दुनिया में मनोरोगियों की सबसे ज्यादा संख्या विकासशील देशों में है और इनमें से ज्यादातर को जरूरी चिकित्सा सुविधाएं तक नहीं मिल पातीं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के करीब 20 फीसदी बच्चे किसी-न-किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से अधिकतर गरीब देशों में रहते हैं और वहां हालात ऐसे हैं कि 40 लाख की आबादी पर औसतन एक बाल मनोचिकित्सक है। करीब आधे मनोरोगों की बुनियाद 14 साल से कम उम्र में पड़ जाती है।
यह भी कहा गया है कि दुनिया में 15 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन के शिकार हैं, साढ़े 12 करोड़ से अधिक लोग अल्कोहल के ज्यादा इस्तेमाल से होने वाले मानसिक विकारों की जकड़ में हैं और लाखों लोग मिर्गी, अल्जाइमर्स जैसी अन्य मानसिक एवं न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जूझ रहे हैं। प्रतिस्पर्धा, तनाव, युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी बहुत से लोग मनोरोगों की चपेट में आ रहे हैं।
गरीब देशों में रह रहे करीब 75 फीसदी लोगों की न तो कोई देखभाल हो पाती है और न उनको कोई उपचार ही मिल पाता है। रिपोर्ट यह भी बयान करती है कि दुनिया में हर साल करीब आठ लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं और इनमें से अधिकतर की उम्र 15 से 44 साल के बीच होती है। पुरुषों की आत्महत्या की दर पूवीर् यूरोप के देशों में सबसे ज्यादा पाई गई है। अधिसंख्य देश मानसिक बीमारियों से निपटने में अपने स्वास्थ्य बजट का सिर्फ दो फीसदी खर्च करते हैं।
डब्ल्यूएचओ ने अपने सर्वेक्षण में यह भी पाया कि अधिकतर विकासशील देशों में प्रशिक्षित मनोचिकित्सकों की भारी कमी है। वहां यह भी धारणा है कि मनोरोगों का उपचार बहुत महंगा होता है और कई देशों में तो इसे लग्जरी तक माना जाता है(सुरेश उपाध्याय,नवभारत टाइम्स,14.10.2010)।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
साहित्यकार-6
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
कुव्यवस्था लोगों को हताशा की और धकेलती है और भ्रष्ट मंत्रियों द्वारा आम लोगों के कल्याण का पैसा लूटा जाना एक ऐसा कुकृत्य है जिसे सबसे बड़ा पागलपन कहा जाना चाहिए और इसी पागलपन की वजह से अच्छे से अच्छे लोगों तक पागलपन की बीमारी पहुँच रही है | भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारीयों के पागलपन का इलाज सर्वप्रथम जरूरी है पागलपन के बीमारी के इलाज के लिए ....इन भ्रष्ट मंत्रियों को कुछ दिन सजा के तौर पर सार्वजनिक शौचालय या रेलगारी के शौचालय के सफाई के काम में लगा दिया जाना चाहिए ....
जवाब देंहटाएंढेर सारे आंकड़े भयावहता की ओर संकेत कर रहे हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
आंच-39 (समीक्षा) पर
श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ की कविता
क्या जग का उद्धार न होगा!, मनोज कुमार, “मनोज” पर!
बहुत चिंताज़नक स्थिति है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन आजकल पागल और मेंटल हॉस्पिटल जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता ।
मैं तो आपके शीर्षक से ही सहमत हूं :)
जवाब देंहटाएं(टाप पर भरे इतने पागलों की ही बजह से शायद ये देश ग़रीब हैं)
राधारमण जी, यह तो सीधा सा लॉजिक है। वैसे जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ा कारण है मंहगाई और अल्कोहल का सेवन ...
जवाब देंहटाएंचिन्ताजनक बात...
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