रविवार, 26 अगस्त 2012

न्यूरॉल्जिया में होम्योपैथी

इस ३५ साल महिला को छह महीनों से गले और छाती की बाईं ओर दर्द रहने की समस्या थी। दर्द बिना कारण ही शुरू हो गया था। एक दिन जब वह सुबह उठी तब उसे गले में कुछ भारीपन महसूस हुआ। उसने सोचा कि यह मौसम के परिवर्तन की वजह से हो सकता है। उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अगले दिन उसे फिर से गले में दर्द और जलन हो रही थी। इस घटना के बाद दिन ब दिन उसे दर्द और जलन में वृद्घि होती गई। पारिवारिक चिकित्सक को दिखाने पर जाँच में कोई रोग पकड़ में नहीं आया। चिकित्सक ने बताया कि दर्द और जलन किसी संक्रमण की वजह से हो सकती है। इलाज के तौर पर मरीज को एंटीबायोटिक्स और एंटीइन्फ्लेमेटरी औषधियाँ दी गईं। उपचार से लक्षणों में सुधार तो आया लेकिन दर्द पूरी तरह से नहीं गया।

एंटीबायोटिक की पूरी खुराक लेने के बाद मरीज ने औषधियों का सेवन बंद कर दिया। अगले ही दिन से तीव्र दर्द महसूस हुआ। धीरे-धीरे दर्द की तीव्रता बढ़ने लगी। अब हर सुबह वह दर्द के साथ ही उठती थी। दर्द अब इतना तीव्र होता था कि वह दैनिक दिनचर्या के काम करने में सक्षम नहीं थी। दर्द आधा घंटे से लेकर एक घंटे तक बना रहता था। दर्द के दौरान वह बहुत बेचैन हो जाती थी। 

परिवारजनों ने समस्या के हल के लिए नाक कान गलारोग विशेषज्ञ से परामर्श लेने का फैसला किया। जांच के बाद वे दर्द का कोई कारण नहीं जान पाए। जाँचें भी करवाई गईं लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आया। नाक कान गलारोग विशेषज्ञ ने न्यूरॉल्जिया यानी तंत्रिकातंत्र का दर्द मानकर इलाज शुरू किया। मरीज को औषधि के तौर पर अधिक शक्तिशाली दर्दनिवारक एवं एसिडिटी को ख़त्म करने वाली गोलियां दी गईं। उपचार में थोड़ी राहत मिली लेकिन जैसे ही दवा की खुराक कम होती थी,मरीज़ का दर्द फिर उठ खड़ा होता था। एक महीने के इलाज़ के बाद एक दिन सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसे गले कीं बायीं ओर एक तीव्र दर्द का एहसास हुआ। 

दर्द अब बायीं छाती के पूरे क्षेत्र में हो रहा था। दर्द इतना तीव्र था कि वह हाथ-पैर चलाने में भी असमर्थ हो गई थी। दर्द के दौरान रह-रहकर बिजली के झटके जैसे भी लग रहे थे। मरीज़ को किसी तरह की कोई राहत नहीं मिल रही थी। 

उसके पास इलाज़ के तौर पर केवल दर्द-निवारक ही शेष रह गया था। परिजनों ने एक दूसरे चिकित्सक का परामर्श लिया। नियमित रूप से

दर्द निवारक औषधियां लेते रहने के कारण मरीज़ का पाचन-तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो चुका था। अत्यधिक अम्ल बढ़ जाने के कारण पेट में जलन बनी रहने लगी। पेट की नली में जलन,मिलती आना और उल्टियां आना उसके लिए रोज़ की बात हो गई। पारिवारिक मित्र के आग्रह पर मरीज़ के परिजनों ने होम्योपैथिक इलाज़ कराने का फैसला किया। 

मरीज़ की केसहिस्ट्री और लक्षणों के आधार पर लेकेसिस नामक दवा से इलाज़ शुरू हुआ। मरीज़ को दवा से आराम मिलने लगा। तीन महीने तक उपचार होने के बाद,उसका दर्द पूरी तरह ग़ायब हो गया(इंदौर के डॉ. कैलाश चंद्र दीक्षित का यह आलेख नई दुनिया के अगस्त,2012 के सेहत परिशिष्ट से साभार है। डॉ. दीक्षित कई सालों से अनेक असाध्य रोगों का इलाज दक्षतापूर्वक कर रहे हैं। उन्हें जटिल रोगों के इलाज में महारत हासिल है)।

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