं मिल पाएगी।'  

यही नहीं, ऐसी तुलना से आप अपनी स्पिरिट भी खोने लगेंगे। हालांकि देखने में आया है कि ऐसे लोग रियल लाइफ में भी दूसरों से कंपैरिजन कर ऐसे ही दुखी रहते हैं। 

कैसे बचें 
किसी भी तरह के कॉम्प्लेक्स से बचने का बेस्ट तरीका है कि आप जैसे हैं, वैसे ही खुद को एक्सेप्ट कर लें। जितना आप अपने साथ सहज होंगे, दूसरों की चीजें आपको उतना ही कम परेशान करेंगी। जब आप खुद को पसंद करने लगेंगे, तो आपको क्या फर्क पड़ेगा कि कौन क्या कर रहा है और कहां जा रहा है। 

आकृति कहती हैं कि अगर आप अपने बारे में अच्छा नहीं सोच सकते, तो कोई आपको अच्छा महसूस करवा भी नहीं सकता है। 

...तो मिलेगी खुशी 
- सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लिमिटेड टाइम गुजारें। 

- याद रखें कि आप और बाकी सभी लोग अपने-आप में यूनीक हैं और सभी के पास अपना टैलंट है। 

- अपनी तुलना बस खुद से ही करें और अपनी इंप्रूवमेंट के लिए कुछ गोल्स तय कर लें। 

- अपने इंटरेस्ट की ऐक्टिविटीज में इंवॉल्व होकर नेगेटिव थॉट्स को दूर रखें। 

- अगर कभी फ्रस्ट्रेशन हो, तो अपने विचारों को लिखें या फिर किसी फ्रेंड से शेयर करें। 

- खुद से सवाल करें कि दूसरों की बड़ी समस्याओं के आगे आपकी यह लो-फीलिंग कितना मायने रखती है। 

- और अगर यह सब आपके लिए काम नहीं करता है, तो बेहतर होगा कि आप अपना अकाउंट ही डिलीट कर दें(नभाटा,दिल्ली,15.7.12)।

आगे चलें...

सोमवार, 16 जुलाई 2012

बच्चों से खेल-खेल में कराएं कसरत

लगातार बारिश में कई मौके ऐसे भी आते हैं जब बच्चों का घर से निकलना दूभर हो जाता है। स्कूल बंद रहते हैं और बच्चे टीवी के सामने से हटना नहीं चाहते। पालकों के सामने यह प्रश्न खड़ा रहता है कि बच्चों से घर में ही कौन सी कसरतें करवा लें ताकि वे शारीरिक रूप से सक्रिय होने के साथ स्वस्थ बने रहें। बच्चों को घर में ही कई तरह के खेलकूद के विकल्प दिए जा सकते है। इन खेलों से उनका मस्तिष्क भी टीवी और इंटरनेट से दूर रहेगा और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। 

घर पर बच्चों के मनपसंद मजेदार खेलों के कई विकल्प हैं। बच्चों को इनमें से खुद कोई विकल्प चुनने का अवसर दें। अक्सर पालक उन्हें कोई खास खेल ही खेलने के लिए बाध्य करते है। पालकों द्वारा थोपे हुए खेलों के प्रति बच्चों की रुचि कम ही रहती है। इसलिए उनकी कल्पना को बेलगाम दौड़ने दीजिए। उन्हें अपने खेलों का चयन खुद करने दें। खेल ही खेल में बच्चों की कसरत भी हो जाएगी और कसरतों का मकसद भी पूरा होगा। पालकों को भी बच्चों के लिए अपनी दैनिक दिनचर्या में बदलाव करना चाहिए और घर का फर्निचर थोड़ा इधर-उधर सरका कर उनके खेलकूद के लिए जगह निकाल लें।

बच्चों को बननें दें पेड़ 
बच्चों को अपनी कल्पना के घोड़े बेलगाम दौड़ाने दें। घर के सभी बच्चों को खेलकूद में शामिल करें। उन्हें दोनों हाथ ऊपर उठाकर पेड़ बनने के लिए कहें। पेड़ जिस तरह हवा में झूमते हैं, उन्हें भी झूमने के लिए कहें। इससे उनकी कमर की कसरत होगी। इसी तरह उन्हें हाथों को ऊपर उठाकर हेलिकॉप्टर की तरह चलाते हुए पूरे हॉल में चक्कर लगाने के लिए कहें। हाथों और पैरों से कैंची बनाकर काल्पनिक रूप से कुछ काटने की मुद्रा दोहराने के लिए कहें। बच्चों के खेल में खुद भी शामिल हो जाएं और उन्हें शारीरिक मुद्राओं द्वारा अंग्रेजी की वर्णमाला के अक्षर बनाने के लिए कहें। 

सर्कस बनाएँ 
बच्चों का एक सर्कस बनाएं। बच्चों को साँप, शेर, भालू, बंदर वगैरह बनकर चलने और आवाज़ निकालने के लिए कहें। तीन गेंदों को ऊपर उछालकर संतुलन करने के लिए कहें। इससे उनकी एकाग्रता में वृद्धि होगी। बिल्डिंग के बच्चों को सर्कस में शामिल करें। किसी वीकएंड पर सभी के लिए एक शो भी करें। 

सोसायटी के बच्चों को भी बुला लें 
हम उम्र बच्चों को साथ खेलना अच्छा लगता है। बच्चों का "ओलिंपिक" कराएँ और उसमें मोहल्ले, बिल्डिंग या सोसायटी के बच्चों को शामिल करें। खेलों की प्रतिस्पर्धा में इन खेलों को शामिल करें।

बॉलिंग : पानी की कुछ खाली बोतलों को हॉल या मकान के गलियारे के एक सिरे पर कतार में लगा दें। दूसरे सिरे से बच्चों को फुटबॉल या हैंडबॉल से गिराने के लिए कहें। इस खेल में जो सबसे अधिक बोतलें गिराए उसे विजेता मान लें। बारी-बारी से सभी को बॉल उठाकर लाने की जिम्मेदारी दें। इससे उनके पैरों की कसरत होगी। 

वालीबॉलः बड़े आकार की बॉल से वालीबॉल खेल सकते हैं। इसके अलावा,बच्चों के दो दल बनाकर कैच प्रैक्टिस भी कराई जा सकती है। 

हुल्ला-हूपः यह एक बड़े पहिए के आकार की रिंग होती है जिससे बच्चों की कमर,पैर और बाजुओं की कसरत होती है। यह इतना मज़ेदार खेल है कि बच्चे बहुत देर तक इसे करना चाहेंगे। कुछ दूरी पर कई हुल्ला-हूप रख दें। अब बच्चों को एक से दूसरे हुल्ला-हूप में कूदने के लिए कहें। कौन सबसे तेज़ हुल्ला-हूप घुमाएगा,ऐसी प्रतियोगिता बच्चों के बीच कराएं। 

डांस करें: बारिश की झमाझम में डांस करने से अच्छी कोई कसरत नहीं होती। ऑडियो डेक पर डांस के नम्बर लगा दें और बच्चों को झूमकर नाचने के लिए प्रेरित करें। घर के सभी सदस्य एक के बाद एक करके डांस कर सकते हैं। म्यूजिक एकाएक बंद करके "स्टैच्यू" बनने जैसी भी प्रतियोगिता कराई जा सकती है। 

संतुलन की कसरतें 
बच्चों को एक पैर के पंजे पर खड़े रहने के लिए कहें। उनमें से जो सबसे अधिक देर तक खड़ा रहे,उसे विजेता घोषित करें। इसी तरह,एक काल्पनिक कुर्सी पर बैठने की प्रतियोगिता कराएँ। जो अधिक देर तक उस मुद्रा में रहे,उसे विजेता मान लें। दो बच्चों को एक-दूसरे की पीठ सटाकर बिठा दें। पीठ के पीछे उन्हें हाथ मिलाने के लिए कहें। अब एक दूसरे की ओर धक्का देते हुए धीरे-धीरे खड़े होने के लिए कहें। ऐसे मज़ेदार खेलों के बहाने कसरतें कराई जा सकती हैं। एक बच्चे को हाथों के पंजे ज़मीन पर टिकाकर खड़ा कर दें। दूसरे को उसके पैर पकड़कर खड़ा कर दें। अब पहले वाले बच्चे को पंजों के बल चलने के लिए कहें। कुछ देर बाद बच्चों की अदला-बदली कर दें। 

योग कराएं 
बच्चों को योग की मुद्राएं करने में मज़ा आता है। इससे शरीर के प्रति जागरूकता बढ़ती है। बच्चों के साथ खुद भी योग कर सकते हैं(सेहत,नई दुनिया,जुलाई,2012 प्रथमांक)

आगे चलें...

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

बचें स्किनी जींस से

भले ही स्किनी जींस से आपको स्लिम लुक मिलता है, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स खासे रिस्की हैं। दरअसल, इससे मरेल्जिया परेस्थेटिका (Meralgia Paresthetica) डिसऑर्डर हो सकता है। जानते हैं, इसके बारे में : 

मौजूदा पॉप्युलर ट्रेंड्स की बात करें, तो पिछले लंबे टाइम से स्किनी जींस काफी डिमांड में हैं। हालांकि आपकी चॉइस अगर स्टाइल से ज्यादा हेल्थ पर ध्यान देने की है, तो यह टाइम अलर्ट होने का है। दरअसल, एक इंटरनैशनल वेबसाइट के एक आर्टिकल के मुताबिक, ज्यादा टाइट स्किनी जींस पहनने से हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। वहीं, एक न्यूजपेपर में छपे एक आर्टिकल में वस्क्युलर सर्जरी के चीफ रॉबर्ट री ने कहा है कि स्किनी जींस पहनने से बॉडी पार्ट्स में सही तरह से ब्लड फ्लो नहीं होता। इसलिए बेहतर है कि जींस में एक साइज बड़ा ले लिया जाए। 

क्या हैं हेल्थ रिस्क 
रिसर्च में पाया गया है कि बहुत टाइट स्किनी जींस पहनने से मरेल्जिया परेस्थेटिका नाम का नर्व डिसऑर्डर हो सकता है। अमेरिका एक मेडिकल सेंटर से जुड़ीं डॉक्टर क्रेन बॉयल ने इस डिसऑर्डर पर खासा काम किया है। एक वेबसाइट पर उन्होंने बताया कि थाइज के बाहरी हिस्से की एक खास नर्व पर लगातार दबाव बनने की वजह से यह डिसऑर्डर होता है। 

बता दें कि इस डिसऑर्डर के बारे में 2003 से ही चर्चा हो रही है। दरअसल, तब कनाडा के एक डॉक्टर, मलविंदर एस. परमार ने एक मेडिकल जर्नल में तीन महिलाओं के केस को हाइलाइट किया था। ये तीनों ही महिलाएं ओवरवेट थीं और 6-7 महीनों से लगातार टाइट व लो-राइज ट्राउजर्स पहन रही थीं। 

कैसे होता है 
मरेल्जिया परेस्थेटिका को इसलिए डेंजरस माना जाता है, क्योंकि इसमें नर्व्स डैमेज हो जाती हैं। न्यूरोसर्जन डॉ. सुनील कुट्टी बताते हैं, 'कमर और थाइज को एक सेंसरी नर्व रिलेट करती है। बहुत टाइट कपड़े पहनने से इस पर काफी प्रेशर पड़ता है, जिससे यह दबकर काम करना बंद कर देती है। टाइट क्लोद्स के अलावा बहुत ज्यादा वजन बढ़ने की सिचुएशन में भी ऐसा होता है। ऐसे में, नर्व का काम करने का तरीका बदल जाता है और हल्का टच भी तेज दर्द की तरह महसूस होता है।' 

तो क्या करें 
बेशक, फैशन के आगे हेल्थ के साथ समझौता कोई भी नहीं चाहेगा। इसलिए अब से जब भी आपका मन स्किनी जींस पहनने का हो, तो उसे थोड़ा अलर्ट होकर कैरी करें। डॉ. सुनील बताते हैं, 'टाइट जींस को हिप्स के पास कसकर बांधने से यह प्रॉब्लम होती है। हालांकि इस डिसऑर्डर का इलाज हो सकता है, लेकिन यह आसान नहीं है। इससे बचने के लिए टाइट जींस या बेल्ट को अवॉइड करने की ही सलाह दी जाती है। वहीं, इसके इलाज के तौर पर नर्व को या तो छोटा किया जाता है या फिर पूरी तरह काट ही देते हैं।' 

न्यूरोफिजिशन डॉ. पी. अशोक भी मानते हैं कि टाइट कपड़ों से यह प्रॉब्लम हो सकती है। बकौल डॉ. अशोक, 'यह नर्व बहुत डेलिकेट होती है। इसलिए इस पर जोर जल्दी पड़ता है। हालांकि जरूरी नहीं कि टाइट कपड़े पहनने से सभी को यह प्रॉब्लम हो, लेकिन ऐसे आउटफिट्स से बचना ही बेहतर रहता है। वैसे, बॉडी पर जल्दी प्रेशर महसूस करने वाले और डाइबीटीज पेशंट्स को यह डिसऑर्डर जल्दी होता है। ऐसे में, थाइज के आउटर एरिया में जलन और दर्द होता है।' 

भारी पड़ेंगी हील्स 
अक्सर गर्ल्स को स्किनी जींस के साथ हाई हील्स कैरी करना अच्छा लगता है। बेशक यह उनके लुक्स को हाइलाइट करता है, लेकिन इस डिसऑर्डर को भी बढ़ा देता है। दरअसल, हील्स के साथ पेल्विस की मूवमेंट से सेंसिटिव एरिया पर प्रेशर बढ़ता है। डॉ. अशोक कहते हैं, 'हाई हील्स पहनने पर बॉडी का सारा वजन पैर के अंगूठों पर आ जाता है, जिससे डेलिकेट नर्व्स पर और ज्यादा प्रेशर पड़ता है। जाहिर है, इस तरह प्रॉब्लम भी बढ़ती है।' 

बचें गायज भी 
बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है, जब स्किनी जींस से होने वाली हेल्थ प्रॉब्लम्स को उठाया गया है। वहीं सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि पुरुषों को भी इससे बचने की सलाह दी गई है। खासतौर पर बेबी प्लान करने वाले मेल्स को स्किनी जींस ना पहनने के लिए कहा जाता है, क्योंकि इससे टेस्टिकल्स में हीट बढ़ती है और नतीजा होता है स्पर्म काउंट का कम होना। यही नहीं, स्किनी जींस से इंफेक्शन के चांसेज भी बढ़ जाते हैं। (सिमी के.,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,7.7.12)

आगे चलें...

बुधवार, 27 जून 2012

इन दिनों रहता है डिहाइड्रेशन का खतरा

इन दिनों घर से निकलते ही मौसम की मार ने बुरा हाल कर रखा है। ऐसे में डिहाइड्रेशन की प्रॉब्लम बड़ी कॉमन है। ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखने से आप इससे बच सकते हैं:  

सबसे पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि डिहाइड्रेशन है क्या बला? दरअसल, जब आप जितने फ्लुइड्स लेते हैं, उससे ज्यादा लूज करते हैं तो डिहाइड्रेशन के हालात बनते हैं। इसका मतलब यह होता है कि आपकी बॉडी को अपने ऑपरेशंस के लिए जरूरत से कम वॉटर मिल रहा है। हालांकि कुछ बातों का ध्यान रखकर डिहाइड्रेशन से बचा जा सकता है। 

-अपनी डाइट में ढेर सारे फ्लुइड्स को शामिल करें। खासतौर पर हॉट और ड्राई दिनों में। 

-जब आपको प्यास न लगी हो, तब भी लिक्विड फूड लें। दरअसल, जब आपको प्यास लगती है, तब तक डिहाइड्रेशन की सिचुएशन बनने लगती है। 

-एक्सर्साइज करने से पहले फ्लुइड्स लें। बता दें कि वर्कआउट के दौरान हर 15-20 मिनट पर आपको 8-12 आउंस की जरूरत होती है। जाहिर है कि एक्सर्साइज के बाद भी आपको पानी की जरूरत है। 

-अगर आप कोई मेडिकेशन या सप्लिमेंट्स ले रहे हों, तो फ्लुइड रिटेंशन पर इनके साइड इफेक्ट्स चेक करें। दरअसल, कई बार इनसे फ्लुइड पर नेगेटिव इफेकट पड़ता है। 

-लूज-फिटिंग क्लोद्स पहनें और हैट को न भूलें। धूप में निकलने पर लाइट कलर के एब्जॉर्बेंट क्लोद्स पहनें। इससे बॉडी कूल रहती है और स्वेटिंग होने पर कम फ्लुइड्स लूज होते हैं। 

- कैफीन वाले अल्कोहल और ड्रिंक्स अवॉइड करें। ये भी डिहाइड्रेशन की खास वजह हैं। 

- कार्बोनेटेड फूड आइटम्स को अवॉइड करें , इसकी वजह से अपनी जरूरत भर फ्लुइड्स नहीं ले पाते। 

- हेवी एक्सर्साइज के दौरान भले ही आपके ट्रेनर ने आपको स्पोर्ट्स ड्रिंक लेने की सजेशन दी हो , लेकिन याद रखिए कि प्लेन वॉटर से बेहतर कोई भी ड्रिंक नहीं। 

- बच्चों में डिहाइड्रेशन हो जाने पर वॉटर या मिल्क के साथ सीरिअल्स को मिक्स करके दें। इससे लॉस्ट फ्लुइड्स रिप्लेस हो जाते हैं। 

- ओरल रिहाइड्रेशन सिस्टम ( ओआरएस ) और हाफ - स्ट्रेंथ ऑरेंज जूस इससे निबटने के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। 

- डिहाइड्रेशन हो जाने पर अपना काम बंद करके बॉडी को पूरा आराम दें। डाइरेक्ट सनलाइट में न जाएं और किसी ठंडी जगह पर रेस्ट करें। 

- जहां तक संभव हो , शेड वाले एरिया में रहें। स्किन को सन ब्लॉक से कवर करें। 

 - डिहाइड्रेशन की प्रॉब्लम बच्चों और बुजुर्गों को होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए पहले से ही एहतियात बरतें। 

- केवल धूप में ही नहीं , ह्यूमिड वेदर में भी वॉटर इनटेक का खयाल रखें। (रुचिरा भल्ला के ये टिप्स नभाटा में १५.६.१२ को प्रकाशित हुए हैं)

आगे चलें...

मंगलवार, 12 जून 2012

जूते-चप्पल ख़रीदें,बीमारी नहीं

जूते-चप्पलों के मामले में केवल स्टाइल और फैशन पर ध्यान देना सेहत के लिहाज से कतई ठीक नहीं है। मैचिंग और फैशन के मुताबिक फुटवियर का चुनाव आपके पैरों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। क्यों जरूरी है पैर के शेप के मुताबिक फुटवियर खरीदना, बता रही हैं मृदुला भारद्वाजः

फुटवियर्स का चुनाव करते समय अपने पैरों की संरचना को ध्यान में रखना बेहद जरूरी होता है। सही माप के आरामदायक फुटवियर पहनने से न सिर्फ आपके शरीर का संतुलन ठीक रहेगा, बल्कि आपको थकान भी महसूस नहीं होगी। गलत फुटवियर पहनने से सबसे पहले चलने के तरीके में बदलाव आ जाता है। इससे कई प्रकार की बीमारियों की आशंका भी बढ़ जाती है, जैसे पैरों की बनावट में बदलाव, चाल खराब होना, फंगल इन्फेक्शन, कमर दर्द, घुटने में दर्द, पिंडलियों में दर्द आदि। 

विशेषज्ञों का मानना है कि जिनके पैर बड़े होते हैं और अगर वे कसे हुए फुटवियर्स पहनें तो इससे हैमर टो (अंगूठे के नाखून पर चोट लगना) और बुनियंस (अंगूठे के जोड़ की हड्डी बढ़ना) जैसी परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए यदि आपके पंजे चौड़े हैं तो सामने से चौड़े मुंह वाले जूते लें और अगर आपके पंजे छोटे हैं तो ऐसे फुटवियर का चुनाव करें, जो आपके पैर में फिट आ जाएं। 

वहीं जूते खरीदते समय हमेशा ध्यान रखें कि पैरों के अंगूठे के आगे करीब आधा सेंटीमीटर जगह खाली हो। इसे आप जूता पहनकर पैरों पर दबाव देकर चेक कर सकते हैं। अगर इतनी लंबाई है तो जूते की लंबाई आपके पैर के हिसाब से ठीक है। जूते का आगे का भाग चौड़ा व मध्य भाग में इतनी जगह होनी चाहिए कि अंदर एक अंगुली डाली जा सके। 

बच्चों के लिए जूते खरीदते समय.. 
- बच्चों के पैर बहुत ही नाजुक व कोमल होते हैं। बच्चों के लिए जूते लेते वक्त ध्यान रखें कि जूते उनके पैरों की पूरी तरह से रक्षा करें। 

- बच्चों के लिए पैर में टाइट फिटिंग वाले जूते कभी न खरीदें। ये बच्चों के बढ़ते पैरों के लिए नुकसानदायक हैं। 

- कुछ अभिभावक बच्चों को ढीले-ढाले जूते पहनाना पसंद करते हैं। जूते की लंबाई और चौड़ाई दोनों ही उपयुक्त होनी चाहिए। इसकी जांच बच्चों को दोनों पैरों में जूते पहनाकर उसे खड़ा करके और चलाकर करनी चाहिए। 

- छोटे बच्चों के जूते हर 6 माह में बदल दें। 

हाई हील्स के नुकसान 
अपनी लंबाई की कमी को पूरा करने और फैशन के लिए अक्सर महिलाएं हाई हील का सहारा लेती हैं, लेकिन वे यह नहीं जानतीं कि उनकी हाई हील्स के कारण उन्हें कितनी शारीरिक परेशानियों का सामना करना होगा। एक सर्वे के मुताबिक, हाई हील्स पहनने वाली 90 प्रतिशत लड़कियां घुटने, कमर, कूल्हे, कंधे और जोड़ो के दर्द से परेशान रहती हैं। काफी लंबे समय तक ऊंची एड़ी की सैंडिल या चप्पल पहनने वाली महिलाओं के घुटने की हड्डी बदलने की नौबत आ सकती है। 

डॉक्टरों का कहना है कि अगर आप एक-डेढ़ इंच तक ऊंची हील पहनें तो कोई हर्ज नहीं है, लेकिन जब हील की लंबाई 4-5 इंच हो तो ये परेशानी का सबब बन जाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हाई हील के फुटवियर पहनने पर शरीर का अधिकांश भार पंजों और एड़ी पर आ जाता है, जिससे इनमें दर्द होने लगता है। इससे पीठ दर्द, नसों में खिंचाव और घुटनों में दर्द जैसी शिकायतें होने लगती हैं। इसके अलावा हाई हील्स पहनने से हिप्स भी हैवी हो जाते हैं। पूरे दिन हाई हील पहनने से बचें। अगर फिर भी आप रोजाना हाई हील पहनना चाहती हैं तो ऐसे हाई हील फुटवियर का चुनाव करें, जिनका सोल भी ऊंचा हो (श्रीबालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. जी़ एस़ बिष्ट से बातचीत पर आधारित) ।

फुटवियर का चुनाव करते वक्त.... 
-फुटवियर हमेशा शाम के वक्त ही खरीदें, क्योंकि कुछ लोगों को पैर में सूजन की शिकायत होती है। ऐसे में सुबह के वक्त जूता खरीदने पर कई बार वह शाम होते-होते टाइट लगने लगता है। 

- नए जूते शुरुआत के कुछ दिनों में 2-3 घंटे से ज्यादा देर के लिए न पहनें, क्योंकि पैर को उस फुटवियर में एडजस्ट होने में कुछ वक्त लगता है। लगातार नया जूता पहनने से पैर में दर्द, पैर का छिलना, कटना आदि परेशानियां हो सकती हैं। 

- फुटवियर का मैटीरियल नेचुरल होना चाहिए। सिंथेटिक मैटीरियल से बने फुटवियर्स पैरों को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। 

- बाजार में कस्टमाइज्ड जूते भी मिलते हैं, जो पैरों के दबाव को ठीक से बांटने में मदद करते हैं। अगर आपके पैर नाजुक हैं या पैर और कमर की मांसपेशियों में दर्द की शिकायत है तो जूतों में इन पतावों को लगाकर पहनें। 

- फुटवियर चौड़े हों। 

- गहराई ज्यादा हो। 

- फुटवियर में पैडिंग हो। 

- जूते या सैंडिल का निचला हिस्सा कड़ा न हो। 

- फुटवियर्स को पहनकर चलते वक्त ठक-ठक की आवाज न आती हो। 

- फुटवियर का वजन कम होना चाहिए। 

 - सैंडिल्स नुकीले न हों। 

- अगर पैरों में दर्द की शिकायत रहती है तो अपने लिए ऐसा फुटवियर चुनें, जो खासतौर पर पैरों को आराम देने के लिए बनाया जाता है। 

गर्मियों के लिए फुटवियर 
- मौसम को ध्यान में रखकर फुटवियर का चुनाव करना बेहद जरूरी होता है, नहीं तो कई तरह के फंगल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने का डर बना रहता है। 

- गर्मियों में पैरों में ज्यादा पसीना आता है, इसलिए बंद जूतों की बजाय चप्पल पहनें। 

- गर्मियों में नाखूनों में फंगस लगने का खतरा भी रहता है, इसलिए जूता पहनने से पहले अपने पैरों में टेलकम पाउडर और कपूर को मिलाकर लगा लें। ये इन्फेक्शन दूर करते हैं। 

- जूतों के साथ हमेशा सूती मोजे ही पहनें। 

- जूते-चप्पल गीले हो जाने पर उन्हें धूप में रखें, ताकि बैक्टीरिया मर जाएं और किसी भी तरह के संक्रमण से बचा जा सके। 

ध्यान दें 

-ज्यादा से ज्यादा डेढ़ इंच की हील ही पहनें। 

-विशेष अवसरों पर ही चार-पांच इंच की हील पहनें। 

-जब ज्यादा घूमने का काम हो तो हाई हील्स न पहनें। 

-पैंसिल हील की जगह मोटे व फ्लैट हील का चुनाव बेहतर विकल्प है। 

-डांस पार्टी आदि के लिए घर में ही चार-पांच दिन प्रैक्टिस करें(हिंदुस्तान,दिल्ली,7.6.12)।

आगे चलें...

सोमवार, 11 जून 2012

अपने डाक्टर ख़ुद न बनें

डॉक्टर के पास गए हुए आपको लंबा अरसा हो गया है, क्योंकि अपनी किसी भी प्रॉब्लम का इलाज आप खुद ही कोई गोली लेकर कर लेते हैं। अगर आपके साथ सच में ऐसा है, तो कहीं आप पिल्स अडिक्शन के शिकार तो नहीं हो गए। आइए जानते हैं: 

अक्सर ऐसा होता है कि आपकी बॉडी में बहुत पेन हो रहा होता है या फिर आपको कुछ अच्छा नहीं लगता। ऐसे में, ज्यादातर लोग कोई न कोई गोली खाकर अपनी प्रॉब्लम दूर कर लेते हैं। बेशक, वे इससे पहले किसी डॉक्टर से सलाह नहीं लेते। हालांकि अगर एक्सपर्ट्स की मानें, तो ऐसा करना उनके लिए फायदेमंद की बजाय नुकसानदायक हो सकता है। 

फायदा नहीं नुकसान 
एक्सपर्ट डॉक्टर पारुल सेठ कहती हैं, 'ओवर द काउंटर (ओटीसी) या नॉन-प्रिस्क्रिप्शन ड्रग्स तब ही सेफ होती हैं, जब उन्हें ठीक उसी तरह लिया जाए जैसा इंस्ट्रक्शन लेबल या पैकेजिंग पर लिखा होता है। हालांकि दर्द में रिलीफ मिलने के अलावा इनके कुछ साइडइफेक्ट भी हो सकते हैं। इससे मेडिकेशन ऐसिड रिएक्शन या हार्टबर्न हो सकता है। और अगर आपने ओटीसी पिल्स का मिसयूज किया है, तो आपको स्टमक अल्सर, किडनी डैमेज, लीवर डैमेज और हार्ट अटैक भी हो सकता है।' 

वहीं, फिजिशियन डॉ. अभय श्रीखंडे कहते हैं, 'लोग सभी तरह की पिल्स जैसे पेन किलर्स, ऐंटिडिप्रेशन और यहां तक कि कफ सिरप के भी अडिक्ट हो सकते हैं। ज्यादातर मामलों में अडिक्शन तब शुरू होता है, जब वे खुद ही अपना ट्रीटमेंट करना शुरू कर देते हैं। ओवर द काउंटर पिल्स का बिना किसी प्रिस्किप्शन और गवर्नमेंट कंट्रोल के आसानी से उपलब्ध होना भी अडिक्शन की एक वजह है। कई बार लोगों का साइड इफेक्ट्स इग्नोर कर देना इस अडिक्शन को और बढ़ावा देता है।' 

पेन किलर्स हैं खतरनाक 
जब आप स्लीपिंग पिल्स और ऐंटिबायॉटिक अपनी मर्जी से लेते हैं , तो ये आपके लिए बेहद नुकसानदेह हो सकती हैं। खासतौर पर जब आपको नहीं पता कि आप इसके जरिए कौन से स्पेसिफि क कंपाउंड ले रहे हैं ? आपको इसकी कितनी डोज की जरूरत है और आपको यह दवाई कितने समय तक लेनी है ? कंसलटेंट फिजिशियन डॉ . प्रदीप शाह का मानना है कि दवाईयों के नाम में कन्फ्यूज होकर आप गलत मेडिकेशन करते हैं , तो यह आपको और ज्यादा बीमार कर देता है। वह कहते हैं , ' ज्यादातर पेनकिलर्स में एसिटॉमिनोनिन होता है। अगर इसकी हाइ डोज ले ली जाए , तो लीवर फेलियर भी हो सकता है। यही वजह है कि कुछ पेनकिलर्स से किडनी डैमेज , कब्ज , गैस और पेप्टिक अल्सर जैसी डिजीज हो जाती हैं। ' 

ये होती हैं प्रॉब्लमस
देखने में आया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा सेल्फ मेडिकेशन करती हैं और उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है। पिल्स एडिक्ट महिलाओं में आगे चलकर इररेग्युलर मेंस्ट्रूएशन हो सकता है। अपनी मर्जी से पिल्स के इस्तेमाल की वजह से स्टमक अल्सर , कानों में रिंगिंग सेंसेशन , स्किन रेशेज , ब्लड डिस्ऑर्डर , स्टमक अपसेट , ड्राई माउथ , यूरीनरी रिटेंशन , कॉन्स्टिपेशन , लीवर प्रॉब्लम , हेयर लॉस , इररेग्युलर हार्टबीट , इंपोटेंस और नींद न आने जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। 

ऐसे होगा ट्रीटमेंट
पिल्स अडिक्ट को सबसे पहले कंप्लीट डिटॉक्टिफिकेशन करना होगा , ताकि उसकी बॉडी से टॉक्सिन पूरी तरह निकल जाए। डॉक्टर श्रीखंडे कहते हैं , ' अगर एक बार कंप्लीट डिटॉक्सिफिकेशन कर लिया जाए , तो काफी इंप्रूवमेंट दिखाई देने लगता है। इसके बाद दूसरा स्टेप एक्सरसाइज , सेल्फ कंट्रोल और लाइफस्टाइल में चेंज है। हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज से यह संभव है। मेडिटेशन , रनिंग , योगा और वॉकिंग करना अच्छा होगा। अडिक्शन से छुटकारा पाने के लिए एक्सपर्ट की राय भी ली जा सकती है। इसके अलावा , ग्रुप थेरपी भी एक ऑप्शन हो सकता है। जो लोग इस अडिक्शन के शिकार हैं उनसे बात करें , डिस्कस करें और खुद को अडिक्शन से बाहर आने के लिए एनकरेज करें। ' 

डिक्शन के सिंपटम्स
आपको सेल्फ मेडिकेशन की आदत लग जाती है और ड्रग यूज करना आपके लिए बेहद जरूरी हो जाता है। साथ ही अगर आप जरूरत से ज्यादा डोज का इस्तेमाल करने लगें , तो समझिए कि आपको पिल्स अडिक्शन हो गया है। इसमें आप लगातार ड्रग्स लेते हैं , फिर चाहे वह आपकी जॉब परफॉर्मेंस , रिलेशनशिप या जिंदगी के दूसरे पहलुओं को भी खराब कर दे। आपका बिहेवियर बदल जाता है। आप ज्यादा सिक्रेटिव और डिफेंसिव हो जाते हैं। (जीनिया एफ. बारिया का यह आलेख नवभारत टाइम्स,दिल्ली संस्करण,9.6.12 में कहीं आप पिल्स अडिक्ट तो नहीं शीर्षक से प्रकाशित हुआ है)।

आगे चलें...