डॉक्टरों और दवा निर्माता फार्मा कंपनियों के बीच के एक ‘अपवित्र’ साठ-गांठ से नवजात शिशुओं की जान जोखिम में पड़ सकती है। स्टेम सेल रिसर्च के नाम पर जहां फार्मा कंपनियां शिशु के मां-बाप को रोजाना लाखों का चूना लगा रही हैं, वहीं डॉक्टर भी इस गोरखधंधे से अपनी जेबें भर रहे हैं।
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल के डॉक्टर ने मां-बाप को आगाह करते हुए उन्हें फार्मा कंपनियों के झांसे में नहीं आने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि जब तक स्टेम सेल रिसर्च के पुख्ता प्रमाण सामने नहीं आ जाएं, लोगों को अपने बच्चों पर परीक्षण की इजाजत नहीं देनी चाहिए।
सूत्रों का कहना है कि इस गैरकानूनी धंधे की शुरुआत नवजात के स्टेम सेल को सुरक्षित रखने के प्रति मां-बाप की बढ़ती जागरूकता से हुई है। जन्म लेने वाले शिशु के गर्भनाल में मौजूद स्टेम सेल में कई जटिल बीमारियों को ठीक करने और मृत कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने के गुण होते हैं। इसीलिए मां-बाप बच्चे के भविष्य की सुरक्षा के मद्देनजर इसे सुरक्षित रख लेते हैं, लेकिन डॉक्टर इन बच्चों की जानकारियां फार्मा कंपनियों को मुहैया कराते हैं।
इसके बाद कंपनियां बच्चे के मां-बाप को बुलाकर उन्हें शिशु पर स्टेम सेल रिसर्च का यह कहते हुए झांसा देती हैं कि इससे आगे चलकर बच्चे को कई तरह की बीमारियों से निजात मिल जाएगी। जब मां-बाप इस बारे में डॉक्टर की राय लेते हैं तो वे भी झट से सहमति जता देते हैं, क्योंकि उन्हें कंपनी ने प्रतिवर्ष 15 लाख रुपए की मोटी तनख्वाह जो मिलती है। रिसर्च के लिए कंपनियां मां-बाप से एक से डेढ़ लाख रुपए वसूलती हैं, जिसमें डॉक्टर का हिस्सा 15 हजार रुपए होता है।
प्रतिमाह ऐसे करीब 15 मामले कंपनियों को सौंपकर डॉक्टर दो से तीन लाख रुपए कमा रहे हैं। साथ में उन्हें फार्मा कंपनियां मुफ्त में विदेशों की सैर और कई अन्य कीमती तोहफे भी देती हैं।
(दैनिक भास्कर,दिल्ली,18.1.10)
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