हाल ही में कुछ ऐसे समाचार देखने में आए जिन्हें पढ़कर मैं आश्चर्यचकित तो हुआ ही, दशकों पुरानी स्मृतियों में भी लौटना पड़ा। एक समाचार का सार था कि जल में प्रसव कराए जाने से पीड़ा कम होती है और दिल्ली में इस पद्धति से कुछ नर्सिंग होमों में प्रसव कराए जाने का सिलसिला शुरू भी हो गया है। एक समाचार था कि वेद ऋचाओं के मनन और संगीत से कैंसर पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इधर बाबा रामदेव ने तो योग रहस्य की गाँठे खोल प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसी क्रांति ला दी है जिसे भारत ही नहीं, विश्व पटल पर भी सहज स्वीकृति मिल रही है। दरअसल, ऐसे जितने भी प्रयोगों की शुरुआत स्वास्थ्य-लाभ की दृष्टि से हुई है वे सब भारत की उस ज्ञान परंपरा से जुड़े हुए हैं, जिस चिकित्सकीय ज्ञान को अँगरेजों ने ठीक उसी तरह खतरनाक बताकर खारिज कर दिया था जिस तरह से हमारे प्राचीन भारतीय साहित्य को आध्यात्मिक और कर्मकांडी कहकर खारिज कर दिया गया था। उसके बाद हम अपने ही भौगोलिक परिवेश से उत्सार्जित उस ज्ञान से कटते चले गए जो लोक की ज्ञान परंपरा और दिनचर्या में शामिल था।
बात करीब साढ़े चार दशक पुरानी है। जब हम अपने पैतृक गाँव अटलपुर में रहते थे। तब मैं कक्षा तीन का विद्यार्थी था। तब एक बात घर-घर चर्चा में आई थी कि अगरियों की एक औरत ने पानी से भरे तसले (टब) में बच्चा जना। उस पानी में एक बोतल महुए की शराब भी मिलाई गई। शादी होने के बाद मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि उसने तो लोहपीटे (अगरिया जाति) की औरत को पानी भरे तसले में प्रसव करते देखा भी है। मैं कोई चिकित्सा विज्ञान से जुड़ा व्यक्ति तो था नहीं तो प्रजनन की इस विधि पर शोध-विचार करता। लेकिन इधर मैंने जब जल में प्रसव कराए जाने से पीड़ा कम होने के समाचार पढ़े तो पुरानी ज्ञान परंपरा और मान्यताओं पर मेरा ध्यान गया कि हमारे पूर्वज प्राकृतिक चिकित्सा के कितने बड़े जानकार थे। चिकित्सा विज्ञान अब मान रहा है कि गुनगुने पानी के भीतर प्रजनन से प्रसव प्रक्रिया सरल हो जाती है और अस्सी प्रतिशत दर्द कम हो जाता है। दरअसल, पानी में प्रसव का आधार यह है कि बच्चा नौ माह तक माँ के गर्भ में रहता है जहाँ उसके चारों ओर तरल पदार्थ भरा रहता है। जन्म लेते वक्त समान वातावरण व तापमान मिलने पर नवजात शिशु उससे अनुकूलता बिठा लेता है। डॉक्टरों का कहना है कि तनाव उत्सर्जित करने वाले हार्मोंस को पानी कम करता है इसके विपरीत दर्द झेलने वाले हार्मोंस बढ़ाता है। यह निर्विवाद है कि जल में प्रसव कराए जाने की विधि अगरियों ने नहीं शोधी, यह उन्हें उस ज्ञान परंपरा से मिली थी जो समाज को रोग मुक्त बनाए रखने के लिए चलन में लाई गई थी। पानी में महुए की शराब मिलाने का निश्चित ही कोई वैज्ञानिक कारण रहा होगा(प्रमोद भार्गव,नई दुनिया,12.10.2010)।
sahee post
जवाब देंहटाएं