गुरुवार, 24 नवंबर 2011

शरीर की गांठ की जांच है ज़रूरी

शरीर के किसी भी हिस्से में हुई गठान की जाँच करना जरूरी होता है। कई मामलों में पूरी गठान निकालकर उसकी जाँच करना संभव नहीं होता। इसके लिए एक पोली सुई की नोक से गठान का नमूना निकाल लिया जाता है। इसे एफएनएसी जाँच कहा जाता है।

शरीर के किसी भी हिस्से में उठने वाली कोई भी गठान या रसौली एक असामान्य लक्षण है जिसे गंभीरता से लेना आवश्यक है। ये गठानें पस या टीबी से लेकर कैंसर तक किसी भी बीमारी की सूचक हो सकती हैं। गठान अथवा ठीक नहीं होने वाला छाला व असामान्य आंतरिक या बाह्य रक्तस्राव कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। ज़रूरी नहीं कि शरीर में उठने वाली हर गठान कैंसर ही हो। अधिकांशतः कैंसर रहित गठानें किसी उपचार योग्य साधारण बीमारी की वजह से ही होती हैं लेकिन फिर भी इस बारे में सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार की किसी भी गठान की जाँच अत्यंत आवश्यक है ताकि समय रहते निदान और इलाज शुरू हो सके। 

चूँकि लगभग सारी गठानें शुरू से वेदना हीन होती हैं इसलिए अधिकांश व्यक्ति नासमझी या ऑपरेशन के डर से डॉक्टर के पास नहीं जाते। साधारण गठानें भले ही कैंसर की न हों लेकिन इनका भी इलाज आवश्यक होता है। उपचार के अभाव में ये असाध्य रूप ले लेती हैं, परिणाम स्वरूप उनका उपचार लंबा और जटिल हो जाता है। कैंसर की गठानों का तो शुरुआती अवस्था में इलाज होना और भी ज़रूरी होता है। कैंसर का शुरुआती दौर में ही इलाज हो जाए तो मरीज के पूरी तरह ठीक होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। 

शरीर के किसी भी भाग या अवयव जैसे स्तन, थायरॉइड, लिम्फ ग्रंथियाँ, लार ग्रंथियाँ, कोमल उतकों, लिवर, किडनी, फेफडे, प्रोस्टेट, ओवरी, अण्डकोष जैसे किसी भी अंग में गठानें विकसित हो सकती हैं। रसौलियों का सही और विश्वसनीय निदान उपलब्ध न होने की स्थिति में कोई भी चिकित्सक उपचार की सही रूपरेखा नहीं बना सकता है। विशेषकर कैंसर के उपचार के लिए उसका सही रूप और रोग की तीव्रता जानना बेहद ज़रुरी होता है। एक्स रे, सोनोग्राफी,सीटी स्कैन,एमआरआई आदि से अनि रसौलियों के सही स्थान,गहराई,आकार,ठोस अथवा खोखले होने के बारे में जाना जा सकता है,लेकिन ऊतक अथवा कोशिका स्तर पर हुए परिवर्तनों के बारे में इनसे कोई जानकारी नहीं मिलती है। किसी रोग अथवा रसौली के प्रकार का अंतिम निदान ऊतक या कोशिका के स्तर पर हुए परिवर्तनों को देखकर ही संभव है क्योंकि प्राथमिक जांच में गठान का कारण कैंसर लग सकता है लेकिन अंदर से ये किसी और निरापद बीमारी की हो सकती है,यानी स्थिति स्पष्ट नहीं होती है। 

पुष्टि करने के लिए उस ऊतक की जांच माइक्रोस्कोप द्वारा करनी होती है। शरीर के प्रत्येक अंग या अवयव की संरचना विशेष प्रकार की कोशिकाओं-ऊतकों से होती है। ये ऊतक अपने सहयोगी ऊतकों के साथ एक विशेष संतुलन बनाकर रखते हैं। बीमारी के अनुरूप इस संरचना में कुछ विशिष्ट परिवर्तन होने लगते हैं। 

बारीक सुई से निकाले टुकड़े की जाँच 
बहुत पतली सुई की सहायता से किसी भी गठान का थोड़ा सा भाग खींच लिया जाता है। इस नमूने को स्लाइड्स्‌ पर फैला कर स्केन किया जाता है। माइक्रोस्कोप में नमूना देखकर चन्द मिनटों में ही नतीजे पर पहुँचा जा सकता है। इस विधि से ०.५ सेंटीमीटर व्यास से बड़ी रसौलियों की जाँच संभव है, कभी-कभी उससे छोटी गठानों की भी हो सकती है। नमूना लेने में ज्यादा समय नहीं लगता और आपात स्थिति में कुछ मिनटों में ही रिपोर्ट दी जा सकती है। नमूना लेने की सारी प्रक्रिया बिना किसी विशेष वेदना या असुविधा के कुछ ही पलों में पूरी हो जाती है। इसमें किसी चीरे, टाँके आदि की आवश्यकता नही। 

चूँकि नमूना लेने के लिए एक बहुत ही पतली सुई का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए दर्द नही के बराबर होता है। थॉयराइड या शरीर के अंदरूनी हिस्सों में स्थित गठानों की बायोप्सी लेना बहुत दुष्कर होता है। ऐसे में फाइन निडल एस्पिरेशन सायटालॉजी एक वरदान साबित होती है। यहाँ तक की मस्तिष्क में होने वाले ट्यूमर का भी सही निदान इस विधि से संभव है। स्त्रियों और बच्चों के लिए तो यह तकनीक वरदान साबित हुई है। क्योंकि कई बार ऑपरेशन के लिए लगाया गया चीरा सौंदर्य की दृष्टि से बहुत भद्दा निशान छोड़ जाता है। केट स्केन, एमआरआई और सोनोग्राफी की सहायता से तो यह काम और भी आसान हो गया है। वे गठानें जो शरीर की सतह पर महसूस नहीं होती हैं या अंदरूनी भागों में स्थित होती हैं, उनका नमूना भी इस तरीके से आसानी से लिया जा सकता है। 

इस तरह की जाँच में नमूना चिकित्सक अथवा पैथालॉजिस्ट कोई भी ले सकता है। पैथालॉजिस्ट ही नमूना निकाले तो बेहतर होगा क्योंकि उसे रोग की तीव्रता के साथ अन्य जाँचों के परिणामों के बारे में समुचित जानकारी रहती है। नमूना कहाँ से निकालना है, निकाला हुआ नमूना काफी है या नहीं इसका निर्णय और उस नमूने का समुचित उपयोग, पैथालॉजिस्ट ही ज्यादा अच्छे से कर सकता है।  

चीरा लगाकर निकाले टुकड़े की जाँच..
 किसी भी गठान की जाँच की परंपरागत विधि है बायोप्सी या हिस्टोलॉजी जाँच। इस विधि में सुन्ना या बेहोश करके, चीरा लगाकर पूरी गठान या उसका एक टुकडा निकाल लेते हैं। फिर विभिन्ना तकनीकों द्वारा इसका अध्ययन किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग ४८ घंटों का समय लगता है। यद्यपि ऊतकों और कोशिकाओं में हुए परिवर्तनों को जानने की यह सर्वमान्य तकनीक है, फिर भी यह काफी लंबी और जटिल है। इसमें समय भी काफी लगता है, चीरा और टाँके लगाए जाते हैं, दर्द, रक्तस्राव, संक्रमण की संभावना होती है। आर्थिक दृष्टि से भी यह प्रक्रिया खर्चीली होती है। कुछ गठानें ऐसी भी होती हैं जिनमें उपचार की दृष्टि से शल्यक्रिया आवश्यक नहीं होती। ऐसी स्थितियों में यह विधि मरीज के लिए अत्यंत कारगर उपाय है(डाक्टर प्रकाश राजे,सेहत,नई दुनिया,नवम्बर तृतीयांक 2011)।

7 टिप्‍पणियां:

  1. ♠ आपकी कोशिश और आपकी गुफ़्तगू के हम बहुत ज़्यादा शुक्रगुज़ार हैं।

    धन्यवाद !

    http://niraamish.blogspot.com/2011/11/mass-animal-sacrifice-on-eid.html

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  2. अच्छी जानकारी दी है आपने ... ये सच है अक्सर लोग छोटी छोटी गांठों को खास कर जिनमें दर्द नहीं होता संजीदगी से नहीं लेते ...

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  3. बहुत उपयोगी जानकारी…………आभार्।

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  4. जागरूक करती हुई उपयोगी जानकारी ...

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  5. बहुत अच्छी जानकारी दी है !
    आभार ....

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