जी हाँ, दिल और धड़कन का अटूट रिश्ता जिन्दगी की शुरुआत से ही है। धड़कन न केवल हृदय की, अपितु जीवन की भी पहचान है। शरीर की अन्य क्रियाएँ जैसे कि श्वसन, पाचन आदि जन्म लेने के बाद शुरू होती हैं, परंतु दिल का धड़कना जन्म के भी पूर्व गर्भधारण के मात्र ५वें सप्ताह से ही शुरू हो जाता है एवं तब से यह मृत्युपर्यंत लगातार धड़कता रहता है। हमारे सोते-जागते, हँसते-खेलते या फिर आराम करते हर वक्त धड़कन निर्बाध नियम से चलती रहती है।
इस वृदह शरीर का मात्र ५०० ग्राम वजनी हृदय निष्काम कर्मयोगी की तरह बिना रुके, बिना शिकायत किए, बिना अपना मेहनताना लिए आजीवन कार्य करता रहता है। चाहे कितने भी अजीज रिश्ते साथ छोड़ जाएँ, पर दिल की संगिनी धड़कन भी बगैर रुके जीवन संगीत की ताल पर थिरकती, नाचती, गाती उम्रभर दिल का साथ निभाती है। वैसे तो मस्तिष्क को शरीर का नियंत्रणकर्ता कहा जाता है, परंतु इस मास्टरमाइंड को ठीक से चलाने के लिए भी दिल की धड़कन के द्वारा ही रक्त प्रवाहित होकर मस्तिष्क को समुचित कार्य करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन एवं अन्य पोषक तत्व पहुँचाए जाते हैं। इस प्रकार अपरोक्ष रूप से हृदय मस्तिष्क के द्वारा पूरे शरीर की जटिल गतिविधियों का संचालन करता है।
"धड़कन- हृदय का स्पंदन" सामान्य तौर पर जीवन का प्रथम एवं अंतिम चिह्न होता है। गर्भावस्था में भी कोई जटिलता आने पर सोनोग्राफी द्वारा हृदय की धड़कन देखकर ही "ऑल इज वेल" का आश्वासन दिया जाता है। कई बार गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन बिगड़ने मात्र से उसके प्रसव करवाने के समय और तरीके के बारे में निर्णय लिया जाता है। हृदय रक्त को पंप करने वाली मशीन की तरह कार्य करता है। हृदय की संरचना में २ आलिंद व २ निलय एवं इनके बीच कुछ वॉल्व होते हैं, जो कि एक यूनिट की तरह कार्य करते हैं एवं इनके क्रमिक संकुचन एवं शिथिलन द्वारा हृदय में धड़कन पैदा होती है।
धड़कन का नियमन हृदय में ही स्थित कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं और उनके तंतुओं के जाल द्वारा होता है एवं इनकी कार्यप्रणाली बिगड़ने पर धड़कन में भी विभिन्ना प्रकार की अनियमितताएँ आ जाती हैं एवं धड़कन असामान्य होकर बीमारी का रूप ले लेती है।
सामान्यतः हृदय प्रति मिनट ७० से ७५ बार धड़कता है एवं हर बार ७० मिलीलीटर रक्त प्रवाहित करता है। इस प्रकार हृदय द्वारा प्रति मिनट लगभग ५ लीटर रक्त का पंपिंग होता है। सामान्यतः दिल के धड़कने का हमें आभास नहीं होता है यहाँ तक कि व्यायाम के दौरान, खेलते समय या फिर कहीं भावभीने क्षणों में कब हमारी धड़कन तेज हो गई या निद्रा में डरावने सपने देखते समय कब धड़कन बढ़ गई, हमें पता ही नहीं चलता है। बुखार की अवस्था या थॉयराइड ग्रंथि की कुछेक बीमारियों की वजह से भी दिल की धड़कन तेज हो सकती है। परंतु कभी जब हृदय की धड़कन महसूस होने लगती है तो यह एक समस्या के रूप में सामने आती है और मरीज सिर्फ यही शिकायत लेकर आता है कि "दिल धक-धक" करने लगा है।
हर पल गुपचुप काम करने वाले हृदय की धड़कन का आभास होना मरीज़ के लिए बेहद डरा देने वाला होता है। कई बार यह समस्या क्षणिक होती है,तो कई बार विभिन्न अंतरालों से होती रहती है। कभी कसरत करने या सीढ़ियां चढ़ने-उतरने जैसी छोटी-मोटी गतिविधियों के दौरान या इन कामों के बाद भी धक-धक हो सकती है(डॉ. अजयदीप भटनागर तथा डॉ. कविता भटनागर,सेहत,नई दुनिया,22 अक्टूबर,2010)।
दीवाली की दिल से शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएं