मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

खेल और चोट

इन खबरों पर गौर कीजिए, टॉस जीतकर कैप्टन धोनी ने स्वीकार किया कि पहले फील्डिंग करने का फैसला मजबूरी में करना पड़ा क्योंकि उनकी टीम के ज्यादातर बल्लेबाज इंजरी के कारण या तो बाहर हैं या सौ प्रतिशत फिट नहीं हैं। जहीर ने अपने ट्विटर पेज पर लिखा है कि आज जोहान्सबर्ग के लिए रवाना हो रहा हूँ। मैं वहां रोजबैंड स्पोर्ट्र्स इंजरी रिहैबिलिटेशन क्लीनिक जाऊंगा, जहां मैं पिछले साल सर्जरी के बाद भी गया था।

खेल में चोट न लगे ऐसा संभव नहीं। कुश्ती से लेकर हॉकी, फुटबॉल से लेकर क्रिकेट जैसे तमाम खेल हैं, जिनमें खेलते समय खिलाड़ी चोटिल हो जाते हैं। खेल के दौरान लगने वाली चोटों से खिलाड़ियों का पूरा करियर तबाह हो सक ता है। कई खिलाड़ी हैं, जो खेलने के दौरान लगी चोटों से उबर नहीं पाए और फिर दोबारा मैदान में लौट नहीं सके। ऐसे खिलाड़ी मानसिक बीमारियों से भी ग्रसित हो गए।

सवाल यह उठता है कि आखिर इन खिलाड़ियों की रिकवरी क्यों नहीं हो पाई? ये मैदान में दोबारा अपना जौहर दिखाने से महरूम कैसे रह गए? स्पोर्ट्स मेडिसिन के विशेषज्ञों का मानना है कि खेल के दौरान आई चोट का सही इलाज तो जरूरी है, लेकिन उतना ही अहम है खिलाड़ियों का रिहैबिलिटेशन। रिहैबिलिटेशन, यानी इलाज के दौरान की एक्सरसाइज और फिजियोथेरेपी की वह प्रक्रिया, जिससे चोट के शिकार शरीर को पहले जैसी अवस्था में आने में मदद मिले।

अस्थिरोग विशेषज्ञ डा. ओ. एन. नेगी ने कई खिलाड़ियों का इलाज किया है, जिसमें सचिन तेंदुलकर जैसे नामचीन खिलाड़ी भी शामिल हैं। वह कहते हैं, ‘अधिकतर खिलाड़ी दवा से चोटों के ठीक होने के बाद रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम को गंभीरता से नहीं लेते। इलाज के बाद की जाने वाली एक्सरसाइज और दूसरी शारीरिक गतिविधियों को बीच में ही छोड़ देने से ये चोट फिर उभर आती हैं और खिलाड़ियों के करियर को ग्रहण लग जाता है। दवाइयों से इलाज के बाद किसी भी खिलाड़ी के लिए कुछ व्यायाम बेहद जरूरी होता है।

इसोमेट्रिक एक्सरसाइज डा. मुनीश जोशी कहते हैं कि रिहेबिलिटेशन प्रोग्राम दो तरह के व्यायाम से शुरू हो होते हैं। ऑफमोशन एक्सरसाइज और इसोमेट्रिक एक्सरसाइज। इन दोनों एक्सरसाइज का मकसद है, बिना किसी बाहरी मूवमेंट के अंदरुनी मांसपेशियों को मजबूत करना। ये एक्सरसाइज मांसपेशियों में खिंचाव या चोट लगने के तुरंत बाद शुरू हो जानी चाहिए। मांसपेशियों के कमजोर हिस्से की पहचान कर स्ट्रेंथिंग एक्सरसाइज बेहद फायदेमंद साबित होती है।

स्ट्रेचिंग क्या है? चोट से उबरने के लिए तय किए गए रिहेबिलिटेशन प्रोग्राम में स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज की अहम भूमिका होती है। चोट के बाद मांसपेशियों के लचीलेपन की तेज वापसी के लिए स्ट्रेचिंग बेहद जरूरी है। स्ट्रेंचिंग प्रोग्राम मांसपेशियों की सूजन दूर करने और उन्हें राहत पहुंचाते हैं। साथ ही चोट वाली जगह पर आने वाली मांसपेशियों की सिकुड़न या चिपकाव को दूर करते हैं। रिहेबिलिटेशन प्रोग्राम के तहत स्ट्रेचिंग की चार तरह की तकनीक अपनाई जाती हैं। ये हैं बैलस्टिक, डायनेमिक, स्टेटिक और प्रोप्रियोसेप्टिव। रिहेबिलिटेशन प्रोग्राम के विभिन्न चरणों में न्यूरोमॉस्क्यूलर व्यायाम का सहारा लिया जाता है।

न्यूरोमॉस्क्यूलर क्या है? शरीर के निचले अंगों में चोट लगने का बाद रिकवरी के दौरान मरीज को सतह की संवेदना पहचानने में दिक्कत आती है। यानी यह पता करना मुश्किल होता है, मरीज कहां पांव रखे या कितने सधे तरीके से रखे, पांव पर कितना जोर दे। ऐसी स्थिति में संतुलन बनाने की जो प्रक्रिया चलती है, उसे प्रोप्रियोसेप्शन न्यूरोमस्क्यूलर फेसिलिटेशन ट्रेनिंग कहते हैं। जोड़ों की चोट के बाद रिकवरी के दौरान एथलीट को बैलेंस बनाने में दिक्कत आ सकती है। इससे चोट दोबारा उभर सकती है। शरीर का संतुलन बनाने में मदद करने बैलेंसिंग ट्रेनिंग का काफी योगदान होता है। घुटनों और एड़ियों में लगी चोट दोबारा न उभरे, इसके लिए इस ट्रेनिंग से गुजरना जरूरी होता है। एड़ियों और घुटनों के जोड़ की चोट में इनके चारों ओर मांसपेशियों को स्टेबिलिटी बॉल से मजबूती दी जाती है। इसी तरह वॉबल बोर्ड बैलेंस ट्रेनिंग घुटनों और एड़ियों की चोट के बाद इससे उबरने में मददगार साबित होती है।

व्यायाम से सही करें बॉडी शेप स्पोर्ट्स मेडिसिन में आई एक स्टडी के मुताबिक एक्सरसाइज के लिए हर हफ्ते 150 मिनट को आप अपनी मर्जी से डिवाइड कर सकते हैं। साथ ही तीन हिस्सों में की गई 10-10 मिनट की एक्सरसाइज भी तीस मिनट की लगातार एक्सरसाइज के जितना ही फायदा पहुंचाएगी।

मेडिसिन डिपार्टमेंट के हेड डॉ. एम. पी. शर्मा कहते हैं कि अगर आप हर रोज समय नहीं निकाल पा रहे हैं, तब ऐसा कर सकते हैं। हर रोज एक्सरसाइज करने से मसल्स सही तरीके से काम करते हैं। वैसे इस तरीके से भी एक्सरसाइज करने से आप अपनी बॉडी को शेप में रख सकते हैं और दिल की बीमारियों से दूर रह सकते हैं। स्पोर्ट्स इंजरी एक्सपर्ट डॉ. बृजेश कौशल कहते हैं कि एक्सरसाइज न करने से बेहतर यह है लेकिन रेगुलर एक्सरसाइज का कोई विकल्प नहीं है।

अध्ययन कहते हैं कि एक्सरसाइज करने की आदत काफी हद तक आपके जीन पर भी निर्भर करती है। अगर आपके पैरेंट्स व्यायाम नहीं करते या उनको यह कठिन काम लगता है तो इसकी बहुत ज्यादा संभावना है कि आपके साथ भी ऐसा हो।

डॉ. शर्मा कहते हैं, ‘लेकिन यह सोचकर एक्ससाइज करना मत छोड़ें। क्योंकि हार्ट डिजीज, डाइबिटीज जैसी बीमारियों के जीन अगर आप में मौजूद हैं तो एक्सरसाइज के जरिए आप उन बीमारियों को ज्यादा उम्र तक टाल सकते हैं। फिजिकल फैक्टर जेनेटिक फैक्टर को चेंज कर सकते हैं। इसमें वक्त लगेगा लेकिन अगर आप खुद को फिट रखने की पूरी कोशिश करते हैं तो जीन का ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।’ तो हो जाइए तैयार खुद को फिट रखने के लिए और हर बाजी जीतने के लिए भी।

(अनुजा भट्ट,हिंदुस्तान,दिल्ली,12.10.2010)

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