बुधवार, 8 सितंबर 2010

वजन और गर्भपात

गर्भवती महिलाओं में सामान्य से अधिक वजन होने पर गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, इससे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज आदि बीमारियां भी घेरने लगती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यदि गर्भवती महिलाएं वजन को नियंत्रित नहीं करती हैं तो बच्चा भी असामान्य पैदा हो सकता है। यहां तक कि पैदा होने के बाद उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
वजन अधिक होने के दो कारण होते हैं। या तो गर्भवती महिला का वजन पहले से अधिक हो या बाद में उसका वजन बढ़ा हो। कारण कुछ भी हो, इस स्थिति में विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। सबसे बड़ी समस्या यह आती है कि सामान्य प्रसव की अपेक्षा सीजेरियन की आशंका बढ़ जाती है। गर्भावस्था के दौरान विशेषज्ञ लंबाई के अनुसार वजन रखने की सलाह देते हैं। वजन को नियंत्रित के लिए संतुलित व पोषण आहार के साथ-साथ व्यायाम करने की भी आवश्यकता होती है। कितना हो वजन : स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. साधना मिश्रा ने बताया कि मेडिकल की भाषा में इस विषय को बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) में रखा गया है। गर्भवती महिला का औसत वजन पहले तीन महीने में एक से डेढ़ किग्रा, इसके बाद प्रत्येक माह ४५० ग्राम व नौ माह में कुल वजन १० से १२ किग्रा बढऩा चाहिए। बीएमआई को चार भागों में बांटा गया है। अंडरवेट, नॉर्मलवेट, ओवरवेट और ओबेसिटी। अंडरवेट में १८.३ बीएमआई, नॉर्मल में १८.५ से २४.९ बीएमआई, ओवरवेट में २५ से २९.९ और ओबेसिटी में ३० से भी ज्यादा बीएमआई होता है। बीएमआई को जानने के लिए लंबाई में वजन का भाग देने से वजन का पता चल जाता है। इन बातों का रखें ख्याल : > लंबाई के अनुसार वजन बढ़ाएं। > डाइट पर पूरा ध्यान दें, ताकि बीमारियों से बचा जा सके। > आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाजेशन) करवाने से थायरॉइड, हार्मोंस और डायबिटीज का टेस्ट जरूर करवाएं। > हल्का व्यायाम करने से शरीर को ऊर्जा के साथ स्फूर्ति भी मिलती है। > वजन बीएमआई के अनुसार न हो तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लें। ओवरवेट से मां पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव : > अधिक वजन से गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है। > प्रसव के दौरान समस्याएं आती हैं। > समय से पहले यानी सात से आठ माह में ही प्रसव हो जाता है। > शरीर के किसी भी हिस्से में खून का थक्का बन सकता है। > सामान्य प्रसव की अपेक्षा सीजेरियन से बच्चा होता है। > सीजेरियन के बाद ब्लीडिंग ज्यादा होती है। ओवरवेट से बच्चे पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव : > पैदा होने के एक महीने के अंदर बच्चे को बीमारियां घेरने लगती हैं। > एक माह के अंदर बच्चे की मृत्यु हो सकती है। > बच्चे का इंसुलिन घटबढ़ सकता है। > बच्चों को झटके आ सकते हैं। > बच्चे का ब्लड शुगर लेवल कम हो सकता है। बदलती जीवन शैली में हमारे संतुलित खाने-पीने की जगह फास्ट फूड और कोल्डड्रिंक्स ने ले ली है। मॉडर्न दिखने के चक्कर में महिलाएं भी सॉफ्ट डिं्रक का इस्तेमाल करने में पीछे नही हैं। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को अपने खान-पान और दिनचर्या का विशेष ख्याल रखना चाहिए। सॉफ्ट ड्रिंक्स के उपयोग से गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुंचता है। यहां तक कि बच्चा असामान्य भी पैदा हो सकता है। ड्रिंक्स से कैल्शियम की कमी : एरिएड्रिक डिंक्स विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं को नकारना चाहिए। क्योंकि इनमें कार्बोनेट्रिक के साथ हाई कैलोरी होती है। जिससे शरीर का वजन बढऩे लगता है और पोषण की कमी हो जाती है। सॉफ्टडिं्रक्स लेने पर पेट भरा हुआ लगता है। ऐसे में मां या तो खाना कम खाती है या फिर भोजन करना पसंद नहीं करती। मां के शरीर में पोषण तत्वों की कमी हो जाती है। दरअसल इन सॉफ्ट ड्रिंक्स में कार्बोनेट होता है जो पीने पर कैल्शियम में जुड़ जाता है। जब डकार लेते हैं ता कैल्शियम बाहर आने लगता है। इससे गर्भवती महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने की आशंका होती है। बच्चे पर होने वाले प्रभाव : ऐसे ड्रिंक्स से बच्चे के कमजोर होने की संभावना हो सकती है। विकास में रुकावट आ सकती है। पोषण कम हो जाता है। मां यदि ये ड्रिंक्स लेती है तो बेबी में कैल्शियम की कमी होने के चांस होते हैं। बच्चे के साथ-साथ मां के शरीर में भी विटामिन कैल्शियम मिनरल और आयरन की कमी हो जाती है। इतना ही नहीं अल्कोहल लेने पर बच्चे सामान्य पैदा नहीं होते। यहां तक कि प्रीमैच्योर डिलिवरी की नौबत भी आ सकती है(दैनिक भास्कर,सागर,8.9.2010)।

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