मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

टीबी के उन्मूलन की आस जगी

देश भर के सैंकड़ों वैज्ञानिकों ने तीन दिन तक कनेक्ट 2 डिकोड (सी2डी) सम्मेलन में जी तोड़ मेहनत कर,पहली बार, तपेदिक के जिनोम का विस्तृत खाका तैयार करने में सफलता हासिल की है।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की ओपेन सोर्स ड्रग डिस्कवरी (ओएसडीडी) पहल के तहत तैयार किए गए टीबी के जीनों का खाका दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए मुफ्त उपलब्ध होगा।
सी2डी की खोज टीबी के अनछुए राज को सामने ला सकता है जिससे भारत और अन्य विकासशील देशों में इस बीमारी के लिए निहायत जरूरी दवाओं के निर्माण का मौका मिलेगा। हालांकि टीबी के जीन की सीक्वेंसिंग एक दशक पहले की जा चुकी है लेकिन कभी भी 4000 के करीब जीनों में हजार से ज्यादा का एनोटेशन नही हुआ। पहली बार वैज्ञानिकों ने पूरे 4000 जीनों का पूरा एनोटेशन किया।
इस बीमारी से हर साल 17 लाख लोगों की मौतें होती हैं। इसी विषय पर आज अपने संपादकीय में नई दुनिया ने लिखा है कि फायदे के पीछे दौड़ती दवा कंपनियों द्वारा उपेक्षित क्षय रोग का इलाज खोजने की दिशा में भारत ने बड़ी प्रगति की है जिस पर गर्व किया जाना चाहिए। भारत ने तपेदिक (टी.बी.) के जीनोम का संपूर्ण लेखन (सिक्वेंसिंग) कर लिया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इसके सभी ४००० जीनों को चिह्नित कर लिया है जिसका फायदा यह होगा कि इसकी ऐसी दवा विकसित करने में मदद मिलेगी जो असरदार साबित हो। सामान्यतः गरीबों को होने वाली गरीब देशों की इस बीमारी की दवा बनाना मुनाफे का धंधा नहीं है। इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कोई दिलचस्पी इस बीमारी को दूर करने में नहीं है जबकि इससे दुनिया भर में प्रतिवर्ष १७ लाख लोग मरते हैं जिनमें चार लाख भारतीय हैं। पिछले चालीस वर्षों से टी.बी. के इलाज के लिए कोई नया अनुसंधान नहीं हुआ है जिसका नतीजा यह है कि टी.बी. की कुछ नई प्रजातियां विकसित हो गई हैं और चार में से एक आदमी पर मौजूदा दवाइयां कोई असर नहीं कर रही हैं। ऐसे में भारत ने ओपन सोर्स ड्रग डिलीवरी कार्यक्रम शुरू किया है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा शुरू किए गए इस कार्यक्रम के तहत टी.बी. को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है और टी.बी. की दवाई के अनुसंधान से ७४ देशों के ३००० लोगों को जोड़ा गया है, जिनमें वैज्ञानिक, डॉक्टर, छात्र, नीति-निर्माता, सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल आदि शामिल हैं। इन्होंने मिलकर सफलता का पहला और बड़ा कदम उठा लिया है। इसके बाद टी.बी. की दवा खोजने का काम है। इस बारे में टी.बी. के जीनोम की संरचना सहित जो भी जानकारी है, भारत उसको पूरी दुनिया के साथ साझा करने को तैयार है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में जल्दी ही टी.बी. की प्रभावशाली दवा विकसित की जा सकेगी और भारत तथा विकासशील दुनिया के लाखों लोगों को संक्रमण से फैलनेवाली इस भयानक बीमारी से बचाया जा सकेगा। हिंदुस्तान,दिल्ली संस्करण में 12 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट के अलावा,इस विषय पर आज जनसत्ता का संपादकीय भी काबिले-गौर हैः

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