सोमवार, 27 दिसंबर 2010

शहरी महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा दोगुना

चिकित्सकीय शोध के मामले में देश की सबसे ब़ड़ी सरकारी संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की पूरे देश की २० कैंसर रजिस्ट्री के ताजा आंक़ड़ों की तुलना पश्चिमी जीवन शैली में ढलती जा रही देश के महानगरों की महिलाओं के लिए खतरे की तेज घंटी है । अध्ययन का निष्कर्ष है कि गांवों की तुलना में शहरों में रहने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा दोगुना से भी अधिक हो गया है । शहरी कैंसर रजिस्ट्री में जहां स्तन कैंसर के मरीजों की संख्या में वृद्धि की दर लगातार ब़ढ़ती जा रही है, वहीं गांवों की रजिस्ट्री में कैंसर की दर कमोबेश स्थिर है । शहरों में स्तन कैंसर की वृद्धि दर का यह आलम हो गया है कि इसने गर्भाशय के कैंसर को भी पीछे छो़ड़ दिया है । कैंसर विशेषज्ञ इसे महानगरों में स्तन कैंसर से ग्रसित महिलाओं की आबादी में "विस्फोट" की संज्ञा दे रहे हैं ।

यह जानकारी सर गंगाराम अस्पताल के जाने माने कैंसर विशेषज्ञ डॉ. श्याम अग्रवाल ने दी । उन्होंने अपने एक ताजा अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि शहरों की महिलाएं अपनी पश्चिमी जीवन शैली की वजह से ही इस कैंसर की चपेट में आ रही है । उन्होंने बताया कि आईसीएमआर की तरफ से किए गए तुलनात्मक अध्ययन में जहां महानगर मुम्बई में स्तन कैंसर में वृद्धि की दर चिंता में डालने वाली है, वहीं मुम्बई के पास ही स्थित बारशी गांव में स्तन कैंसर का वैसा प्रकोप नहीं है। इस अंतर का कारण है दोनों जगह की महिलाओं की जीवन शैली में फर्क । बारशी गांव में प्रति १ लाख महिलाओं में ५.६ महिलाएं ही स्तन कैंसर की चपेट में आईं वहीं मुम्बई में १ लाख में १२ महिलाओं को स्तन कैंसर हुआ । दिल्ली की कैंसर रजिस्ट्री में औसतन इतनी ही संख्या में महिलाएं स्तन कैंसर की चपेट में आ रही हैं । डा. अग्रवाल ने अपने अध्ययन में पाया है कि हर २२ महिलाओं में से एक को अपने पूरे जीवन में स्तन कैंसर होने की आशंका रहती है ।

उन्होंने बताया कि स्तन कैंसर के मुख्य कारणों में देर से शादी, देर से बच्चे पैदा होना, कम बच्चे पैदा होना, बच्चों को स्तन पान नहीं कराना, मोटापा, मधुमेह, कम शारीरिक श्रम, जंक फूड का सेवन और शराब और सिगरेट की लत आदि शामिल हैं । शहरी महिलाएं पश्चिमी जीवन शैली के ब़ढ़ते प्रभाव के कारण ही इन समस्याओं से रूबरू हो रही हैं । डॉ. अग्रवाल ने बताया कि शहरों में स्तन कैंसर की ब़ढ़ती संख्या की तुलना में कैंसर विशेषज्ञों की संख्या नहीं के बराबर है । हर साल स्तन कैंसर के करीब ९० हजार नए मामले सामने आने लगे हैं लेकिन पूरे देश में कैंसर विशेषज्ञों की संख्या बमुश्किल ३०० ही होगी (नई दुनिया,दिल्ली,27.12.2010)।

नोटःशब्दों का दंगल और उच्चारण समेत कुछ अन्य ब्लॉगों पर सक्रिय डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक जी ने इस पोस्ट को 29.12.2010 की चर्चा में लिया है। कृपया क्लिक करें

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीदिसंबर 27, 2010

    बहुत ही उपयोगी है यह पोस्ट तो!

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  2. बदलती शैली ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है ।
    सचेत करती जानकारी ।

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  3. अच्छा लेख हम महिलाओ के लिए काफी उपयोगी है | वैसे शहरी और ग्रामीण महिलाओ में संख्या के इस अंतर का कारण ये भी हो सकता है की शहरी महिलाए अब स्तन या गर्भाशय के कैंसर को लेकर अब ज्यादा सचेत है और शहरो में इस समस्या का पता लगाने के लिए ज्यादा सुविधाए उपलब्ध है जबकि गावो में अभी भी बीमारियों खासकर महिलाओ के बीमारियों के प्रति अभी भी काफी उदासीनता है |

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  4. आपके हर आलेख उपयोगी होते हैं।
    इस ब्लॉग के लिंक यहां दिए गए हैं
    from नारी , NAARI by रचना
    एक बहुत काम का ब्लॉग नज़र आया हैं । आप भी देखे और संचित करले । काम की जानकारियाँ हैं

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  5. bahut hi achchhi aur janakri yukta post...........
    blog par bahut hi jankari ogya post hai. abhar .

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  6. जागरूक करती जानकारी के लिए आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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